सनसनीखेज खबर और दृश्यों की बेसब्र तलाश में न्यूज चैनल ख़बरें 'गढ़ने’ लगे हैं
कहने की जरूरत नहीं है कि यह एक क्लासिक नैतिक दुविधा है जिसका उत्तर आसान नहीं है और वह बहुत हद तक मौके की नजाकत और उसमें हस्तक्षेप करने की पत्रकार की सामर्थ्य और उसके तरीके पर निर्भर करती है. ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब विषम परिस्थितियों में पत्रकारों ने घटना को रिपोर्ट भी किया है और पीड़ित को बचाने की भी कोशिश की है. लेकिन ऐसे भी उदाहरण है जब पत्रकारों ने पीड़ित को बचाने के बजाय उसे रिपोर्ट करने को प्राथमिकता दी है और उसकी कीमत चुकाई है.
दरअसल, कुछ अलग, सबसे पहले, ड्रामैटिक और सनसनीखेज खबर और दृश्यों की बेसब्र तलाश न्यूज चैनलों को यहाँ तक ले आई है, जहाँ उनके रिपोर्टर और संपादक अब ‘ख़बरें गढ़ने’ लगे हैं. यहाँ तक कि इसके लिए वे एक युवा लड़की को सरेआम बेइज्जत और नंगा करने की हद तक पहुँच गए.
('तहलका' के 15 अगस्त के अंक में 'तमाशा मेरे आगे' स्तम्भ में प्रकाशित टिप्पणी)
यह सचमुच हिला देनेवाली घटना थी. देश ने न्यूज चैनलों के पर्दे पर
देखा कि असम की राजधानी गुवाहाटी की एक
मुख्य सड़क पर पब के बाहर रात के करीब साढ़े नौ बजे के आसपास एक युवा लडकी को कोई
१५-२० लम्पटों-गुंडों की भीड़ ने घेर लिया, उसे सरेआम बेइज्जत किया, बुरी तरह पीटा-घसीटा,
उसके कपड़े फाड़ने और नंगा करने की कोशिश की. मदद के लिए गुहार करती उस लड़की की किसी
ने कोई मदद नहीं की. न राहगीर रूके, न आसपास खड़े लोग आगे आए और न पुलिस नजर आई.
हालाँकि
उस चैनल और खासकर उसके रिपोर्टर और कैमरामैन की भूमिका पर भी सवाल उठे कि उन्होंने
ने भी उस लडकी की कोई मदद नहीं की और उल्टे पूरी घटना को फिल्माने में जुटे रहे.
कुछ चैनलों ने यह बहस उठाई कि उस परिस्थिति में जब कोई संकट या
मुश्किल में हो, एक रिपोर्टर की भूमिका क्या होनी चाहिए? क्या उसे पहले पीड़ित को
बचाने की कोशिश करनी चाहिए या उसे पहले रिपोर्ट करने और इसके लिए घटना को फिल्माने
को प्राथमिकता देनी चाहिए? कहने की जरूरत नहीं है कि यह एक क्लासिक नैतिक दुविधा है जिसका उत्तर आसान नहीं है और वह बहुत हद तक मौके की नजाकत और उसमें हस्तक्षेप करने की पत्रकार की सामर्थ्य और उसके तरीके पर निर्भर करती है. ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब विषम परिस्थितियों में पत्रकारों ने घटना को रिपोर्ट भी किया है और पीड़ित को बचाने की भी कोशिश की है. लेकिन ऐसे भी उदाहरण है जब पत्रकारों ने पीड़ित को बचाने के बजाय उसे रिपोर्ट करने को प्राथमिकता दी है और उसकी कीमत चुकाई है.
इस आलोचना के बावजूद काफी लोगों ने माना कि गुवाहाटी के इस शर्मनाक
वाकये को सामने लाकर और अपराधियों की पहचान करने में मदद करके चैनल और उसके
रिपोर्टर ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों और पुलिस के नाकारेपन का पर्दाफाश
करके अपना प्रोफेशनल फर्ज निभाया है.
