कहते हैं कि बंगलुरु के मौसम का कोई ठिकाना नहीं है. यहां मौसम पल-पल में बदलता रहता है. इस शहर में सर्दी, गर्मी और बरसात सभी एक साथ चलते हैं. कम से कम पिछले कुछ दिनों में मेरा अनुभव तो यही है. सच कहूं तो मैं इसका खूब लुत्फ़ उठा रहा हूँ. पिछले तीन-चार दिनों से बी.बी.सी की एक वर्कशाप के सिलसिले में बंगलुरु में हूँ. यहां का मौसम सचमुच सुहावना है. कुछ वैसा ही जैसे दिल्ली में नवंबर के आखिरी सप्ताहों में होता है. सिहरन पैदा करती सुबह की ठण्ड, दोपहर में हलकी गुनगुनी गर्मी, शाम होते-होते सम मौसम को देर शाम की हलकी बारिश फिर ठंडी कर देती है.
लेकिन इन दिनों बंगलुरु के मौसम से ज्यादा यहां की राजनीति का कोई ठिकाना नहीं है. यहां राजनीति पल-पल में बदल रही है. बंगलुरु का मौसम भले सुहावना हो लेकिन कर्नाटक की राजनीति में उबाल आया हुआ है. उसकी गर्मी बंगलुरु से लेकर दिल्ली तक महसूस की जा रही है. मौसम से ज्यादा तेजी से रंग बदलनेवाले राज्यपाल हंसराज भारद्वाज के निर्देश पर बी.एस. येदियुरप्पा की ढाई साल की भाजपा सरकार चार दिनों में दूसरी बार “विश्वासमत” हासिल कर लिया है.
हालांकि यह किसी ‘फार्स’ से कम नहीं था. यह पहले ही तय हो चुका था क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष के.जी बोपैया के आशीर्वाद और तिकडमों से येदियुरप्पा को एक बार फिर अपना ‘बहुमत’ साबित करने और “विश्वासमत” हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं होनी थी.
लेकिन इसके बावजूद कोई नहीं जानता कि येदियुरप्पा सरकार कितने दिनों की मेहमान है? कारण कि गेंद अब कर्नाटक हाई कोर्ट के पाले में है. अब काफी हद तक कोर्ट को फैसला करना है कि ग्यारह भाजपा और पांच निर्दलीय विधायकों को अयोग्य ठहराने का विधानसभा अध्यक्ष फैसला संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों पर कितना खरा है?
कोर्ट ने आज के विश्वासमत को पहले ही अंतिम न्यायिक फैसले के साथ जोड़ रखा है. इसका अर्थ यह हुआ कि अगर हाई कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अयोग्य घोषित सोलह विधायकों की अयोग्यता को अवैध ठहरा दिया तो येदियुरप्पा सरकार फिर से अल्पमत में आ जायेगी.
उस स्थिति में राज्यपाल येदियुरप्पा को फिर से विश्वासमत हासिल करने के लिए कह सकते हैं और मौजूदा अंकगणित के हिसाब से येदियुरप्पा सरकार की विदाई तय हो जायेगी. लेकिन अगर कोर्ट ने ग्यारह भाजपा विधायकों की अयोग्यता के निर्णय को सही और पांच निर्दलीय विधायकों की अयोग्यता को गैरकानूनी ठहरा दिया तो उस स्थिति में येदियुरप्पा के पक्ष में १०६ और विपक्ष में भी १०६ मत होंगे और विधानसभा अध्यक्ष का कास्टिंग वोट निर्णायक हो जायेगा.
संभव है कि उस स्थिति में येदियुरप्पा सरकार बच जाए लेकिन विधानसभा अध्यक्ष के वोट पर टिकी सरकार एक तरह से इंटेंसिव केयर यूनिट में भर्ती आखिरी घड़ियाँ गिनते मरीज की तरह होगी. यह एक दिन से दूसरे दिन के बीच एक-एक साँस गिन-गिनकर चलेगी. कब तक? अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है.
सच पूछिए तो दक्षिण भारत में भाजपा की पहली सरकार सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार खो चुकी है. पिछले ढाई साल के कार्यकाल में येदियुरप्पा सरकार एक संकट से दूसरे संकट के बीच झूलती रही है. इसके लिए कोई बाहरी राजनीतिक दल से ज्यादा खुद भाजपा की अपनी राजनीति और अंदरूनी झगड़े जिम्मेदार रहे हैं.
सबसे शर्मनाक यह है कि ये झगड़े किसी नीतिगत विषय पर नहीं बल्कि सत्ता की मलाई में हिस्से के लिए होते रहे हैं. जगजाहिर है, पिछली बार येदियुरप्पा सरकार को बेल्लारी के बेताज खनन बादशाह (माईनिंग किंग) रेड्डी बंधुओं ने लगभग गिरा दिया था. भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को सरकार बचाने के लिए न सिर्फ रेड्डी बंधुओं की सभी मांगें माननी पड़ी थीं और आंसू बहाते येदियुरप्पा को रेड्डी बंधुओं के घुटनों पर झुकने पर मजबूर किया गया था.
