‘गुजरात माडल’ का मिथ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
‘गुजरात माडल’ का मिथ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, जून 28, 2013

फेंकने की हद है भाई!!

'रैंबो' यानी कई जगह लीपने की कहानी के सबक   

हमारी तरफ भोजपुरी में एक कहावत है जिसका अर्थ है, ज्यादा तेज या सयाने लोग कई जगह लीपते हैं. भाजपा की ओर से घोषित/अघोषित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के समर्थकों भी लगता है कि मोदी से तेज या सयाना कोई नहीं है. नतीजा यह कि वे भी कई जगह लीपते दिखाई दे रहे हैं.
ताजा मामला उत्तराखंड में उनकी प्रचार मशीनरी के इस दावे का है जिसके मुताबिक उन्होंने और उनके अफसरों ने चमत्कारिक बचाव आपरेशन के जरिये सिर्फ दो दिनों के अंदर 15000 गुजरातियों को सुरक्षित निकालकर वापस गुजरात भेज दिया.

मोदी के इस रेम्बो जैसी कार्रवाई को देश (और दुनिया के भी) के सबसे बड़े अंग्रेजी  अखबार ‘टाइम्स आफ इंडिया’ ने देश को बताना जरूरी समझा. अखबार ने अपनी एक फ्रंट पेज स्टोरी में मोदी की शानदार क्षमताओं, प्रबंधन कौशल और कार्यकुशलता का उल्लेख करती हुई रिपोर्ट छापी. आप उसे यहाँ पढ़ सकते हैं:

और यहाँ भी अखबार में देख सकते हैं:


जाहिर है कि मोदी की प्रोपेगंडा टीम ने सोचा होगा कि उत्तराखंड की व्यापक तबाही और राहत-बचाव में ढिलाई और अराजकता की खबरों के बीच मोदी की यह कार्रवाई उन्हें ‘हीरो’ बना देगी. लेकिन कहते हैं कि झूठ के पाँव नहीं होते हैं. मोदी की प्रोपेगंडा टीम और उनके इर्द-गिर्द बनाई गई हाईप की पोल खुलने में ज्यादा देर नहीं लगी.
जल्दी ही यह साफ़ हो गया कि यह सस्ते प्रोपेगंडा के अलावा और कुछ नहीं है क्योंकि दो दिनों में १५००० गुजरातियों को उत्तराखंड की भयानक आपदा के बीच से निकाले जाने का गणित किसी भी तर्क और तथ्य पर फिट नहीं बैठ रहा था. यही नहीं, इस दावे पर कई तरह के सवाल भी उठने लगे. सोशल मीडिया पर चुटकी ली जाने लगी.

यह मुद्दा बनने लगा कि प्रधानमंत्री पद के दावेदार को सिर्फ गुजरातियों की चिंता है. यहाँ तक कि भाजपा की जन्म-जन्मान्तर की साथी शिव सेना भी मोदी के गुजरात प्रेम पर ताना मारने से नहीं चूकी. आज भाजपा नेता यशवंत सिन्हा भी कटाक्ष करने से नहीं चूके. जाहिर है कि जल्दी ही भाजपा नेतृत्व को अहसास होने लगा कि यह प्रचार उसपर भारी पड़ने लगा है क्योंकि गुजरात के चुनाव हो चुके हैं और अब पहले पांच राज्यों में और फिर आम चुनाव होने हैं.
नतीजा, हड़बड़ी में लेकिन खबर छपने और शुरुआत में इसका बचाव करने के चार दिन बाद कल राजनाथ सिंह ने इस खबर का खंडन किया और दावा किया कि न मोदी ने और न ही भाजपा ने ऐसा कोई दावा नहीं किया है. उन्होंने खुद इस ‘खबर’ पर हैरानी जताई कि यह खबर कहाँ से आई है?

आज ‘द हिंदू’ के प्रशांत झा ने अपनी एक फ्रंट पेज स्टोरी में इसका खुलासा किया है कि इस खबर का स्रोत क्या है और साथ ही, इस खबर को लिखते हुए कैसी पत्रकारीय लापरवाही बरती गई? आप भी यह खबर पढ़िए:


