घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें आसमान छू रही हैं। घरेलू बाजार में सोने की कीमतें रोज नया रिकार्ड बना रही हैं। सोने की कीमत 9,400 रुपये प्रति दस ग्राम तक पहुंच चुकी है। जाहिर है कि शादी-विवाहों के इस मौसम में सोने की आसमान छूती कीमतों ने लोगों को रुला दिया है। आखिर बिना गहनों के दुल्हन और शादी क्या? नतीजा अधिकांश घरों में शादी का बजट गड़बड़ा सा गया है। मुश्किल यह है कि निकट भविष्य में भी सोने की कीमतों में गिरावट की संभावना दिखाई नहीं दे रही है।
हाल फिलहाल के इतिहास में ऐसा कभी नहीं देखा गया जब सोना, शेयर और प्रापर्टी की कीमतों में एक साथ इतना तेज उछाल आया हो। आमतौर पर माना जाता है कि जब शेयर बाजार में गिरावट हो तो लोग सोने या प्रापर्टी में निवेश करते हैं। या फिर जब प्रापर्टी या सोने की कीमतों में गिरावट का रूख हो तो लोग शेयर बाजार में पैसा लगाते हैं। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि तीनों में एक साथ तेजी दिखाई पड़ रही है। इस तेजी ने अच्छे-अच्छे विशेषज्ञों को चकरा दिया है।
सोने का किस्सा तो और भी दिलचस्प है। सोने को आमतौर पर एक स्थिर और जोखिम से रहित अच्छा निवेश माना जाता है। खासकर जब मुद्रास्फीति की दर में बढ़ोत्तरी हो रही हो या बढ़ोत्तरी की आशंका हो, अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल मंडरा रहे हों तो सोने में निवेश का रूझान बढ़ जाता है। लेकिन इस बार कम से कम उपरी तौर पर ऐसा कोई आर्थिक संकट नहीं दिख रहा है और मुद्रास्फीति की दर भी पूरी तरह से काबू में है। फिर क्या कारण है कि सोने की कीमतों में आग लगी हुई है ?
दरअसल, घरेलू बाजार में सोने की कीमतों में भारी वृद्धि का सीधा संबंध अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतों में हो रही लगातार बढ़ोत्तरी से है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें अपने 25 साल की सर्वाधिक उंचाई पर है। इसकी सबसे बड़ी वजह सट्टेबाजी है। पिछले कुछ महीनों में आवारा वित्तीय पूंजी का ध्यान सोने की ओर गया है और उसने भारी मुनाफे की उम्मीद में सोने में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। इससे अंतर्राष्ट्रीय सर्राफा बाजार में अचानक सोने की कीमते पिछलें 25 वर्षों का रिकार्ड तोड़ने लगी है।
लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतों में भारी वृद्धि के लिए काफी हद तक भारतीय उपभोक्ता भी जिम्मेदार हैं जिनकी सोने की भूख कीमतों में बढ़ोत्तरी के बावजूद लगातार बढ़ती जा रही है। भारत सोने का दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। सोने के प्रति भारतीयों की इस भूख के कारण ही मशहूर अर्थशास्त्री कींस ने इसे ''अनुर्वर संग्रहण`` बताते हुए जेवांन को उद्धृत किया था जिन्होंने भारत को ''सोने का कुंड`` बताया था। हालांकि भारतीयों में सोने का यह मोह आज से नहीं है और इसके ऐतिहासिक सामाजिक-सांस्कृतिक कारण हैं लेकिन उदारीकरण के बाद हाल के वर्षों में सोने की मांग ने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए है।
हाल के कुछ वर्षों के आंकड़े इसके गवाह हैं। वर्ष 2000-2001 में भारत ने कुल 18,829 करोड रुपये का सोना आयात किया था। 2004-05 पहुंचते-पहुंचते सिर्फ पांच वर्षों में सोने का आयात लगभग ढाई गुना बढ़कर 46,189 करोड रुपये तक पहुंच गया। 2004-05 में भारत ने कुल 770 टन सोने का आयात किया। ध्यान देने की बात यह है कि उदारीकरण के पहले सोने का आयात प्रतिबंधित था लेकिन तस्करी आदि के जरिये हर साल 150 से 175 टन सोना देश के अंदर आता था। 1991 में प्रवासी भारतीयों के जरिये सोने के आयात की अनुमति मिलने के बाद सोने का आयात उछलकर 350 टन तक पहुंच गया। लेकिन 1997 में सोने के आयात को खुले आयात लाइसेंस (ओजीएल) के तहत डाल देने और बाद में उस पर लगने वाली ड्यूटी में कटौती के बाद सोने के आयात में और तेजी आ गई।
आज देश के कुल आयात में सोने और चांदी का हिस्सा लगभग 10 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। यही नहीं, सोने और चांदी के आयात में वर्ष 2003-04 और 2004-05 में लगातार सालाना 60 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। सवाल यह है कि जब सोने की कीमतें आसमान छू रही हैं तो सोना खरीद कौन रहा है ? इस सवाल का जवाब ढूढंना बहुत जरूरी है क्योंकि सोने के आयात में न सिर्फ सालाना 46 हजार करोड रुपये से ज्यादा की कीमती विदेशी मुद्रा जाया हो रही है बल्कि देश कुल जीडीपी का 1.5 फीसदी से अधिक रकम एक तरह से ''मृत निवेश`` के रूप में बरबाद कर रहा है। अगर यह रकम उत्पादक निवेश मे लगती तो अर्थव्यवस्था को नई गति मिलती।
ऐसा लगता है कि भारत में भी सोने की मांग और कीमतों में उछाल के पीछे सट्टेबाजी की अहम भूमिका है। हाल के सप्ताहों में सोने के साथ-साथ चांदी की कीमतों में ऐतिहासिक उछाल और गिरावट से इस आशंका को बल मिलता है। सर्राफा बाजार में सट्टेबाजों की सक्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगता है कि बाजार में छोटे खरीददारों यानी शादी-विवाह में गहने बनवाने के लिए सोना खरीदने वालों की मांग में कमी आई है। मांग में गिरावट के बावजूद कीमतों में उछाल से साफ है कि सोने को सट्टेबाजों की नजर लग गई है।
इसके अलावा सोने की कीमतों में तेज उछाल की एक बड़ी वजह यह भी है कि हाल के वर्षों में सोना और प्रापर्टी काले धन के निवेश और काले को सफेद बनाने के सबसे बड़े माध्यम बन गए हैं। नकद की तुलना में काले धन को सोने के रूप में रखना न सिर्फ आसान है बल्कि वह जोखिम रहित और मुद्रास्फीति के दबावों से भी सुरक्षा देता है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक देश में हर साल जीडीपी का लगभग 20 से 40 प्रतिशत काला धन पैदा हो रहा है। यह रकम लाखों करोड बैठती है। अगर इसका कुछ हिस्सा भी सोने में निवेश के लिए आ रहा हो तो अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि सोने की कीमतें आसमान छूने लगेंगी।
ऐसे में, अगले कुछ महीनों में होने वाली शादियों में दुल्हनों को बिना गहने के या कम गहनों के साथ ही ससुराल जाना पड़ेगा क्योंकि सोने को फिलहाल, सट्टेबाजों और काले धन के सौदागरों की नजर लग गई है। अफसोस की बात यह है कि सट्टेबाजों और काले धन के सौदागरों की सुविधा और मुनाफे के लिए हर साल देश का अरबों रुपया जाया हो रहा है। समय आ गया है जब दुल्हने गहनों के लिए ना करें।
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