तेजी से कुलांचे भर रहा शेयर बाजार उसी तेजी से लुढ़कने लगा है। मुंबई शेयर बाजार के जिस संवेदी सूचकांक को 18,000 अंकों से रिकार्ड 19,000 अंकों तक पहुंचने में सिर्फ चार दिन लगे, वह पिछले शुक्रवार तक सिर्फ तीन दिनों में 1,942 अंक लुढ़ककर 17,560 अंकों पर बंद हुआ। जाहिर है कि शेयर बाजार में घबराहट, अस्थिरता और बेचैनी का माहौल है। हालांकि वित्त मंत्री पी.चिदम्बरम से लेकर शेयर बाजार की विनियामक संस्था-सेबी तक सभी लुढ़कते बाजार को संभालने और उसे सहारा देने में जुट गए हैं लेकिन बाजार में अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।
इस स्थिति और शेयर बाजार का माहौल बिगड़ने के लिए सेबी की जमकर लानत-मलामत हो रही है। सेबी पर आरोप है कि उसने पिछले सप्ताह भागीदारी नोट्स (पार्टिसिफेट नोट्स या पीएन) के जरिए शेयर बाजार में आ रहे विदेशी निवेश पर अंकुश लगाने के लिए जिन प्रावधानों का प्रस्ताव किया है, उसके कारण विदेशी निवेशक नाराज हैं और इससे शेयर बाजार में विदेशी निवेश का तेज प्रवाह रूक जा सकता है। जाहिर है कि इस आशंका मात्र से शेयर बाजार में थरथराहट और भूचाल सी स्थिति पैदा हो गयी है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय शेयर बाजार की गहराई और उसकी मजबूती को लेकर किए जानेवाले बड़े-बड़े दावे कितने खोखले हैं और शेयर बाजार किस हद तक विदेशी निवेशकों की इच्छा और मनमर्जी पर निर्भर हो गया है।
अब सबकी निगाहें सेबी पर हैं। सेबी को इस सप्ताह यह फैसला करना है कि वह पीएन पर अंकुश लगाने के अपने प्रस्ताव को कड़ाई और ईमानदारी से अमली जामा पहनाने के लिए तैयार है या नहीं? जाहिर है कि सेबी बहुत दबाव में है। सेबी के प्रस्ताव मात्र पर शेयर बाजार खासकर विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की जैसी तीखी प्रतिक्रिया आई है, उसे अगर चेतावनी माना जाए तो साफ है कि सेबी के फैसले के साथ एक बड़ा जोखिम जुड़ा हुआ है। पीएन पर रोक की स्थिति में शेयर बाजार में गिरावट जरूर आएगी क्योंकि इस फैसले के कारण न सिर्फ विदेशी निवेश का प्रवाह का धीमा हो या थम जा सकता है। बल्कि यह भी संभव है कि अब तक पीएन के जरिए शेयर बाजार में आए विदेशी निवेश का एक हिस्सा वापस लौट सकता है।
इससे शेयर बाजार में गिरावट का दौर शुरू हो सकता है। सेबी इस आशंका से अधिक परेशान और चिंतित है कि बाजार में घबराहट और भगदड़ का ऐसा माहौल न बन जाए कि एक-दूसरे की देखा-देखी सभी बिकवाली पर उतर आएं और बाजार पूरी तरह से मंदड़ियों के कब्जे में चला जाए। दरअसल, सेबी किसी भी कीमत पर यह स्थिति नहीं आने देना चाहती है। यही कारण है कि पीएन पर अंकुश या रोक के मामले में उसके रुख में काफी नरमी दिख रही है। सेबी की मुश्किल यह भी है कि शुरू में पीएन के मुद्दे पर सेबी के प्रस्तावों के प्रति समर्थन जाहिर कर चुके वित्त मंत्री पी.चिदम्बरम भी बाजार के डेढ़ हजार अंकों से अधिक का गोता लगाते ही सुर बदलकर पीएन का पक्ष लेने लगे हैं।
