सोमवार, नवंबर 12, 2007

शेयर बाजार में कत्लेआम के निहितार्थ...

बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव संकेत है खतरनाक सट्टेबाजी का

मुंबई शेयर बाजार के लिए यह सप्ताह एक दु:स्वप्न साबित हो रहा है। लंबे अरसे बाद बाजार में एक बार फिर जबरदस्त उठापटक और अनिश्चितता का माहौल है। गुरुवार को शेयर बाजार में कत्लेआम का दिन था। बाजार का संवेदी सूचकांक (सेंसेक्स) एक झटके में रिकार्ड 826 अंक लुढ़क गया। इससे पहले बीते सोमवार को भी सेंसेक्स ने 463 अंकों का गोता लगाया था। आज से ठीक दो वर्ष पहले 17 मई 2004 को आम चुनावों में एनडीए की हार के बाद सेंसेक्स 565 अंक लुढ़क गया था। लेकिन उसके बाद सेंसेक्स की लगातार चढ़ान के बीच गुरुवार को 826 अंको की गिरावट पिछले दो वर्षों में सबसे बड़ी गिरावट थी।

लेकिन उससे भी हैरत की बात यह है कि शेयर बाजार में गिरावट का मौजूदा दौर पिछले सप्ताह गुरुवार से शुरू हुआ था। उस समय ऐसा लगा जैसे इतिहास खुद को दोहरा रहा हो। एक ओर विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे थे और दूसरी ओर वामपंथी दलों की बढ़ती ताकत से घबराया सेंसेक्स 177 अंक नीचे लुढ़क गया। 12 मई को भी बाजार में गिरावट का रुख बना रहा और सेंसेक्स 150 अंक और गिर गया। लेकिन इस सप्ताह सेंसेक्स किसी सरकस की तरह व्यवहार करता दिख रहा है। सोमवार को 463 अंक लुढ़कने के बाद सेंसेक्स मंगलवार को 51 अंकों की बढ़त के साथ बंद हुआ। इसके बाद बुधवार को उसने 344 अंकों की ऊंची छलांग लगाई। लेकिन गुरुवार को फिर रिकार्ड गिरावट के साथ बंद हुआ।
 
दरअसल, इस सप्ताह बाजार में जिस तरह से उतार-चढ़ाव और अफरातफरी का माहौल बना हुआ है, उससे साफ है कि बाजार अनिश्चितता की चपेट में आ चुका है। हालांकि सोमवार को बाजार गिरने के बाद मंगलवार को भी जब बाजार एक समय 443 अंक गिर चुका था, तब स्वयं वित्तमत्री पी. चिदम्बरम ने यह कहकर बाजार को संभालने की कोशिश की थी कि घबराने की कोई बात नहीं है और यह बाजार में सामान्य ''करेक्शन`` (सुधार) है। हालांकि इससे बाजार संभल गया लेकिन गुरुवार की गिरावट ने यह साफ कर दिया है कि बाजार में सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। वित्तमंत्री चाहे जो कहें सेंसेक्स में इस तरह की उठा-पटक सामान्य बात नहीं है।
 
सेंसेक्स में इतना उतार-चढ़ाव बाजार के स्वास्थ्य के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है। इससे यह आशंका जोर पकड़ रही है कि शेयर बाजार में कुछ गडबड़ घोटाला तो नहीं चल रहा है ? इस आशंका के कारण बाजार की साख पर सीधा असर पड रहा है। निवेशकों में घबराहट और बेचैनी का माहौल है। इसे भांपकर लंबी चुप्पी के बाद मंदड़िए एक बार फिर बाजार पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं। इससे यह भी पता चलता है कि बाजार में सट्टेबाजों का बोलबाला किस हद तक बढ़ गया है। जब शेयर बाजार एक-एक दिन में 400 से 800 अंक चढ़ने या गिरने लगे तो यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बाजार ठोस फंडामेंटल्स के बजाय देशी-विदेशी सट्टेबाजों की धुन पर नाच रहा है। यही वह समय होता है जब छोटा निवेशक दुविधा और लालच में अपनी गाढ़ी कमाई गंवा देता है और सट्टेबाजों की चांदी हो जाती है।

दरअसल, मुंबई शेयर बाजार में पिछले काफी समय से एक अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। बाजार जिस रफ्तार से लगातार उपर चढ़ रहा था, उसे कतई स्वाभाविक नहीं माना जा सकता है। हालांकि वित्त मंत्रालय से लेकर दलाल स्ट्रीट के जानेमाने बाजार विशेषज्ञ तक शेयर बाजार के इस 'अतार्किक उत्साह` को स्वाभाविक, ठोस फंडामेंटल्स पर आधारित और टिकाऊ बताने में जुटे रहे लेकिन जब सेंसेक्स ने दस हजार अंकों को पार किया, उस समय से ही यह साफ हो गया था कि बाजार बेकाबू हो रहा है।

अगर पिछले दो वर्षों में सेंसेक्स की उठान का ग्राफ देखा जाए तो यह छलांग हैरत में डालनेवाली है। 22 जुलाई 2004 को सेंसेक्स 5,045 अंक पर था। वहां से 17 नवम्बर' 04 को 6,017 अंक और 21 जून'05 को 7,070 अंक से छलांग लगाता हुआ 2 नवम्बर'05 को 8,073 और 30 दिसम्बर' 05 को 9,323 अंक को पार कर गया। इस साल सेंसेक्स पहले 10 हजार, फिर 11 हजार और आखिर में 12 हजार अंकों की 'मनोवैज्ञानिक बाधा` को पार करते हुए 10 मई को रिकार्ड 12,612 अंकों की रिकार्ड उंचाई तक पहुंच गया। सेंसेक्स की इस रफ्तार को देखते हुए विशेषज्ञ इस साल बाजार के 15,000 अंकों को भी फलांग जाने की उम्मीद जाहिर कर रहे थे।