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई. जल्दी ही एक
ऐसी भयावह सच्चाई सामने आई जिसने टी.वी पत्रकारिता को शर्मसार कर दिया. पता चला कि
इस शर्मनाक हादसे के लिए दर्जन भर से ज्यादा अपराधी लम्पटों के अलावा एक असमिया
चैनल का रिपोर्टर भी उतना ही जिम्मेदार है जिसने अपराधियों को न सिर्फ उस लड़की को
बेइज्जत करने के लिए उकसाया बल्कि संभवतः इसकी पूर्व योजना भी बनाई.
लेकिन क्या इसके लिए वह अकेला रिपोर्टर जिम्मेदार है? चैनल के
संपादकों ने रा-फुटेज में रिपोर्टर की उकसावे वाली भूमिका को क्यों अनदेखा किया?
हालाँकि इस बीच, रिपोर्टर की गिरफ्तारी हो चुकी है और संपादक को इस्तीफा देने पड़ा
है लेकिन असल सवाल यह है कि एक रिपोर्टर को इस तरह एक खबर ‘बनाने’ यानी
मैन्युफैक्चर करने की जरूरत क्यों पड़ी या उसकी प्रेरणा कहाँ से मिली? दरअसल, कुछ अलग, सबसे पहले, ड्रामैटिक और सनसनीखेज खबर और दृश्यों की बेसब्र तलाश न्यूज चैनलों को यहाँ तक ले आई है, जहाँ उनके रिपोर्टर और संपादक अब ‘ख़बरें गढ़ने’ लगे हैं. यहाँ तक कि इसके लिए वे एक युवा लड़की को सरेआम बेइज्जत और नंगा करने की हद तक पहुँच गए.
जाहिर है कि यह घटना सभी छोटे-बड़े न्यूज चैनलों के लिए एक बड़ा सबक है.
इसके बावजूद अधिकांश राष्ट्रीय चैनल ऐसा जताने की कोशिश कर रहे हैं कि यह घटना एक
अपवाद है और सिर्फ क्षेत्रीय चैनलों तक सीमित और उनके बीच की अनैतिक होड़ का नतीजा
है. गोया, राष्ट्रीय चैनल दूध के धुले हैं और उनका इस गंदगी से दूर-दूर तक कोई
वास्ता नहीं है.
लगता है कि चैनल स्मृति दोष के शिकार हो गए हैं. क्या वे दिल्ली
की शिक्षिका उमा खुराना के फर्जी स्टिंग या जालंधर से लेकर बनारस तक लोगों को उकसा
कर आत्मदाह करने या जहर पीने के लिए प्रेरित करने और बिना ड्राइवर की कार जैसे
अनेकों मामले भूल गए?
गुवाहाटी की शर्म एक चेतावनी और सबक दोनों है. चैनलों को याद रखना
चाहिए कि ऐसे शर्मनाक मामलों से सबक नहीं लेनेवाले उन्हें दोहराने के लिए अभिशप्त
होते हैं. ('तहलका' के 15 अगस्त के अंक में 'तमाशा मेरे आगे' स्तम्भ में प्रकाशित टिप्पणी)
2 टिप्पणियां:
ye ghatna bahut afsosjanak hai.khaskar tb jb ye hamare desh me ho rhi ho aur kisi mahila ke sath ho rhi ho.wo bhi aise pradesh me jise is lihaj se surkchit mana jata hai.isme ptrkar ki bhumika ne to sari haden par kr di.aisi ghtnaen mahila varg ke aandr asurkchbodh ko badava deti hai.
aschry ki bat ye hai aisi paristhi me koi bhi mdd nhi krta.pure smaj hi gairjimmedarana vyvhar krta hai.tathakathit jimmedar varg bhi kaval 14 feb ko hi jagte hai....
mission se profession aur phir commercialization se hote hue aaj patrakarita ''cheer haran'' tak pahunch gayi. Ye durdin nahi to aur kya hai!!! Anoop kumar mishra
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