ऐसे में, सेबी के लिए पीएन पर अंकुश या रोक लगाने का फैसला करना आसान नहीं रह गया है। असल में, वित्त मंत्री से लेकर शेयर बाजार के ताकतवर खिलाड़ियों तक कोई नहीं चाहता है कि चढ़ते हुए शेयर बाजार के साथ कोई छेड़छाड़ की जाए। आखिर चढ़ने का रिकार्ड बनाता शेयर बाजार वित्त मंत्री और उनकी सरकार के लिए एक ऐसी उपलब्धि है जिसे वह अपनी आर्थिक नीतियों की सफलता के मेडल की तरह पेश करते रहते हैं। यही कारण कि जब भी शेयर बाजार गिरने लगता है, वित्त मंत्री सारा कामधाम छोड़कर दौड़े हुए उसे संभालने और देशी-विदेशी निवेशकों को आश्वस्त करने और मनाने में जुट जाते हैं। इसलिए इस बात की बहुत कम संभावना है कि सेबी, पीएन पर रोक या अंकुश लगाने का फैसला कर पाएगी। अधिक से अधिक वह चेहरा बचाने के लिए बीच का कोई रास्ता निकालने की कोशिश कर सकती है।
लेकिन ऐसी कोई भी कोशिश लीपापोती और उससे अधिक विदेशी पूंजी के आगे घुटने टेकने और नीति निर्णय की प्रक्रिया को पूरी तरह से उसके हाथों में गिरवी रख देने की तरह होगी। दरअसल, पीएन के मुद्दे पर अब बीच का कोई रास्ता नहीं है। इस मुद्दे पर सेबी को या तो अब आगे बढ़कर अपने प्रस्तावों पर अमल करना होगा या फिर पीछे हटना होगा। इसमें बीच का रास्ता इसलिए नहीं है क्योंकि पीएन के मुद्दे पर सेबी के प्रस्तावित कदम पहले ही बीच के रास्ते के तौर पर पेश किए गए है। वे पीएन के रास्ते आ रहे विदेशी निवेश को पूरी तरह से बंद करने के बजाय उसे एक सीमा में रखने और उसके प्रवाह की गति को थोड़ा धीमा करने के प्रस्ताव हैं सेबी अगर इस बीच के रास्ते को भी लागू करने में नाकाम रहती है तो शेयर बाजार के विनियामक (रेग्यूलेटर) के बतौर उसकी रही-सही साख भी दांव पर लग जाएगी।
दरअसल, पीएन के जरिए आनेवाला विदेशी निवेश शुरू से ही विवादों और सवालों के घेरे में रहा है। पीएन यानी पार्टिसिपेटरी नोट्स निवेश का एक ऐसा उपकरण या माध्यम है जो भारत में पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) उन विदेशी निवेशकों को अपने सह-खाते के जरिए जारी करते हैं जो पंजीकृत न होते हुए भी भारतीय बाजार में निवेश करना चाहते हैं। पीएन को लेकर सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि इसमें निवेशक की पहचान और इस कारण धन का स्रोत भी गोपनीय रहता है। इस कारण पीएन के जरिए आनेवाले विदेशी निवेश के वास्तविक लाभकर्ता का पता नहीं चलता। यह आशंका लंबे समय से जाहिर की जा रही है कि पीएन से जुड़ी इस गोपनीयता का लाभ न सिर्फ वे हेज फंड उठा रहे हैं जो सिर्फ तात्कालिक लाभ के लिए किसी शेयर बाजार में अल्पकालिक निवेश करते हैं बल्कि आतंकवादी तत्व, नशीले पदार्थों के कारोबारी और वे भ्रष्ट नेता, अफसर और उद्योगपति उठा रहे हैं जो हवाला के जरिए विदेशों में जमा अपनी पूंजी को शेयर बाजार में लगाकर मुनाफा कूट रहे हैं।
साफ है कि पीएन काले धन, आतंकवादी और नशीले पदार्थों के कारोबारियों और आवारा पूंजी की ऐसी कानूनी आड़ बन गया है जिसका जमकर दुरुपयोग हो रहा है। हालांकि पीएन के समर्थक इन आरोपों से इंकार करते हैं और उनकी सफाई यह है कि भारत में विदेशी संस्थागत निवेशकों के पंजीकरण की प्रक्रिया इतनी जटिल और धीमी है कि उसमें वर्षों लग जाते हैं। ऐसे में, उन विदेशी निवेशकों के पास जो भारतीय शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं, पीएन के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता है। यह सफाई पीएन के जरिए आ रहे भारी विदेशी निवेश के एक हिस्से के लिए सही हो सकती है लेकिन उसका बड़ा हिस्सा निश्चय ही, ऐसा निवेश है जो किसी न किसी कारण से अपनी पहचान छुपाना चाहता है। आखिर वह अपनी पहचान क्यों छुपाना चाहता हैं ?