लेकिन दूसरी ओर, शेयर बाजार में अदंर ही अंदर घबराहट का भी माहौल था। सेंसेक्स की तेजी से बाजार का दम फूल रहा था। इस बात की आशंका बहुत दिनों से जतायी जा रही थी कि बाजार बहुत ज्यादा 'गर्म` हो गया है और कभी भी बिकवाली और मुनाफा वसूली का दौर शुरू हो सकता है। बाजार की भाषा में इसे सुधार या करेक्शन कहते हैं। ऐसी स्थित में केवल एक ट्रिगर या छोटी-बड़ी वजह की जरूरत होती है और बाजार के बड़े खिलाड़ी सक्रिय  हो जाते हैं। इस बार भी ट्रिगर के रूप में विधानसभा चुनावों में वामपंथी दलों की जीत को इस्तेमाल किया गया और रही-सही कसर अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में धातुओं और जिंसों की कीमत में आयी गिरावट ने पूरी कर दी। इसके साथ ही अमरीकी रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की खबरों से भी बाजार पर असर पड़ा है।

लेकिन अगर विधानसभा चुनावों के नतीजे ऐसे नहीं आते तो भी कुछ और वजह होती और बाजार का गिरना तय था। बाजार जिस उंचाई पर पहुंच गया है, उसे वहां टिकाए रहना बहुत मुश्किल है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उसे यहां तक लाने में सट्टेबाजी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही है। हालांकि मुंबई शेयर बाजार में सट्टेबाजी कोई नयी चीज नहीं है और उसे बाजार का अभिन्न हिस्सा समझा जाता है। लेकिन पिछले दो वर्षों में इस सट्टेबाजी ने न सिर्फ संगठित रूप ले लिया है बल्कि बाजार पूरी तरह से विदेशी सट्टेबाजों खासकर मुट्ठीभर विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के कब्जे में आ गया है। अब वे ही बाजार के असली नियंता हैं।
 
यही कारण है कि विदेशी बाजारों को छींक आती है तो मुंबई शेयर बाजार को निमोनिया हो जाता है। भारतीय शेयर बाजार पर एफआईआई के दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2005 में उन्होंने शेयर बाजार में लगभग 10.5 अरब डालर का निवेश किया जबकि घरेलू म्युचुअल फंडों ने उसके एक तिहाई से भी कम यानी  2.9 अरब डालर का निवेश किया। इसी तरह चालू साल में अब तक एफआईआई ने लगभग 4.7 अरब डालर का निवेश किया है जबकि घरेलू म्युच्युअल फंडों ने मात्र 1.6 अरब डालर का। साफ है कि एफआईआई शेयर बाजार के प्रमुख खिलाड़ी बन गए हैं। सेंसेक्स की 30 प्रमुख कंपनियों में से अधिकांश में एफआईआई का हिस्सा 20 से 40 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
 
ऐसे में, कोई हैरत की बात नहीं है कि शेयर बाजार के दूसरे खिलाड़ी भी उनकी देखादेखी अपना रूख तय करते हैं। यहां दोहराने की जरूरत नहीं है कि एफआईआई उस विदेशी आवारा पूंजी के प्रतिनिधि हैं जिनका एकमात्र मकसद अधिक से अधिक मुनाफे की खोज में इस बाजार से उस बाजार तक बेरोकटोक घुमना है। यही कारण है कि एफआईआई जितनी तेजी से किसी बाजार में आते हैं, उससे कहीं अधिक तेजी से मुनाफा वसूलकर निकल जाते हैं। दक्षिण पूर्णी एशियाई देशों से लेकर अर्जेंटीना तक में यह कहानी पिछले दस वर्षों मे कई बार अलग-अलग समयों पर दोहरायी जा चुकी है।

हैरत की बात यह है कि दबे-खुले स्वरों में रिजर्व बैंक ने एफआईआई की भूमिका को लेकर अपनी चिंता कई बार जाहिर की है लेकिन यूपीए सरकार सेंसेक्स के आकर्षण में इस कदर मोहग्रस्त हो गयी है कि वह संभावित खतरे से निपटने के लिए उपयुक्त कदम उठाने के बजाय एफआईआई को रिझाने में लगी हुई है। लेकिन ऐसा लगता है कि भारतीय बाजारों से एफआईआई के हनीमून का मौजूदा दौर अब खत्म होने की ओर बढ़ रहा है। पिछले एक सप्ताह से एफआईआई ने जिस तरह से शेयरों की बिकवाली की है, उससे ऐसा लगता है कि वे मुनाफा वसूलकर लौटने के मूड में हैं।

लेकिन हो सकता है कि ऐसा न हो। इसके बावजूद बाजार जिस तरह से चढ़ और गिर रहा है, उससे इतना तो स्पष्ट है कि बाजार में जबरदस्त सट्टेबाजी चल रही है। इतनी अधिक सट्टेबाजी बाजार की सेहत के लिए ठीक नहीं है और इसकी असली कीमत छोटे और मंझोले निवेशकों को चुकानी पड़ती है। इसलिए संभव है कि शेयर बाजार इसबार भी मौजूदा झटके से उबर जाए लेकिन अगर मनमोहन सिंह सरकार ने गुरुवार को शेयर बाजार के ऐतिहासिक गिरावट में छिपी सामयिक चेतावनी को नजरअंदाज किया तो वह शेयर बाजार को लंबे समय तक बचा नहीं पाएगी। खतरे की घंटी बज चुकी है और समय बहुत कम है। अब यह इस सरकार को तय करना है कि वह इतिहास को खुद को दोहराने का मौका देगी या समय रहते हस्तक्षेप करेगी।

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