इस प्रकरण ने मोदी की प्रचार मशीनरी की पोल एक बार फिर खोल दी है. लेकिन यह न्यूज मीडिया और पत्रकारों के लिए भी एक बड़ा सबक है. उन्हें तय करना है कि क्या वे इस या उस प्रोपेगंडा मशीन के भोंपू बनना चाहते हैं या वे ऐसे हर दावे की कड़ी जांच-पड़ताल और छानबीन करके लोगों के सामने तथ्यपूर्ण और वस्तुनिष्ठ रिपोर्ट करना चाहते हैं? कहने की जरूरत नहीं है कि अगले आम चुनावों तक ऐसे दावे सरकार की ओर से भी होंगे और विपक्ष खासकर मोदी की प्रचार मशीनरी की ओर से भी.
सवाल यह है कि क्या न्यूज मीडिया की जिम्मेदारी उन दावों को एक पोस्टमैन की तरह लोगों तक पहुंचाने भर की है या उससे प्रोपेगंडा/प्रचार/पी.आर के चमक-दमक, धूम-धड़ाके और धुंधलके से पार सच को सामने लाने की है? सच जानना हर पाठक और दर्शक का अधिकार है क्योंकि उसने अखबार और चैनल के सब्सक्रिप्शन के लिए पैसे चुकाए हैं. यही नहीं, लोकतंत्र में लोगों तक सच्ची, तथ्यपूर्ण, वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष रिपोर्ट पहुँचाना न्यूज मीडिया की जिम्मेदारी है.

लेकिन अफसोस की बात यह है कि लोगों को ‘खबर’ के नामपर ‘पेड न्यूज’ का झूठ बेचा जा रहा है. वायदों और दावों के नामपर देश को झूठे सपने बेचे जा रहे हैं. जीरो को हीरो बनाया जा रहा है. अवतार पैदा करने की कोशिश हो रही है. इस समय गोरख पांडे के सहारे यही कहा जा सकता है:
जागते रहो सोनेवालों!!!!        

मंगलवार, अप्रैल 09, 2013

मोदी के दावों की सच्चाई : आधी हकीकत, आधा फ़साना

हैरानी की बात यह है कि मीडिया भी उनके दावों को बिना जांच-पड़ताल के ‘सच’ की तरह पेश करने में लगा हुआ है  

अगले आम चुनावों के मद्देनजर इन दिनों देश भर में भाजपा नेता और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के अश्वमेध का घोड़ा निकल पड़ा है. पहले दौर में मोदी के प्रचार की मुख्य थीम ‘विकास’ है जिसमें वे हर दूसरे मिनट वे गुजरात में अपने नेतृत्व में हुए कथित ‘विकास’ की आधी सच्ची-आधी झूठी कहानियां सुनाते हैं.
अपने भाषणों में वे बड़े-बड़े दावे करते हैं और उन दावों-कहानियों के जरिये वे ‘शाइनिंग इंडिया’ की तर्ज पर वाईब्रेंट यानी चमकीले ‘गुजरात माडल’ का मिथ रचते हैं.
मुश्किल यह है कि इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़कर न्यूज मीडिया कभी मोदी के श्री-मुख से निकले दावों की पड़ताल और छानबीन की कोशिश नहीं करता है. वह एक पोस्ट-आफिस की तरह मोदी के दावों और कहानियों को जस का तस लोगों तक पहुंचाने का माध्यम भर बनकर रह गया है.

मेरे पास उतने साधन नहीं हैं कि मोदी के दावों की जमीन पर जाकर पड़ताल कर सकूँ. लेकिन गूगल बाबा की कृपा से जो जानकारियां मिलती हैं, वह भी मोदी के फसानों की हकीकत बयान करने के लिए काफी हैं.

ऐसे ही कुछ दावों की पड़ताल और पूरे तथ्य आपके सामने पेश हैं. उम्मीद है कि इससे नेताओं खासकर प्रधानमंत्री के दावेदारों के दावों की बारीकी से पड़ताल की कोशिश कुछ आगे बढ़ेगी.             

नरेन्द्र मोदी का सच-1
नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली में फिक्की की महिला सभा में दावा किया कि उन्होंने गुजरात में स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए ५० फीसदी स्थान आरक्षित करनेवाले विधेयक को पारित किया है लेकिन गवर्नर उसे मंजूरी नहीं दे रही हैं.
तथ्य क्या हैं? यह आधा और तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया ‘सच’ है. पूरा सच यह है कि मोदी सरकार ने गुजरात में स्थानीय प्राधिकरण कानून (संशोधन) विधेयक’२००९ को पारित किया है जिसमें महिलाओं को ५० फीसदी आरक्षण देने के साथ-साथ उतनी ही प्रमुखता से अनिवार्य वोटिंग का प्रावधान भी शामिल किया गया है.
 
