सोमवार, अक्तूबर 04, 2010

अमीर होता मीडिया, गरीब होता लोकतंत्र

पार्ट: एक

हाशिये पर जाती राजनीतिक पत्रकारिता  


कहते है कि अगर किसी देश में लोकतंत्र के स्वास्थ्य का हाल लेना है तो उसका कुछ-कुछ अंदाज़ा उसकी पत्रकारिता की दशा-दिशा से लगाया जा सकता है. इसी तरह, अगर उसकी राजनीति और राजनीतिक संस्कृति की दशा का अनुमान लगाना है तो उसकी झलक समाचार मीडिया में राजनीतिक रिपोर्टिंग की स्थिति से भी मिल सकती है.

कहने का अर्थ यह कि लोकतंत्र और राजनीति के स्वास्थ्य का सीधा सम्बन्ध नागरिकों के प्रति उनकी जवाबदेही से बनता है. एक लोकतान्त्रिक ढांचे में सत्ता और राजनीति को लोगों के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए यह जरूरी है कि उनके कामकाज के बारे में बिना किसी दबाव और रोकटोक के सभी सूचनाएं और उनके बारे में विभिन्न विचार लोगों को मिलते रहें.

जाहिर है कि इसके लिए एक स्वतंत्र, सजग, सक्रिय, बहुलतावादी और विविधतापूर्ण समाचार मीडिया अनिवार्य है. इस मामले में गौर करनेवाली बात यह है कि देश में समाचार मीडिया उद्योग का पिछले डेढ़-दो दशकों खासकर पिछले कुछ वर्षों में काफी तेजी से विस्तार हुआ है.

जहां विकसित पश्चिमी देशों में अखबारों की गिरती प्रसार संख्या और राजस्व के बीच उनकी मृत्यु की घोषणाएं हो रही हैं, वहीँ भारत में अखबारों की प्रसार संख्या, पाठक संख्या और राजस्व तीनों में तेजी से वृद्धि हो रही है. माना जा रहा है कि बढ़ती साक्षरता, क्रयशक्ति और जागरूकता के कारण आनेवाले दशकों में भी अखबारों का विस्तार जारी रहेगा.

इसी तरह से, टेलीविजन उद्योग का भी पिछले कुछ वर्षों में अभूतपूर्व विकास और विस्तार हुआ है. पहुंच के मामले में उसने अख़बारों को बहुत पहले ही काफी पीछे छोड़ दिया है. दुनिया में भारत इतनी भाषाओँ और प्रकार के लगभग १४०० से अधिक चैनलों के साथ चौथे स्थान पर है. समाचार चैनलों के मामले में तो शायद यह एक रिकार्ड है कि इतने अधिक समाचार चैनल दुनिया के किसी देश में नहीं हैं. इससे सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि भारतीय लोगों में सूचनाओं/समाचारों और मनोरंजन की कितनी अधिक भूख है.

यही नहीं, इतने अधिक अख़बारों और समाचार चैनलों की मौजूदगी से यह भी पता चलता है कि भारतीय लोग राजनीतिक रूप से कितने जागरूक और सजग हैं. आमतौर पर माना जाता है कि समाचार माध्यमों के विकास और विस्तार में अन्य कारकों के अलावा उनके पाठकों/दर्शकों की राजनीतिक जागरूकता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

