वालमार्ट के आगे कौन टिकेगा?
दूसरी किस्त
अपने विशाल आकार और कारोबार के कारण वालमार्ट के आगे भारत के छोटे दूकानदारों के टिकने की बात तो दूर है, देश के सबसे बड़े कारपोरेट समूहों के लिए भी उससे प्रतियोगिता करना मुश्किल होगा. देश की दस सबसे ज्यादा मुनाफा कमानेवाली कंपनियों का कुल मुनाफा भी वालमार्ट के मुनाफे से कम है. ऐसे में, कितनी देशी कम्पनियाँ उससे मुकाबले में टिक पाएंगी?
('दैनिक भास्कर', नई दिल्ली के 6 अगस्त के अंक में प्रकाशित टिप्पणी)
दूसरी किस्त
वालमार्ट भारतीय बाजार में घुसने के लिए बेताब है. देश में भी
अर्थव्यवस्था के मैनेजरों से लेकर अमीरों और मध्यवर्ग का एक हिस्सा वालमार्ट के
लिए पलक-पांवड़े बिछाये हुए है. आखिर वालमार्ट कोई मामूली कंपनी नहीं है. यह दुनिया
की सबसे बड़ी और ताकतवर कंपनियों की वर्ष २०१२ की फार्च्यून ५०० सूची में दूसरे
नंबर की कंपनी है.
इससे पहले वह लगातार दो वर्षों तक पहले नंबर पर थी. उसने वर्ष
२०११ में कुल ४४७ अरब डालर का कारोबार किया. हालाँकि उसके मुनाफे में मामूली
गिरावट दर्ज की गई है, इसके बावजूद उसका कुल मुनाफा १५.७ अरब डालर का रहा.
इसकी कुल परिसंपत्तियां १९३.४ अरब डालर की है जबकि शेयर बाजार में
उसकी कीमत ७१.३ अरब डालर है. अलग-अलग नामों से दुनिया के १५ देशों में उसके कोई
८९७० सुपर स्टोर्स हैं और कोई २२ लाख कर्मचारी/अधिकारी काम करते हैं. हर सप्ताह
उसके स्टोर्स में कोई दस करोड़ उपभोक्ता पहुँचते हैं. (भारत में वह थोक व्यापार
(कैश एंड कैरी) में भारती के साथ संयुक्त उपक्रम में ‘बेस्ट प्राइस’ नाम से
स्टोर्स चलाती है.) अपने विशाल आकार और कारोबार के कारण वालमार्ट के आगे भारत के छोटे दूकानदारों के टिकने की बात तो दूर है, देश के सबसे बड़े कारपोरेट समूहों के लिए भी उससे प्रतियोगिता करना मुश्किल होगा. देश की दस सबसे ज्यादा मुनाफा कमानेवाली कंपनियों का कुल मुनाफा भी वालमार्ट के मुनाफे से कम है. ऐसे में, कितनी देशी कम्पनियाँ उससे मुकाबले में टिक पाएंगी?
वालमार्ट का राजनीतिक रसूख भी बहुत ज्यादा है. यहाँ तक कि मौजूदा
अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन वालमार्ट के बोर्ड आफ डाइरेक्टर में रह चुकी
हैं और उसके लिए खुलकर लाबीइंग कर रही हैं. यही नहीं, उसने पिछले साल भारत में
प्रवेश के लिए लाबीइंग पर घोषित तौर पर १५ लाख डालर (७५ करोड़ रूपये) खर्च किये थे.
कहने की जरूरत नहीं है कि भारत में भी वालमार्ट के हक में बोलने और उसके लिए दबाव
बनाने वालों की कमी नहीं है. आखिर पैसा बोलता है जोकि वालमार्ट के पास अथाह है.
लेकिन खुद अमेरिका में
वालमार्ट के श्रमिक विरोधी रवैये, कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन न देने से लेकर
पर्यावरण और श्रम कानूनों आदि के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं. उसपर अपने
प्रतियोगियों को प्रतियोगिता से बाहर करने के लिए अनुचित तौर-तरीके अपनाने के आरोप
भी लगते रहे हैं. ('दैनिक भास्कर', नई दिल्ली के 6 अगस्त के अंक में प्रकाशित टिप्पणी)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें