शनिवार, नवंबर 10, 2007

बूम या बुलबुला : बड़ी कठिन है डगर फ्लैट की...

'इक बंगला बने न्यारा` के मध्यवर्गीय सपने की कशिश अभी बनी हुई है। हालांकि बंगले की जगह अब फ्लैट ने ली है लेकिन ऐसा लगता है कि इस सपने को जैसे पंख लग गए हैं। किराए के कमरों की जगह अपना सुंदर सा आशियाना बसाने की भागमभाग मची हुई है। महानगरों से लेकर छोटे-बड़े शहरों तक में अपना 'घर` बनाना शायद इतना आसान कभी नहीं था। आज अगर आप के पास अपने 'घर` का सपना है और मासिक कमाई का जरिया तो आपके सपने को हकीकत में बदलने के लिए बैंक, प्रापर्टी डीलर और बिल्डर लाइन लगाकर खड़े हैं। इस प्रापर्टी बाजार में सब कुछ उपलब्ध है-बंगले से लेकर फ्लैट तक और आप अपनी आर्थिक हैसियत से आगे बढ़कर अपने 'घर` का सपना देख और साकार कर सकते हैं।
 
ज्यादा दिन नहीं हुए, कुछ साल पहले तक आप 55 या 60 साल के होने से पहले अपने घर का सपना नहीं देख सकते थे। अपने घर के लिए एक मध्यवर्गीय व्यक्ति को रिटायर होने और बदले में मिलने वाली जमापूंजी का इंतजार करना पड़ता था। लेकिन आज तस्वीर बदल गयी है। अब 30 से 35 साल के युवा अपना आशियाना बसा रहे हैं। वे दिन पीछे छूट गए जब 'दो दीवाने शहर में, रात को और दोपहर में, एक आशियाना ढूंढ़ते` थक और टूट जाते थे। वक्त बदल गया है। अब आशियाना ऐसे दीवानों को ढूंढ़ता फिर रहा है जो अपने सपने को पूरा करने के लिए हर महीने बैंक की ईएमआई भरने को तैयार हैं।

नतीजा, देश एक रीयल इस्टेट (भवन निर्माण) बूम से गुजर रहा है। देश के हर छोटे-बड़े शहर में बिल्डरों, कॉलोनाइजरों, डेवलपर्स और प्रापर्टी डीलरों की बाढ़ सी गयी है जो बंगले से लेकर पेंट हाउस तक और एक कमरे के फ्लैट से लेकर पांच बेडरूम के अपार्टमेंट तक हसीन घर का सपना बेच रहे हैं। नयी-नयी कालोनियां बस रही हैं, आसमान छूते अपार्टमेंट शहरों की नई पहचान बन रहे हैं और रीयल इस्टेट अर्थव्यवस्था के सबसे तेज गति से बढ़ रहे क्षेत्रों में से एक हो गया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कालोनियों और अपार्टमेंटो की यह लहलहाती फसल संभव हुई हैं, बैंकों के लोन से।
 
होम लोन की बारिश : ऋण कृत्वा, गृहम निर्मेत!

सचमुच, होम लोन की बारिश हो रही है। आपके मोबाइल पर आने वाले हर पांचवें अनाम फोन का संबंध इस या उस बैंक के होम लोन से हो सकता है। आपको हर तरह से उकसाने और पे्ररित करने की कोशिश की जा रही है कि होम लोन लेकर अपने कल के सपने को आज साकार कीजिए। और वह मध्यम वर्ग जो कल तक कर्जे लेने में डरता या संकोच करता था, उसमें आज होम लोन लेने की भागमभाग मची हुई है। बैंक भी दोनों हाथ से होम लोन बांट रहे हैं।

आंकड़े खुद इस बात की गवाही दे रहे हैं। ताजे आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार करीब 47 वाणिज्यिक बैंकों ने 2003-04 में हाउसिंग क्षेत्र को 51,981 करोड़ रुपये और रीयल इस्टेट क्षेत्र को 5,577 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था जो 2004-05 में क्रमश:  44.6 और 90.3 फीसदी की तीव्र बढ़ोत्तरी के साथ 75,173 करोड़ रुपये और 10,612 करोड़ रुपये पहुंच गया। लेकिन 2005-06 में बढ़ोत्तरी ने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए। अक्तूबर`05 तक के आंकड़ों के मुताबिक बैंकों के हाउसिंग और रीयल इस्टेट लोन में क्रमश:  125.2 प्रतिशत और 144.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी।

साफ है कि रीयल इस्टेट क्षेत्र में जो बूम दिखाई पड़ रहा है, उसे बहुत हद तक बैंकों के होम लोन ने पैदा किया है। होम लोन पर ब्याज की कम दरों, टैक्स में छूट और मध्यम वर्ग के एक हिस्से की तेजी से बढ़ती आय ने प्रापर्टी बाजार में एक तरह से आग लगा दी है। पिछले दो-तीन वर्षों में जमीन से लेकर फ्लैट्स की कीमत में 50 से 150 फीसदी की वृद्धि हुई है। कुछ शहरों और इलाकों में तो यह वृद्धि 200 से 300 फीसदी तक पहुंच गयी है। इस हद तक कि एक आम मध्यमवर्गीय परिवार अब उन इलाकों में फ्लैट खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा सकता है जो वास्तव में कल तक मध्यमवर्गीय कालोनियां मानी जाती थीं।
 
बूम या बुलबुला: बाबूजी, जरा संभल के!