लेकिन यह एकतरफा प्रक्रिया नहीं है. एक ओर जागरूक पाठक/दर्शक समाचार माध्यमों से देश/प्रदेश के राजनीतिक हालात, राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के क्रियाकलापों, राजनीतिक मुद्दों और सवालों और उनके अंतर्संबंधों के बारे में तथ्यपूर्ण सूचनाएं और वैचारिक टिप्पणियां चाहते हैं तो दूसरी ओर, उनकी अपेक्षा यह भी होती है कि समाचार माध्यम जमीनी स्तर पर चल रही राजनीतिक हलचलों और परिवर्तनों के बारे में भी उसी सजगता से सूचनाएं और टिप्पणियां पहुंचाएं.
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चैनलों में राजनीतिक रिपोर्टिंग की दुर्दशा का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सबसे तेज हिंदी चैनल के ब्यूरो चीफ और राजनीतिक रिपोर्टर रहे पत्रकार लंबे अरसे बाद चैनल पर स्वयंबर फेम राहुल महाजन की पत्नी डिम्पी महाजन का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू करके अपनी उपयोगिता साबित करते दिख रहे हैं.
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इसका महत्व यह है कि किसी भी लोकतंत्र की सफलता के लिए सूचित और सजग नागरिक जरूरी हैं. यह बिना सजग और सूचित मीडिया के संभव नहीं है. अन्य कई मंचों के साथ समाचार मीडिया भी लोकतंत्र में एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां सार्वजनिक महत्व के विभिन्न मुद्दों पर खुले बहस-मुबाहिसे के जरिये लोग अपनी राय बनाते हैं. यही कारण है कि समाचारों और समाचार मीडिया को लोकतान्त्रिक समाजों में एक ‘सार्वजनिक महत्व’ (पब्लिक गुड) की संस्था माना जाता है जिसे संवैधानिक गारंटी के साथ कई विशेषाधिकार भी प्राप्त होते हैं. उसे लोकतंत्र का चौथा खम्भा भी कहा जाता है.

निश्चय ही, समाचार मीडिया से लोगों तक पहुंचनेवाली हर सूचना महत्वपूर्ण है और लोगों को भी सभी तरह की सूचनाओं की जरूरत होती है. लेकिन इन सभी सूचनाओं में राजनीतिक खबरें और रिपोर्टें सबसे महत्वपूर्ण और जरूरी हैं क्योंकि वे सीधे-सीधे राजकाज से जुड़ी और इस तरह आमलोगों के जीवन को गहराई से प्रभावित करनेवाली होती हैं.

इन खबरों का सबसे ज्यादा महत्व इसलिए भी है कि इनके जरिये ही राजनीति, राजनीतिक तंत्र, राजनीतिक वर्गों और सत्ता तंत्र को लोगों के प्रति जवाबदेह और जिम्मेदार बनाया जा सकता है. यही कारण है कि दुनिया भर में समाचार मीडिया में राजनीतिक पत्रकारिता और राजनीतिक रिपोर्टिंग को बहुत प्रतिष्ठा हासिल रही है.

भारत भी इसका अपवाद नहीं रहा है. सच यह है कि आज़ादी की लड़ाई के दौरान भारतीय पत्रकारिता के उसके साथ गहराई से जुड़े होने और बाद में भारतीय राष्ट्र राज्य के नवनिर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण उसका मूल चरित्र राजनीतिक रहा है. इस वजह से समाचार माध्यमों में राजनीतिक खबरों और रिपोर्टों को खूब जगह मिलती रही है.

नतीजा, अधिकांश पत्रकारों की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा राजनीतिक रिपोर्टिंग और पत्रकारिता करने की होती रही है. शायद यही कारण है कि कई लोग भारतीय पत्रकारिता में अत्यधिक राजनीतिक कवरेज की शिकायत करते रहे हैं. उनका आरोप रहा है कि समाचार माध्यमों में राजनीति के प्रति एक तरह का अत्यधिक व्यामोह (एक्सेसिव ओब्शेसन) है जिसके कारण अन्य विषयों और मुद्दों की उपेक्षा होती है.

लेकिन भारतीय पत्रकारिता के परिदृश्य पर समाचार चैनलों के उदय ने यह शिकायत काफी हद तक दूर कर दी है. समाचार चैनलों में आज राजनीतिक पत्रकारिता और रिपोर्टिंग पूरी तरह से फैशन से बाहर हो गई है. वह चैनलों के हाशिए पर पहुंच गई है और उनके राजनीतिक रिपोर्टर लगभग बेकार से हो गए हैं.

चैनलों में राजनीतिक रिपोर्टिंग की दुर्दशा का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सबसे तेज हिंदी चैनल के ब्यूरो चीफ और राजनीतिक रिपोर्टर रहे पत्रकार लंबे अरसे बाद चैनल पर स्वयंबर फेम राहुल महाजन की पत्नी डिम्पी महाजन का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू करके अपनी उपयोगिता साबित करते दिखे. यह और बात है कि इस दौरान देश में राजनीतिक हलचलें बहुत तेज थीं.

जारी...
("कथादेश" के अक्तूबर'१० अंक में प्रकाशित स्तम्भ)

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