रविवार, जनवरी 30, 2011

रजनीगन्धा क्रांति की सुगंध


अरब जगत में परिवर्तन की लहर के आगे दमनकारी सत्ताएं लड़खड़ाने लगी हैं


रजनीगन्धा की सुगंध तेजी से फ़ैल रही है. ट्यूनीशिया से शुरू हुई रजनीगन्धा क्रांति अब मध्य पूर्व के ह्रदय मिस्र तक पहुंच गई है. मिस्र एक कमल क्रांति से गुजर रहा है. वैसे तो पूरा अरब जगत उबल रहा है. लेकिन ट्यूनीशिया से लेकर अल्जीरिया, यमन, जोर्डन और मिस्र में लोगों का गुस्सा सडकों पर फूट पड़ा है. ‘इकानामिस्ट’ पत्रिका ने लिखा है कि अली बाबा (बेन अली) गए. क्या अब अरब जगत के चालीस चोरों की बारी है?

ऐसा लगता है कि ट्यूनिशियाई राष्ट्रपति बेन अली के बाद अब मिस्र के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक के तख़्त और ताज को उछाले जाने की बारी आ गई है. पूरे मिस्र में जिस तरह से लोग मुबारक सरकार के खिलाफ सडकों पर उतर आए हैं, उसे देखते हुए यह साफ हो गया है कि मुबारक अब कुछ दिनों के ही मेहमान हैं.

पिछले पांच दिनों से राजधानी काहिरा में विद्रोह की स्थिति है जो दिन पर दिन और ताकतवर होता जा रहा है. कर्फ्यू और सैनिक टैंकों की मौजूदगी के बावजूद के बावजूद हजारों-लाखों लोग सड़कों पर उतर आए है. वे राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. ऐसे ही प्रदर्शनों की खबरें पूरे देश से आ रही हैं.

पिछले तीस साल से मिस्र की सत्ता को कब्जा किए बैठे मुबारक के पास अब विकल्प नहीं रह गए हैं. किसी भी अन्य तानाशाह की तरह मुबारक भी लोगों पर गोलियाँ चलवा सकते हैं, सेना को उतारकर नरसंहार करवा सकते हैं लेकिन शुक्रवार के प्रदर्शनों से साफ हो गया है कि लोगों में अब दमन का डर खत्म हो गया है. वे हर क़ुरबानी देने के लिए तैयार दिख रहे हैं.

कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे हालात में सेना और पुलिस के पास भी कोई खास विकल्प नहीं रह जाते हैं. जब आम लोग सडकों पर उतर आते हैं तो दमनकारी सत्ताओं का दमन भी जवाब देने लगता है. ट्यूनीशिया में यही हुआ. जब लोग सडकों पर उतर आए और उन्होंने पीछे हटने से इंकार कर दिया तो सेना ने भी उनपर गोलियाँ चलाने से मना कर दिया. नतीजा बेन अली को देश छोड़कर भागना पड़ा.

इस घटना ने सोए हुए अरब जगत खासकर मिस्र को जगा दिया है. मिस्र में लोगों खासकर नौजवानों को यह महसूस हुआ कि जब छोटा से देश ट्यूनीशिया के लोग बेन अली के पुलिस राज को चुनौती दे सकते हैं तो वे क्यों नहीं?

कहते हैं कि मिस्र के लोगों में बहुत सब्र है. पिछले तीस साल से वे मुबारक को झेल रहे हैं लेकिन सहने की भी एक सीमा होती है. दोहराने की जरूरत नहीं है कि मुबारक के नेतृत्व में मिस्र राजनीतिक रूप से अमेरिकी कठपुतली बन गया है. लोकतंत्र के नाम पर सिर्फ चुनाव का धोखा है. न बोलने की आज़ादी है और न अपने हकों के लिए गोलबंद होने की. एक तरह का पुलिस राज है जहां विरोध का मतलब जेल, पुलिसिया उत्पीडन और मौत है. ऊपर से बेरोजगारी और महंगाई आसमान छू रही है. नौजवानों के सामने कोई भविष्य नहीं है.

लेकिन जब से लोगों को पता चला है कि मुबारक अपने बेटे गमाल को राष्ट्रपति बनाने की तैयारी कर रहे हैं, लोगों का धैर्य जवाब दे गया है. लोगों खासकर नौजवानों का गुस्सा फूट पड़ा है. ऐसा लगता है कि सैनिक और पुलिस ताकत के बल पर जबरन लोगों का मुंह बंद रखने और हर तरह के विरोध को कुचल देने वाली मुबारक हुकूमत ने मिस्र में जिस तरह राज कायम रखा था, उसकी सीवन उधड़ने लगी लगी है.

कहने की जरूरत नहीं है कि ट्यूनीशिया से लेकर मिस्र तक परिवर्तन की इस नई लहर ने लोगों में नई उम्मीदें जगा दी हैं. हालांकि अभी यह कहना थोड़ी जल्दी होगी कि यह रजनीगन्धा क्रांति अरब जगत को कहां ले जायेगी? लेकिन इतना तय है कि अरब जगत में लोग परिवर्तन चाहते हैं. आइये, इसका स्वागत करें.

देहरादून, ३० जनवरी'११

3 टिप्‍पणियां:

issbaar ने कहा…

बहुत खूब!

नई राह ने कहा…

आपने बिलकुल सही कहा लोग परिवर्तन चाहते है लेकिन अरब में ही नहीं, हर उस देश की सरकार से जो लोकतंत्र की चादर ओड़कर तानाशाही रवैय्या आपने हुए है.

अभय तिवारी ने कहा…

भाई, जैस्मीन चमेली है.. रजनीगंधा को इंग्रेज़ी में ट्यूबरोज़ बताते हैं..