लेकिन प्रापर्टी की कीमतों में आई इस जबरदस्त उछाल को कुछ लोग बूम मानते हैं तो कुछ इसे बुलबुला करार दे रहे हैं। बुलबुला माननेवालों का कहना है कि कीमतों में इतनी ज्यादा और इतनी तेज उछाल कतई सामान्य नहीं है। यह ठीक है कि मांग बढ़ी है लेकिन वह इतनी अधिक नहीं है कि प्रापर्टी की कीमतें आसमान छूने लगें। फिर ऐसा क्यों है ? प्रापर्टी बाजार के जानकार भी दबी जुबान में स्वीकार करते हैं कि रीयल इस्टेट क्षेत्र में पिछले दो-ढाई वर्षों में आम खरीददार के साथ-साथ ऐसे निवेशक भी बड़ी संख्या में आए हैं जो भारी मुनाफे की उम्मीद में जमकर निवेश कर रहे हैं।

इस निवेश में सट्टेबाजी की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। हैरत की बात यह है कि बैंक भी ऐसे निवेशकों को दोनों हाथ से धन दे रहे हैं जो सट्टेबाजी में जुटे हैं। इन निवेशकों में कुछ बड़े कारपोरेट समूहों, धनी लोगों के अलावा बिल्डर, डेवलपर्स और रीयल इस्टेट कंपनियां शामिल हैं। उन्होंने घरों के दाम वास्तविक कीमत से 50 से 100 प्रतिशत तक बढ़ा दिए हैं। इस स्थिति से रिजर्व बैंक तक चिंतित है जिसने बैंको को रीयल इस्टेट को कर्ज देने में सावधानी बरतने की हिदायत दी है। लेकिन जब बैंकों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो रिजर्व बैंक को मजबूर होकर हाल में रीयल इस्टेट क्षेत्र को कर्जे देने के लिए प्रूडेंशियल नार्म कड़े करने पड़े हैं। इसके बावजूद रीयल इस्टेट में सट्टेबाजी थमी नहीं है। ऐसे में, एक आम मध्यवर्गीय परिवार को फ्लैट खरीदते हुए फूंक-फूंककर कदम उठाने की जरूरत है। उसे अनाप-शनाप कीमत पर फ्लैट खरीदने की हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए अन्यथा बुलबुला फूटते ही फ्लैट गले की फांस भी बन सकता है।
 
ये फ्लैट नहीं आसां : बड़ी कठिन है डगर घर की!

अपने घर का सपना देखनेवालों के लिए मुश्किल सिर्फ यह नहीं है कि प्रापर्टी बाजार में कीमतों में आग लगी हुई है। उसकी मुश्किल यह भी है कि वह किस बिल्डर या डेवलपर्स पर भरोसा करे? उसकी कठिनाई यह है कि बुकिंग के समय हर बिल्डर या डेवलपर इतने सपने दिखाता है जैसे फ्लैट नहीं, स्वर्ग बनाएगा लेकिन पैसे लेने के बाद न तो समय पर फ्लैट की डिलिवरी देता है और न ही वे वायदे पूरा करता है जो बुकिंग करते हुए की थी। गरज यह कि उपभोक्ता के पास शिकायतें ही शिकायतें हैं लेकिन उसकी सुननेवाला कोई नहीं है।
 
उपभोक्ता और दीवानी अदालतों में ऐसे मुकदमों की बाढ़ सी आई हुई है जो बताती है कि उछाल के बावजूद प्रापर्टी बाजार बेलगाम है, वहां कोई नियम-कानून नहीं है और उपभोक्ताओं को बिल्डर और प्रापर्टी डीलर माफिया के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है। यह सचमुच परेशान करनेवाला तथ्य है कि रीयल इस्टेट और प्रापर्टी बाजार के इतने व्यापक विस्तार और उसमें लाखों लोगों और बैंकों के अरबों रुपये लगे होने के बावजूद ऐसी कोई केन्द्रीय या राज्यस्तरीय नियामक एजेंसी नहीं है जो इस बाजार को नियम-कायदे से चलाए, बिल्डरों/डीलरों की कारगुजारियों पर नजर रखे, उन्हें दंडित कर सके और उपभोक्ताओं की शिकायतों को सुन और उनके साथ न्याय कर सके।
 