दूसरे, पीएन का इस्तेमाल वे हेज फंड भी कर रहे हैं जिनका वैध तरीके से भारतीय बाजारों में पंजीकरण संभव नहीं है क्योंकि उनके तौर-तरीकों और निवेश व्यवहार को शेयर बाजार की स्थिरता और दूरगामी हितों के अनुकूल नहीं माना जाता है। दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में वित्तीय संकट से लेकर रूस और अर्जेंटीना तक के वित्तीय संकट में हेज फंडों की भूमिका किसी से छुपी नहीं है। वे अपने अस्थिर और चंचल स्वभाव के लिए बदनाम रहे हैं। वे जल्दी से जल्दी और अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के लिए न सिर्फ शेयर बाजार में सट्टेबाजी और तमाम तरह की अनियमितताएं करने से नहीं हिचकते हैं बल्कि आमतौर किसी शेयर बाजार में जितनी तेजी से आते हैं, उससे तेज गति से निकल जाते हैं। लेकिन जब वे शेयर बाजार से निकलते हैं तो बाजार के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी वित्तीय संकट में फंसा जाते है।
पीएन को लेकर भी चिंता की वजह यही है कि कहीं हेज फंड और ऐसे ही दूसरे अपराधी-असामाजिक तत्व इसका दुरुपयोग न कर रहे हों। यह चिंता इसलिए भी और बढ़ गयी है कि पिछले तीन वर्षों में ही भारतीय शेयर बाजार में पीएन निवेश का बाजार मूल्य मार्च 2004 के 31,875 करोड़ रुपये से बढ़कर इस साल अगस्त में 3,53,484 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। सेबी के ताजा विमर्शपत्र के अनुसार, मार्च, 04 में विदेशी संस्थागत निवेशकों की कुल नियंत्रित परिसंपत्ति (एयूसी) में पीएन का हिस्सा सिर्फ 20 प्रतिशत था जो इस साल अगस्त तक बढ़कर 51.6 फीसदी से उपर पहुंच गया है। इससे पीएन की बढ़ती ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह काफी हद तक एक तो करेला, दूसरे नीम चढ़ा का मामला बनता जा रहा है। शेयर बाजार पहले से ही एफआईआई की धुन पर नाच रहा था, उस पर अब पीएन ने पूरी तरह से बाजार को 'ता-ता, थैया` करने के लिए मजबूर कर दिया है।
डालर के तेज बहाव का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इस साल अक्तूबर तक एफआईआई के जरिए अब तक 17.69 अरब डालर का निवेश आ चुका है जबकि पिछले वर्ष यह रकम 7.99 अरब डालर थी। अकेले अक्तूबर माह में 5.45 अरब डालर का विदेशी संस्थागत निवेश आया है। यही कारण है कि संेसेक्स सिर्फ एक महीने से भी कम समय में यानी 19 सितम्बर से 16 अक्तूबर के बीच 3,383 अंकों की भारी उछाल के साथ 15,669 अंकों से 19,052 अंकों तक पहुंच गया। बाजार विश्लेषकों का अनुमान है कि इस साल 17 अरब डालर से अधिक के एफआईआई निवेश में लगभग 60 से 70 फीसदी पीएन के जरिए आया है।
जाहिर है कि शेयर बाजार की तूफानी गति के साथ-साथ एफआईआई पीएन निवेश की बेकाबू बाढ़ ने सेबी, रिजर्व बैंक सहित वित्त मंत्रालय के भी कान खड़े कर दिए हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि शेयर बाजार और एफआईआई-पीएन निवेश की गति न सिर्फ असामान्य है बल्कि यह आशंका जोर पकड़ने लगी है कि शेयर बाजार में दाल में कुछ काला है। इतना तो साफ है कि शेयर बाजार जिस उंचाई पर पहुंच गया है, वह एक बुलबुले से अधिक कुछ नहीं है। यह बुलबुला एफआईआई-पीएन निवेश ने बनाया है। यह भी तय है कि आज नहीं तो कल इस बुलबुले को फूटना है।
1 टिप्पणी:
सेबी को और कड़े कदम उठाने की जरूरत है ये बात तय है. सेबी को अपना काम करना चाहिए, नतीजा जो भी हो. विदेशी निवेशक नाराज होते हैं तो हों. ये निवेशक टैक्स के नाम पर कुछ देते नहीं, ऊपर से अर्थव्यवस्था का सत्यानाश कर रहे हैं सो अलग.
इतनी तेजी से आनेवाले निवेश पर अंकुश न लगाया गया तो आने वाले समय में हमारे अपने देश के उद्योगों की हालत निश्चित तौर पर ख़राब होने वाली है.
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