मोदी-शरीफ के लिए यह ऐतिहासिक मौका है जब वे संबंधों को बेहतर बनाने की नींव रख सकते हैं
यह सही है कि ऐसे हित समूह और विशेषज्ञ दोनों देशों में हैं जिनकी पूरी विशेषज्ञता दोनों देशों के बीच अविश्वास को और बढ़ाने और टकराव को बनाए रखने में दिखाई पड़ती है. वे अतीतजीवी हैं और दोनों देशों को उसी का बंधक बनाकर रखना चाहते हैं.
ऐसे तत्व खुद प्रधानमंत्री नियुक्त मोदी और पाक
प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की अपनी पार्टियों और गठबंधन के साथियों में भी हैं.
हैरानी की बात नहीं है कि प्रधानमंत्री नियुक्त नरेन्द्र मोदी की पाक प्रधानमंत्री
को शपथ ग्रहण में बुलाने के ‘मास्टरस्ट्रोक’ का सबसे कड़ा विरोध शिव सेना जैसी उग्र
अंधराष्ट्रवादी पार्टियां कर रही हैं.
यही नहीं, खुद संघ
परिवार और भाजपा इस फैसले का उत्साह से स्वागत नहीं कर पा रहे हैं और इसके महत्व
को कम करने के लिए इसे सिर्फ ‘शिष्टाचार’ आमंत्रण और मुलाकात बता रहे हैं. हालाँकि
यह सिर्फ शिष्टाचार मुलाकात नहीं है और भारत-पाकिस्तान के बीच के जटिल कूटनीतिक
रिश्तों को देखते हुए सिर्फ ‘शिष्टाचार’ मुलाकात के कोई मायने भी नहीं हैं.
यह भी कि अगर यह सिर्फ एक शिष्टाचार मुलाकात है तो इसमें साहसिक पहल क्या है? उम्मीद यही करनी चाहिए कि मोदी सरकार भारत-पाकिस्तान संबंधों को सामान्य और बेहतर बनाने के लिए इस मौके को सिर्फ शिष्टाचार मुलाकात तक सीमित नहीं रहने देगी और उससे आगे बढ़ेगी.
इससे दोनों देशों के बीच विभिन्न मुद्दों पर रुकी बातचीत को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी और संबंधों में एक स्थिरता और गतिशीलता आएगी. अनिश्चितता खत्म होगी. इससे उन कट्टरपंथी तत्वों और आतंकवादियों को जवाब मिलेगा जो दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य होने से रोकने के लिए हर तिकडम करते हैं.
अगर यह साफ़ और पहले से तय होगा कि मोदी पाकिस्तान जाएंगे तो इससे उन निहित तत्वों को जोखिम लेने और आतंकवादी हमलों या सैन्य हरकतों के जरिये बातचीत और कूटनीतिक प्रयासों को पटरी से उतारने का मौका नहीं मिलेगा. वैसे भी दो पडोसी देशों के बीच उनके राष्ट्राध्यक्षों को आने-जाने में इतना संकोच और सोच-विचार करने की जरूरत नहीं होनी चाहिए. कई बार आने-जाने से भी रास्ते खुलते जाते हैं.
पाकिस्तान के
प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने भारत के प्रधानमंत्री नियुक्त नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण
में आने का न्यौता स्वीकार कर लिया है. अगर शरीफ को निमंत्रण प्रधानमंत्री नियुक्त
नरेन्द्र मोदी की साहसिक कूटनीतिक पहल है तो मानना होगा कि शरीफ ने उसे स्वीकार
करके कहीं ज्यादा साहस का परिचय दिया है.
यह उन सभी कथित ‘पाकिस्तान विशेषज्ञों’
और ‘सुरक्षा और कूटनीतिक विशेषज्ञों’ को भी करारा जवाब है जो यह दावा कर रहे थे कि
शरीफ के लिए भारत आने का फैसला करना मुश्किल होगा क्योंकि पाकिस्तान में चुनी हुई
सरकार यानी शरीफ की नहीं चलती है और वहां सेना और आई.एस.आई की अनुमति के बिना वे
एक कदम भी नहीं उठा सकते हैं.