अच्छी खबर यह है कि केन्द्र सरकार की नींद टूटती हुई दिखाई दे रही है। वह रीयल इस्टेट/प्रापर्टी क्षेत्र के लिए सेबी, ट्राई, इरडा आदि की तर्ज पर एक रेग्यूलेटर नियुक्त करने के लिए एक विधेयक लाने पर विचार कर रही है। हालांकि बड़े बिल्डरों की ताकतवर लॉबी इसका खुलकर विरोध कर रही है लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि केन्द्र सरकार बिल्डरों की बजाए लाखों उपभोक्ताओं के हितों को प्राथमिकता देगी। यही नहीं, केन्द्र सरकार के साथ राज्य सरकारों को भी राज्य स्तर पर रीयल इस्टेट रेग्यूलेटर नियुक्त करने की दिशा में तत्काल कदम उठाना चाहिए, तभी बेलगाम बिल्डरों/डीलरों के गलत तौर-तरीकों पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
 
प्रापर्टी की पार्टी, कब तक रहेगी जारी?

लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि प्रापर्टी बाजार की मौजूदा पार्टी कब तक चलेगी ? विश्लेषकों की मानें तो इस पार्टी पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। इस पार्टी को सबसे बड़ा खतरा होम लोन पर बढ़ती ब्याज दरों से दिख रहा है। कम ब्याज दरों के कारण ही यह पार्टी शुरू हुई थी और टैक्स में छूट, उदार होम लोन, रीयल इस्टेट में 100 फीसदी एफडीआई की इजाजत से इस पार्टी ने रंग पकड़ा था। लेकिन पिछले कुछ महीनों में होम लोन पर ब्याज की बढ़ती दरों से इस पार्टी का रंग फीका होने लगा है।
 
होम लोन पर ब्याज की दरें 7 से 7.5 प्रतिशत सालाना से बढ़कर फ्लोटिंग रेट 8.5 प्रतिशत सालाना और फिक्सड रेट 9.5 से 9.75 प्रतिशत सालाना तक पहुंच चुकी हैं। ब्याज दरों में लगभग दो फीसदी की बढ़ोत्तरी के बावजूद उनपर अभी भी दबाव बना हुआ है और आशंका जताई जा रही है कि अगले छह से आठ महीने में इसमें आधे से लेकर एक फीसदी तक की और की बढ़ोत्तरी हो सकती है।
 
उस स्थिति में क्या होगा ? रीयल इस्टेट पार्टी खतरे में पड़ सकती है क्योंकि उस स्थिति में बैंकों को न सिर्फ होम लोन पर ईएमआई की किस्तों में बढ़ोत्तरी करनी पड़ेगी बल्कि ऋण चुकाने की अवधि भी बढ़ानी पड़ सकती है। उदाहरण के लिए अगर आपने 7 फीसदी की ब्याज दर पर 20 साल की अवधि के लिए होम लोन लिया था और उसमें 2 फीसदी की बढ़ोत्तरी के बाद अगर आप मासिक किस्तों में बढ़ोत्तरी नहीं चाहते है तो आपको 20 साल के बजाए 39 साल तक कर्ज की किस्तें चुकानी पडेंगी। अगर ब्याज दर 10 फीसदी पहुंच गयी तो बैंकों के पास आपकी मासिक किस्तों में अच्छी-खासी बढ़ोत्तरी के अलावा और कोई चारा नहीं बचेगा।

कहना मुश्किल है कि उस स्थिति में कितने मध्यमवर्गीय परिवार घर की बढ़ी हुई किस्तें दे पाएंगे? प्रापर्टी बाजार इस आशंका से पहले ही अंदर-अंदर घबराया हुआ है। बैंक भी संभावित डिफाल्ट को लेकर चिंतित हैं और अगर शेयर बाजार के सेंसेक्स में आई गिरावट कोई संकेत है तो यह कहना गलत न होगा कि रीयल इस्टेट के बुलबुले के फूटने का समय आ गया है। अगर ऐसा होता है तो इसके लिए सरकार, रिजर्व बैंक, वाणिज्यिक बैंक, बिल्डर/डेवलपर्स और डीलर सभी जिम्मेदार होंगे जिन्होंने यह बुलबुला फुलाया है। अलबत्ता, बुलबुले के फूटने की असली कीमत उन लाखों मध्यमवर्गीय परिवारों को चुकानी पड़ सकती है जो एक अदद आशियाने का सपना पूरा करने के लिए न जाने कितने सुख कुर्बान कर रहे हैं।

1 टिप्पणी:

Vijay S. Rathore ने कहा…

Nice article Professor Anand. I would love to read more followup articles on this issue.

Regards,

Vijay