गुरुवार, अक्टूबर 28, 2010

किसकी धुन पर नाच रहा है शेयर बाजार?

आवारा पूंजी पर ऐसे आँख मूंदकर भरोसा करना खतरे से खाली नहीं है


मुंबई शेयर बाजार एक बार फिर 20 हजार अंकों के ऊपर पहुंच चुका है. पिछले कुछ महीनों खासकर सप्ताहों में शेयर बाजार की तेज रफ़्तार ने सबको चौंका दिया है. हालांकि दीपावली अभी दूर है लेकिन शेयर बाजार में अभी से पटाखे छूट रहे हैं. बाजार के जानकारों को भरोसा है कि दीपावली तक बाजार 21 हजार अंकों के अपने पिछले रिकार्ड को आराम से तोड़ देगा. याद रहे कि पिछली बार 8 जनवरी’08 को सेंसेक्स ने 21078 अंकों का रिकार्ड बनाया था. वैसे दावा करनेवाले तो यह भी कह रहे हैं कि सब कुछ ठीक चला तो दीपावली के आसपास सेंसेक्स 22 हजार का नया रिकार्ड भी बना सकता है. कुछ उत्साही तेजड़िए अगले साल बजट तक बाजार के 25 हजार अंकों तक पहुँचने की भविष्यवाणी भी कर रहे हैं.

गरज यह कि बाजार के अधिकांश विश्लेषक मानकर चल रहे हैं कि आनेवाले दिनों में सेंसेक्स इसी तरह चढ़ता रहेगा. उनके इस आत्मविश्वास की सबसे बड़ी वजह विदेशी संस्थागत निवेशक (एफ.एफ.आई) हैं जो एक बार फिर भारतीय बाजार पर खासे मेहरबान हैं. आंकड़ों के मुताबिक इस साल अक्टूबर के आखिरी सप्ताह तक देश में लगभग 24.48 अरब डालर का एफ.एफ.आई निवेश आ चुका है. यह किसी एक वर्ष में एफ.एफ.आई निवेश का रिकार्ड है. यही नहीं, अकेले अक्टूबर में अब तक 6.11 अरब डालर के एफ.एफ.आई निवेश ने बाजार को गरमाया हुआ है. यह भी किसी एक महीने में सर्वाधिक एफ.एफ.आई निवेश का रिकार्ड है.

माना जा रहा है कि आनेवाले महीनों में भी एफ.एफ.आई निवेश की बाढ़ का प्रवाह इसी तरह बना रहेगा. इसकी वजह यह है कि अमेरिका और यूरोप के विकसित देशों में अत्यधिक उदार मौद्रिक नीति के कारण बाजार सस्ती मौद्रिक तरलता से लबालब है. असल में, अमरीका और अन्य यूरोपीय देशों की सरकारों और केन्द्रीय बैंकों ने घरेलू मंदी से लड़ने के लिए शुरूआती वित्तीय उत्प्रेरक (फिस्कल स्टिमुलस) की रणनीति छोड़कर अति उदार मौद्रिक नीति पर जोर बढ़ा दिया है. इस कारण, अमरीका आदि देशों में लगभग शून्य प्रतिशत की ब्याज दर पर कर्ज उपलब्ध है. इन देशों की छोटी-बड़ी वित्तीय संस्थाएं इसका जमकर फायदा उठा रही हैं.

इनकी रणनीति यह है कि वे इस उदार मौद्रिक नीति का फायदा उठाते हुए बैंकों से भारी मात्रा में कर्ज उठा रही हैं और उसे उन भारत जैसे अन्य ‘उभरते हुए बाजारों’ में निवेश कर रही हैं, जहां उन्हें ज्यादा मुनाफा मिल रहा है. इसके जरिये वे 07-08 में अमेरिका में सब-प्राइम संकट के कारण पैदा हुए वैश्विक वित्तीय संकट और मंदी के दौरान हुए भारी आर्थिक नुकसान की भरपाई करने में जुटे हैं. असल में, अमेरिका समेत अन्य विकसित देशों की सरकारों और उनके केन्द्रीय बैंकों ने इन वित्तीय संस्थाओं की मदद के लिए ही जानबूझकर ऐसी मौद्रिक नीति को बढ़ावा दिया है.