विडम्बना देखिये कि इस बार येदियुरप्पा सरकार को बचाने की मुहिम में रेड्डी बंधु सबसे आगे थे. साफ है कि आखिरी सांसे गिन रही येदियुरप्पा सरकार अब अपने अस्तित्व के लिए रेड्डी बंधुओं के समर्थन पर और ज्यादा निर्भर होगी. इस समर्थन की कीमत क्या होगी, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. कहने की जरूरत नहीं है कि इस स्थिति में यह सरकार जितने दिन और सत्ता में रहेगी, वह कर्नाटक के लोगों की भलाई के लिए नहीं बल्कि खनन माफिया से लेकर रीयल इस्टेट माफिया की लूट और कमाई के लिए काम करेगी.
बंगलुरु की सडकों पर घूमते हुए आम लोगों से बात करते या थ्री व्हीलर के ड्राइवरों से बात करते हुए यह महसूस हुआ कि यह सरकार आम लोगों का समर्थन भी खो चुकी है. कम से कम यह सरकार सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार काफी पहले गवां चुकी है. धीरे-धीरे यह आम धारणा बनती जा रही है कि यह भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी और निकम्मी सरकार है. यहां तक कि खुद मुख्यमंत्री के पुत्र पर अवैध तरीके से जमीन कब्जाने के आरोप लग चुके हैं. कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं.
लेकिन इसके साथ ही यह भी सच है कि विपक्ष में बैठी कांग्रेस या जे.डी (एस) भी कोई दूध की धुली नहीं हैं. उनकी सरकारों पर भी भ्रष्टाचार के ऐसे ही गंभीर आरोप रहे हैं. खनन माफिया से उनके सम्बन्ध भी किसी से छुपे नहीं हैं. माना जा रहा है कि येदियुरप्पा सरकार को गिराने में इस बार खनन माफिया के उस हिस्से की अति सक्रिय भूमिका रही है जो रेड्डी बंधुओं के दबदबे और येदियुरप्पा के लौह अयस्क के निर्यात पर रोक लगाने से नाराज था. इसी तरह, कांग्रेस और जे.डी (एस) की ताजा दोस्ती और मिलजुलकर सरकार बनाने की कोशिश भी अवसरवाद की इन्तहां है.
लेकिन जब राजनीति का उद्देश्य किसी भी तरह से सत्ता हासिल करना और उस सत्ता का इस्तेमाल सरकारी और प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट के लिए हो तो वास्तव में, भाजपा, कांग्रेस और जे.डी(एस) के बीच कोई फर्क नहीं रह जाता है. इस हमाम्म में सभी नंगे हैं. कर्नाटक की राजनीति में यह नंगापन कुछ ज्यादा ही खुलकर सामने आ गया है.
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि येदियुरप्पा सरकार को और ढाई साल तक बर्दाश्त किया जाए. कहने की जरूरत नहीं है कि नैतिकता और आदर्शों की बात करनेवाली भाजपा आनेवाले दिनों में कर्नाटक में नकली ‘बहुमत’ हासिल करने के लिए आनेवाले दिनों में कांग्रेस और जे.डी(एस) के विधायकों को खरीदने की कोशिश करेगी. आज अपने विधायकों की खरीद-फरोख्त पर शोर मचा रही भाजपा कर्नाटक में इसी तरह के खरीद-फरोख्त कर चुकी है.
ऐसे में, जरूरी है कि कर्नाटक में नए सिरे से चुनाव कराए जाएं. कर्नाटक का मौजूदा राजनीतिक गतिरोध का फैसला हाई कोर्ट या राजभवन में नहीं बल्कि जनता के कोर्ट में होना चाहिए. लोकतंत्र में जनता की अदालत से बड़ी अदालत कोई नहीं है. कर्नाटक की राजनीतिक गन्दगी की सफाई भी जनता के झाड़ू से ही होगा.
5 टिप्पणियां:
हा हा हा हा हा…
खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे… :)
I'm agree with your view.
सर,''पेड न्यूज'' और ''पेड लोकतंत्र'' ...सब कुछ पेड हो गया है सर... जिस तरह पति को परमेश्वर मानना भ्रम है उसी तरह अब जनता को जनार्दन भी कहना एक बड़ा भ्रम है...जनता का काम बस गरियाना रह गया है...
यह सरकार आम लोगों का समर्थन भी खो चुकी है. कम से कम यह सरकार सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार काफी पहले गवां चुकी है. धीरे-धीरे यह आम धारणा बनती जा रही है कि यह भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी और निकम्मी सरकार है.
लालचंद किशनचंद आड़वाणी अरसा पहले अपने श्रीमुख से ही कह चुके हैं कि भाजपा का "कॉंग्रेसीकरण" होता जा रहा है.........जहाँ तक राजनितिक शुचिता की बात है तो अब यह सिर्फ अतीत के पन्नों में दफ़न हो चुकी है.......भारद्वाज की विश्वसनीयता तो इसी बात से तय हो जाती है की वे इंदिरा गाँधी के पसंदीदा वकील हुआ करते थे....भ्रष्टाचार के नाम पर तमाम दुहाई देने वाली भाजपा की गोद में "रेड्डी" बैठे हुए हैं........उनके कौंग्रेस (ysr ) में भी रिश्ते रहे हैं......कुमारस्वामी भी कम भ्रष्टास्वामी नहीं हैं.....
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