गवर्नर ने यह कहते हुए इसे राज्य सरकार और विधानसभा को पुनर्विचार करने के लिए लौटा दिया
कि अनिवार्य वोटिंग का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद १९(१) का उल्लंघन है क्योंकि वोट करने के लिए किसी नागरिक को बाध्य नहीं किया जा सकता है. गवर्नर ने यह अपील भी कि महिलाओं को आरक्षण देनेवाले इस विधेयक को अनिवार्य वोटिंग के प्रावधान से अलग करके पेश और पारित किया जाए.
लेकिन संवैधानिक संस्थाओं की इज्जत करने की बात करनेवाले मोदी ने इसी विधेयक को हू-ब-हू वर्ष २०१० में फिर से पेश कर दिया. इसका और ब्यौरा आप ‘द हिंदू’ की इस रिपोर्ट में पढ़ सकते हैं:

यह है मोदी का ‘सच’ ! लेकिन मोदी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे बड़े आत्मविश्वास से दावे करते या आरोप लगाते हैं. इसके लिए वे बड़ी चतुराई से तथ्यों को आधा-अधूरा पेश करने से लेकर उसे तोड़ने-मरोड़ने से भी परहेज नहीं करते हैं. सबसे हैरानी की बात यह है कि मीडिया भी उनके दावों को बिना जांच-पड़ताल के ‘सच’ की तरह पेश करने में लगा हुआ है.

नरेन्द्र मोदी का ‘सच’-2

इससे पहले दिल्ली में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति में नरेन्द्र मोदी ने दावा किया था कि गुजरात के बजट में कोई घाटा नहीं है...
 

सच यह है कि गुजरात के इस साल के बजट में राजस्व घाटा नहीं है लेकिन उसमें राजकोषीय घाटा २०४९६ करोड़ रूपये का है जो राज्य जी.डी.पी का २.५७ फीसदी है.

यही नहीं, राज्य का कुल कर्ज भी पिछले साल के १.३३ लाख करोड़ रूपये से बढ़कर १.५८ लाख करोड़ रूपये हो गया है.  



नरेन्द्र मोदी का ‘सच’-3

इसी सभा में नरेन्द्र मोदी ने यह भी दावा किया कि गुजरात में पिछले दस साल में बिजली की दरों में कोई वृद्धि नहीं की गई है..

लेकिन सच यह है कि वहां हर तिमाही में बिजली की दरों में वृद्धि होती है..पिछले साल भी वृद्धि की गई थी...


अब इस साल फिर वृद्धि का प्रस्ताव है...



नरेन्द्र मोदी का ‘सच’-4


आपको पोरबंदर से कांग्रेस सांसद विट्ठल राडाडिया की शायद याद होगी. उन्हें पिछले साल अक्टूबर में एक टाल गेट पर राइफल लेकर वहां के कर्मचारियों को धमकाते हुए देखा गया था. उस समय संसद और उससे बाहर भाजपा ने उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर खूब हंगामा किया था. एफ.आई.आर भी हुई थी. बाद में हाई कोर्ट ने भी राडाडिया की आलोचना की थी.
लेकिन ‘पार्टी विथ डिफ़रेंस’ भाजपा और सुशासन के नए मसीहा बनकर उभर रहे नरेन्द्र मोदी ने राडाडिया को पुत्र सहित भाजपा में शामिल करा लिया है. आज नरेन्द्र मोदी खुद राडाडिया के स्वागत के लिए इस मौके पर मौजूद थे.
लेकिन इसमें क्या आश्चर्य? अलग ‘चाल, चरित्र और चेहरे’ वाली पार्टी के लिए यह कोई नई बात नहीं है. भाजपा सुखराम से लेकर बाबू सिंह कुशवाहा और राजा भैय्या तक सबका स्वागत कर चुकी है. यह श्रृंखला बहुत लंबी है. राडाडिया उसकी नई कड़ी भर हैं.

नरेन्द्र मोदी का ‘सच’-5

नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में एक बार भी कारपोरेट लूट के बारे में नहीं बोला है. २ जी से लेकर कोयला आवंटन तक में सत्ता और राजनेताओं की मदद से धड़ल्ले से हो रही सार्वजनिक संपत्ति की कारपोरेट लूट किसी से छुपी नहीं है.

लेकिन भ्रष्टाचार और लूट के आपूर्ति पक्ष के बारे में बात करते हुए ‘लौहपुरुष’ के ‘पुरुषार्थ’ की घिग्घी क्यों बंद जाती है? क्या इसलिए कि गुजरात में भी यही हो रहा है?

यह है मोदी के दावों और कामों की असलियत. लेकिन क्या कोई चैनल/अखबार इस सच्चाई को सामने लाएगा?

क्या पत्रकारों से उम्मीद की जाए कि वे लापरवाह और बैठे-ठाले पत्रकारिता से बाहर निकलेंगे?