इसका नतीजा यह हुआ है कि पिछले एक साल में सिर्फ भारत ही नहीं, ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भी भारी मात्रा में एफ.एफ.आई निवेश आया है. इससे इन सभी देशों में शेयर बाजार के अलावा जिंस बाजार में भी खासा उछाल देखा जा रहा है. कुछ विश्लेषकों के मुताबिक इस साल दुनिया भर के उभरते हुए बाजारों में आये एफ.एफ.आई निवेश का लगभग 40 प्रतिशत अकेले भारतीय बाजारों में आया है. हालांकि ज्यादातर बाजार विश्लेषक इसे एफ.एफ.आई निवेशकों की भारतीय बाजार में बढ़ते भरोसे का प्रतीक मानते हैं. लेकिन दबी जुबान में वे यह भी स्वीकार करते हैं कि एफ.एफ.आई निवेश की मात्रा और गति दोनों, कुछ ज्यादा ही तेज हैं.

साफ है कि एफ.एफ.आई निवेशक शेयर बाजार में जमकर सट्टेबाजी कर रहे हैं. कारण यह कि वे यहां जल्दी से जल्दी और अधिक से अधिक मुनाफा बनाने आये हैं. सट्टेबाजी उनका स्वाभाव है. जैसे ही किसी और देश के बाजार में उन्हें अधिक मुनाफा दिखेगा, वे यहां से मुनाफा बनाकर और पैसा निकलकर चल देंगे. इसी कारण उन्हें आवारा पूंजी भी कहा जाता है. इस पूंजी से वास्तविक अर्थव्यवस्था को कोई खास फायदा नहीं होता है लेकिन जोखिम जरूर बढ़ जाता है.

आज शेयर बाजार पूरी तरह से उनके कब्जे में है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि भारतीय शेयर बाजार अभी भी न तो बहुत गहरा है और न ही व्यापक. उनकी ताकत का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अमेरिकी सब-प्राइम संकट के बाद जब उन्होंने बाजार से पैसा निकलना शुरू किया, उसके कारण ढाई साल पहले 21 हजार अंकों तक पहुंच चुका सेंसेक्स कुछ ही महीनों में लुढककर 8 हजार अंकों तक पहुंच गया था.

हालांकि इसमें कोई नई बात नहीं है. पिछले डेढ़ दशकों से अधिक समय से मुंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स इस आवारा पूंजी की धुन पर ही नाच रहा है. लेकिन इस बार मंदी से उबरती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एफ.एफ.आई पूंजी पर अत्यधिक निर्भरता खतरे से खाली नहीं है. वैश्विक मंदी के बादल अभी पूरी तरह से छंटे नहीं हैं. अगर किसी भी कारण से यह आवारा पूंजी अचानक देश छोड़ती है तो उससे पूरी अर्थव्यवस्था अस्थिर हो सकती है. दूसरे, उनके अत्यधिक मात्रा में आने से रूपये पर दबाव बढ़ रहा है और पिछले कुछ महीनों में रूपया, डालर की तुलना में लगभग 6 से 8 प्रतिशत तक महंगा हो गया है. इसके कारण निर्यात पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका बढ़ रही है.

लेकिन सबसे अफसोस की बात यह है कि इस सट्टेबाजी पर रोक लगाने के बजाय पिछली सभी सरकारों और उनके वित्त मंत्रियों ने इसे अपनी नीतियों की सफलता के बतौर पेश करते हुए और बढ़ावा दिया है. मौजूदा वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी भी इसके अपवाद नहीं हैं. उनका कहना है कि एफ.एफ.आई निवेश की तेज रफ़्तार को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं है और न ही अभी उनपर कोई अंकुश लगाने की जरूरत है.

यहां उल्लेख करना जरूरी है कि ब्राजील ने इस आवारा पूंजी के अत्यधिक प्रवाह और सट्टेबाजी पर अंकुश लगाने के लिए कुछ महीने पहले दो प्रतिशत की दर से टैक्स लगा दिया था जिसे इसी महीने बढ़ाकर चार प्रतिशत कर दिया. थाईलैंड ने भी इसी महीने एफ.एफ.आई निवेश पर ब्राजील की तर्ज पर दो प्रतिशत का टैक्स लगाने का ऐलान किया है. हैरानी की बात यह है कि यह जानते हुए भी कि इस आवारा पूंजी से वास्तविक अर्थव्यवस्था को कोई फायदा नहीं होता, उल्टे उसके लिए मुश्किलें बढ़ जाती हैं, प्रणव मुखर्जी जाने क्यों उसपर कोई अंकुश लगाने से हिचकिचा रहे हैं? क्या वह संकट के आने का इंतज़ार कर रहे हैं.

('दैनिक भास्कर' में २८ अक्तूबर'१० को प्रकाशित)

2 टिप्‍पणियां:

कडुवासच ने कहा…

... prabhaavashaalee abhivyakti !!!

Unknown ने कहा…

bahoot sahi .....www.tarangbharat.com