कहने की जरूरत नहीं
है कि ये वही हित समूह और विशेषज्ञ हैं जो भारत और पाकिस्तान के संबंधों को
सामान्य और बेहतर नहीं होने देते हैं. ऐसे तत्व दोनों देशों के विदेश-रक्षा
प्रतिष्ठानों और सरकार के अंदर भी है. उनके हित दोनों के देशों के टकराव में हैं
और उसी में उनकी विशेषज्ञता फलती-फूलती है. एक बार फिर से टी.वी चैनलों पर दिखने
लगे हैं. यह सही है कि ऐसे हित समूह और विशेषज्ञ दोनों देशों में हैं जिनकी पूरी विशेषज्ञता दोनों देशों के बीच अविश्वास को और बढ़ाने और टकराव को बनाए रखने में दिखाई पड़ती है. वे अतीतजीवी हैं और दोनों देशों को उसी का बंधक बनाकर रखना चाहते हैं.
कहने की जरूरत नहीं
है कि ऐसे तत्वों में सबसे आगे दोनों देशों की वे धार्मिक-राजनीतिक कट्टरपंथी
ताकतें भी हैं जिनकी राजनीतिक दूकान एक-दूसरे देश के विरोध और भावनाएं भड़काकर ही
चलती हैं. वे यह जमीन आसानी से नहीं छोड़ने को तैयार नहीं हैं क्योंकि इससे उनकी
राजनीति के खत्म होने के खतरे हैं.

यह भी कि अगर यह सिर्फ एक शिष्टाचार मुलाकात है तो इसमें साहसिक पहल क्या है? उम्मीद यही करनी चाहिए कि मोदी सरकार भारत-पाकिस्तान संबंधों को सामान्य और बेहतर बनाने के लिए इस मौके को सिर्फ शिष्टाचार मुलाकात तक सीमित नहीं रहने देगी और उससे आगे बढ़ेगी.
यह ठीक है कि खुद
चुनावों से पहले तक भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के बतौर नरेन्द्र मोदी
ने न सिर्फ यू.पी.ए सरकार की पाकिस्तान के प्रति नरम रवैये की कड़ी आलोचना की और
उसके प्रति सख्त रुख अपनाने की वकालत की. इसके अलावा भाजपा के अनेक नेताओं का
पाकिस्तान विरोध जगजाहिर है.
लेकिन इसके बावजूद अगर प्रधानमंत्री नियुक्त नरेन्द्र
मोदी पाकिस्तान से संबंध बेहतर बनने के लिए पहल कर रहे हैं तो उसका स्वागत किया
जाना चाहिए. उनसे यह अपेक्षा है कि वे नवाज़ शरीफ के भारत आने के फैसले को बेकार
नहीं जाने देंगे और इस मौके को दोनों देशों के संबंधों को बेहतर बनाने के लिए
इस्तेमाल करेंगे.
इस दिशा में सबसे
बेहतर कदम यह हो सकता है कि शरीफ से द्विपक्षीय मुलाकात और चर्चा के बाद प्रधानमंत्री
शरीफ के निमंत्रण को स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री मोदी इस साल पाकिस्तान जाने का
एलान करें. इससे दोनों देशों के बीच विभिन्न मुद्दों पर रुकी बातचीत को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी और संबंधों में एक स्थिरता और गतिशीलता आएगी. अनिश्चितता खत्म होगी. इससे उन कट्टरपंथी तत्वों और आतंकवादियों को जवाब मिलेगा जो दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य होने से रोकने के लिए हर तिकडम करते हैं.
अगर यह साफ़ और पहले से तय होगा कि मोदी पाकिस्तान जाएंगे तो इससे उन निहित तत्वों को जोखिम लेने और आतंकवादी हमलों या सैन्य हरकतों के जरिये बातचीत और कूटनीतिक प्रयासों को पटरी से उतारने का मौका नहीं मिलेगा. वैसे भी दो पडोसी देशों के बीच उनके राष्ट्राध्यक्षों को आने-जाने में इतना संकोच और सोच-विचार करने की जरूरत नहीं होनी चाहिए. कई बार आने-जाने से भी रास्ते खुलते जाते हैं.