परिवार, बाहुबलियों और भ्रष्ट अफसरों-मंत्रियों-नेताओं से पीछा छुड़ाए बिना सरकार का इकबाल लौटना मुश्किल है
हालिया लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में उम्मीदों के विपरीत समाजवादी पार्टी के बहुत ख़राब प्रदर्शन के बाद अखिलेश यादव की सरकार के पास दो ही विकल्प बचे हैं: राज्य में बेहतर प्रशासन और क़ानून-व्यवस्था की बहाली और समावेशी विकास ख़ासकर सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य के मोर्चे पर युद्धस्तर पर अभियान छेड़ने की पहल करना और राजनीतिक पहलकदमी की कमान संभाल लेना या फिर एक लचर और दिशाहीन सरकार चलाते हुए धीरे-धीरे इतिहास के गर्त की ओर बढ़ने को अभिशप्त हो जाना.
इसके साथ तुरंत क़ानून-व्यवस्था के मामले में ज़ीरो टालरेंस के आधार पर पुलिस अधिकारियों को निष्पक्ष होकर और पूरी सख़्ती के साथ क़ानून-व्यवस्था पर नियंत्रण क़ायम करने का ज़िम्मा दें और सुनिश्चित करें कि कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं हो. पार्टी से अपराधियों और असामाजिक तत्वों की तुरंत छुट्टी होनी चाहिए क्योंकि सपा की सरकार को जितना नुकसान पार्टी से जुड़े असामाजिक तत्वों और अपराधियों ने पहुँचाया है, उतना नुकसान किसी और चीज से नहीं हुआ है. ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए और यह स्पष्ट सन्देश जाना चाहिए कि सरकार ऐसे तत्वों और उनकी हरकतों को कतई बर्दाश्त नहीं करेगी।
दूसरी ओर, समयबद्ध आधार पर सड़क-बिजली-पानी-स्कूल-अस्पताल को दुरुस्त करने के लिए अभियान शुरू करें. इसके लिए मंत्रियों से लेकर ज़िला अधिकारियों को चार-चार महीने का निश्चित टास्क दिया जाए जिसकी मुख्यमंत्री ख़ुद और उनका कार्यालय सख़्त निगरानी करे. मुख्यमंत्री को ख़ुद बिजली और सड़क का ज़िम्मा लेना चाहिए. इसमें ख़ासकर शहरों के इंफ़्रास्ट्रक्चर का पुनर्नवीनीकरण प्राथमिकता पर होना चाहिए.
हालिया लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में उम्मीदों के विपरीत समाजवादी पार्टी के बहुत ख़राब प्रदर्शन के बाद अखिलेश यादव की सरकार के पास दो ही विकल्प बचे हैं: राज्य में बेहतर प्रशासन और क़ानून-व्यवस्था की बहाली और समावेशी विकास ख़ासकर सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य के मोर्चे पर युद्धस्तर पर अभियान छेड़ने की पहल करना और राजनीतिक पहलकदमी की कमान संभाल लेना या फिर एक लचर और दिशाहीन सरकार चलाते हुए धीरे-धीरे इतिहास के गर्त की ओर बढ़ने को अभिशप्त हो जाना.
यह अखिलेश भी जानते हैं कि उनके पास समय बहुत कम है और राजनीतिक रूप से वे कमज़ोर विकेट पर हैं जहाँ से सिर्फ ढलान ही है. चुनावों में हार के बाद उनकी सरकार की चमक फीकी पड़ गई है और स्थिति को तुरंत नहीं संभाला तो सरकार का राजनीतिक इक़बाल भी ख़त्म हो जाएगा.
भाजपा के पक्ष में जिस तरह का ध्रुवीकरण हुआ है और वह सपा के सामाजिक आधार में घुसने में कामयाब हो गई है, उसमें वह अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए कोई कसर नहीं उठा रखेगी. ख़ुद सपा में आंतरिक सत्ता संघर्ष तेज़ होने और नेताओं में सुरक्षित राजनीतिक ठिकाने की ओर पलायन करने की प्रवृत्ति तेज़ होने की आशंका बढ़ रही है.
भाजपा के पक्ष में जिस तरह का ध्रुवीकरण हुआ है और वह सपा के सामाजिक आधार में घुसने में कामयाब हो गई है, उसमें वह अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए कोई कसर नहीं उठा रखेगी. ख़ुद सपा में आंतरिक सत्ता संघर्ष तेज़ होने और नेताओं में सुरक्षित राजनीतिक ठिकाने की ओर पलायन करने की प्रवृत्ति तेज़ होने की आशंका बढ़ रही है.
अखिलेश के पास इस गंभीर और अनप्रिसिडेंटेड संकट से निपटने के लिए मामूली उपायों और फ़ैसलों से काम नहीं चलनेवाला है. उन्हें सपा की मौजूदा बीमारियों से निपटने के लिए उपाय और फ़ैसले भी उतने ही अनप्रिसिडेंटेड करने पड़ेंगे. उन्हें सरकार से लेकर पार्टी तक की गंभीर बीमारी को दूर करने के लिए दवा के बजाय आपरेशन करने का साहस दिखाना होगा. इस मामले में उन्हें अपनी सरकार या परिवार या क़रीबियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने और उसे जोखिम में डालने से हिचकना नहीं चाहिए.
