शनिवार, जुलाई 30, 2011

नए चुनाव के अलावा और कोई रास्ता नहीं है

कर्नाटक का एब्सर्ड राजनीतिक ड्रामा

मुद्दा सिर्फ येदियुरप्पा का इस्तीफा नहीं बल्कि अवैध खनन के सभी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने का है


कर्नाटक का राजनीतिक ड्रामा ‘एब्सर्डिटी’ की हद तक पहुँच गया है. अलग ‘चाल, चरित्र और चेहरे’ वाली भगवा पार्टी की पोल खुलती जा रही है. भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे और लोकायुक्त की रिपोर्ट में दोषी पाए गए भाजपाई मुख्यमंत्री बी.एस येदियुरप्पा को पार्टी न निगल पा रही है और न उगल पा रही है. हमेशा की तरह येदियुरप्पा की उलटबांसियां जारी हैं. वे कभी नरम और कभी गरम येदियुरप्पा भगवा पार्टी की खूब फजीहत करा रहे हैं.

असल में, भगवा पार्टी के पास येदियुरप्पा से इस्तीफा मांगने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. आखिर सवाल नैतिकता और ‘नैतिकता के खेल’ में कांग्रेस और यू.पी.ए सरकार के मंत्रियों से मुकाबले का है. इसलिए न चाहते हुए भी मजबूरी में भाजपा को ‘नैतिकता के नाम’ पर येदियुरप्पा से इस्तीफा मांगने का नाटक करना पड़ रहा है. लेकिन भगवा पार्टी को नैतिकता का ख्याल कुछ देर से आया है.

अभी बहुत दिन नहीं हुए जब भगवा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के ऐसे ही आरोपों के बारे में यह कह चुके हैं कि ‘येदियुरप्पा नैतिक रूप से गलत हो सकते हैं लेकिन इसमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं है.’ अब येदियुरप्पा भी अपने अध्यक्ष जी के कहे को ही दोहरा रहे हैं. लेकिन अगर येदियुरप्पा का इस्तीफा अब भी नहीं होता है तो पार्टी किस मुंह से कांग्रेस और यू.पी.ए पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा पायेगी.

इसलिए भाजपा चाहती है कि येदियुरप्पा इस्तीफा दे दें. लेकिन येदियुरप्पा पार्टी और उसके आलाकमान का इम्तहान लेने पर तुले हैं. वे इस्तीफा न देने पर अड़े हैं. अनुशासन का दावा करनेवाली पार्टी ने येदियुरप्पा को गुरुवार शाम तक का समय दिया था. लेकिन शाम तक गवर्नर के पास कोई इस्तीफा नहीं पहुंचा. येदियुरप्पा ने इस्तीफा देने का मुहूर्त निकलवाया है और वे ३१ जुलाई को आषाढ़ खत्म होने के बाद ही इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं.

लेकिन यह तो सिर्फ बहाना है. सच्चाई यह है कि वह भगवा पार्टी से पूरा मोलतोल कर रहे हैं. वे चाहते हैं कि उन्हें राज्य पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाए और उनकी करीबी शोभा करंदलाजे को मुख्यमंत्री बनाया जाए.

यही नहीं, वे आलाकमान पर दबाव बनाने के लिए अपने समर्थक विधायकों और सांसदों के साथ बैठकें कर रहे हैं. इनमें से कुछ विधायक और सांसद पार्टी से येदियुरप्पा के इस्तीफे के फैसले पर पुनर्विचार की अपील कर रहे हैं.

साफ है कि कर्नाटक में भाजपा की अंदरूनी राजनीति में शह और मात का खेल अभी खत्म नहीं हुआ है. सच पूछिए तो खेल अभी शुरू हुआ है जो बंगलुरु से लेकर दिल्ली और नागपुर तक खेला जा रहा है. इसमें भगवा पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के विभिन्न गुटों से लेकर आर.एस.एस के नेता और बड़े कारपोरेट समूह भी शरीक हैं.