कहने की ज़रूरत नहीं है कि सपा के पुनर्नवीनीकरण और सरकार को ऊर्जावान बनाने के लिए अखिलेश यादव को सबसे पहले अपने परिवार से ही शुरू करना होगा. सपा सिर्फ मुलायम परिवार की पार्टी है, इस धारणा को तोड़ने के लिए सबसे पहले परिवार की पार्टी और सरकार में भूमिका ख़त्म करनी होगी.
इसके लिए ज़रूरी है कि वे सबसे पहले शिवपाल यादव को मंत्रिमंडल से बाहर करें, ख़ुद प्रदेश पार्टी के अध्यक्ष का पद छोड़ें और परिवार के बाक़ी सदस्यों की भूमिका सीमित करें. दूसरी ओर, मंत्रिमंडल से राजा भैया समेत तमाम दागियों और आज़म खान जैसे विवादास्पद मंत्रियों को बाहर करें. मंत्रिमंडल छोटा करें और नए-युवा लोगों को मौक़ा दें.
इसके लिए ज़रूरी है कि वे सबसे पहले शिवपाल यादव को मंत्रिमंडल से बाहर करें, ख़ुद प्रदेश पार्टी के अध्यक्ष का पद छोड़ें और परिवार के बाक़ी सदस्यों की भूमिका सीमित करें. दूसरी ओर, मंत्रिमंडल से राजा भैया समेत तमाम दागियों और आज़म खान जैसे विवादास्पद मंत्रियों को बाहर करें. मंत्रिमंडल छोटा करें और नए-युवा लोगों को मौक़ा दें.

दूसरी ओर, समयबद्ध आधार पर सड़क-बिजली-पानी-स्कूल-अस्पताल को दुरुस्त करने के लिए अभियान शुरू करें. इसके लिए मंत्रियों से लेकर ज़िला अधिकारियों को चार-चार महीने का निश्चित टास्क दिया जाए जिसकी मुख्यमंत्री ख़ुद और उनका कार्यालय सख़्त निगरानी करे. मुख्यमंत्री को ख़ुद बिजली और सड़क का ज़िम्मा लेना चाहिए. इसमें ख़ासकर शहरों के इंफ़्रास्ट्रक्चर का पुनर्नवीनीकरण प्राथमिकता पर होना चाहिए.
यह आसान नहीं है. अखिलेश की राह में सबसे ज़्यादा रोड़े ख़ुद उनके पिता और परिवार के लोग या उनके नज़दीक़ी अटका रहे हैं. उनसे निपटने के लिए ज़बरदस्त साहस और इच्छाशक्ति की ज़रूरत है.
याद रहे जिस तरह से कभी चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर एनटीआर के लक्ष्मी पार्वती प्रेम और उसमें पार्टी को डूबते देखने के बजाय बग़ावत का रास्ता चुना था, वैसे ही अखिलेश को अपने पिता, चाचाओं, भाइयों और संबंधियों के ख़िलाफ़ बग़ावत का झंडा उठाने से हिचकिचाना नहीं चाहिए. अगर वे संकोच करेंगे तो उन्हें अपने परिवार के साथ राजनीतिक हाराकिरी के लिए तैयार हो जाना चाहिए.
लेकिन अगर मौजूदा संकट से निपटने के नामपर अखिलेश को हटाकर मुलायम सिंह खुद मुख्यमंत्री बनने और अखिलेश को उप-मुख्यमंत्री बनाने करते हैं तो इससे बड़ा मजाक और कोई नहीं होगा। उत्तर प्रदेश की जनता का सन्देश बिलकुल साफ़ है. उसने 2012 में सपा को बहुमत की सरकार देते हुए उम्मीद की थी कि वह एक साफ़-सुथरी, ईमानदार, कानून-व्यवस्था और राज्य के समावेशी विकास पर जोर देनेवाली सरकार होगी. खासकर युवा अखिलेश से ज्यादा उम्मीद थी क्योंकि वे डी पी यादव जैसे बाहुबली को नकार कर और विकास की बातें करके सत्ता में आये थे.
लेकिन अगर पारिवारिक तख्तापलट के जरिये मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश की जाती है तो यह जनादेश की भावना के खिलाफ होगा। कहने की जरूरत नहीं है कि मुलायम सिंह समेत शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव और दूसरी ओर, आज़म खान तक राज्य में सभी सुपर चीफ मिनिस्टर हैं और इन सभी की मनमानियों और खब्तों ने ही राज्य में सपा की लुटिया डुबाई है और भाजपा को मौका दिया है.
याद रहे जिस तरह से कभी चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर एनटीआर के लक्ष्मी पार्वती प्रेम और उसमें पार्टी को डूबते देखने के बजाय बग़ावत का रास्ता चुना था, वैसे ही अखिलेश को अपने पिता, चाचाओं, भाइयों और संबंधियों के ख़िलाफ़ बग़ावत का झंडा उठाने से हिचकिचाना नहीं चाहिए. अगर वे संकोच करेंगे तो उन्हें अपने परिवार के साथ राजनीतिक हाराकिरी के लिए तैयार हो जाना चाहिए.

लेकिन अगर पारिवारिक तख्तापलट के जरिये मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश की जाती है तो यह जनादेश की भावना के खिलाफ होगा। कहने की जरूरत नहीं है कि मुलायम सिंह समेत शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव और दूसरी ओर, आज़म खान तक राज्य में सभी सुपर चीफ मिनिस्टर हैं और इन सभी की मनमानियों और खब्तों ने ही राज्य में सपा की लुटिया डुबाई है और भाजपा को मौका दिया है.