जाहिर है कि मसला राजनीति में ऊँचे मूल्यों और आदर्शों के लिए इस्तीफे का नहीं है. मुद्दा है कि कर्नाटक में रियल इस्टेट, जमीन और अरबों-खरबों के अवैध खनिज कारोबार पर कब्जे और उसमें अपने-अपने हिस्से का. चूँकि दांव बहुत ऊँचे हैं, इसलिए कोई पक्ष मौके को गंवाना नहीं चाहता है. येदियुरप्पा और उनके राजनीतिक और कारपोरेट समर्थक इस मलाई पर अपना कब्ज़ा बनाए रखना चाहते हैं जबकि विरोधी खेमे को यह एक सुनहरे मौके की तरह दिखाई दे रहा है.

कहने की जरूरत नहीं है कि यह सब एक भद्दा मजाक है जो कर्नाटक की जनता के चल रहा है. येदियुरप्पा के इस्तीफे के सवाल को सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर कहीं न कहीं असल सवालों और मुद्दों पर पर्दा डालने की कोशिश हो रही है.

असल मुद्दा है : कर्नाटक में सार्वजनिक संसाधनों खासकर खनिजों और जमीन की खुली लूट का. इस आपराधिक लूट में भाजपा सहित कांग्रेस, जे.डी-एस जैसी सभी पार्टियां बराबर की शरीक हैं. यह सही है कि भगवा पार्टी के राज में लूट का नया रिकार्ड बन गया है.

मुद्दा यह भी है कि लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट में येदियुरप्पा और मौजूदा भाजपा सरकार के और कई मंत्रियों सहित पूर्व मुख्यमंत्रियों और नेताओं-अफसरों के साथ-साथ कई बड़ी कंपनियों को भी अवैध खनन और हेराफेरी के लिए दोषी ठहराया है. सवाल यह है कि बेल्लारी भाइयों सहित अन्य मंत्रियों से भी इस्तीफा क्यों नहीं लिया जा रहा है?

यही नहीं, जस्टिस हेगड़े ने इन सभी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में मुक़दमा चलाने की सिफारिश की है. इसलिए मुद्दा सिर्फ इस्तीफा नहीं बल्कि येदियुरप्पा सहित सभी दोषियों पर मुक़दमा चलाने का है.

लेकिन इसकी कोई चर्चा नहीं हो रही है. भगवा पार्टी में सचमुच अगर जरा भी नैतिकता बची है तो उसे तुरंत येदियुरप्पा और अन्य मंत्रियों का इस्तीफा लेने के अलावा उनपर भ्रष्टाचार के आरोपों में मुक़दमा चलाने का एलान करना चाहिए. लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती है क्योंकि कर्नाटक की मलाई सबने जीमी है. अगर ऐसा नहीं होता तो येदियुरप्पा में आलाकमान को इस तरह से ठेंगा दिखाने और सौदेबाजी करने की हिम्मत नहीं होती.

इसलिए आश्चर्य नहीं कि भाजपा और उसका आलाकमान येदियुरप्पा के इस्तीफे के बदले में उनके राजनीतिक पुनर्वास के उपाय ढूंढने में लगा है. सच पूछिए तो कर्नाटक के इस शर्मनाक राजनीतिक ड्रामे का सिर्फ एक ही समाधान है कि वहां विधानसभा तत्काल भंग की जाए और नए चुनाव कराये जाएँ. कर्नाटक की राजनीति में जारी सौदेबाजी, खरीद-फरोख्त और छीना-झपटी के खेल से मुक्ति का इसके सिवाय और कोई रास्ता नहीं है.

हालांकि चुनाव से किसी जादू की उम्मीद नहीं की जा सकती है क्योंकि कर्नाटक के लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है. अवैध खनन और सार्वजनिक संपत्ति की लूट के हम्माम में सभी नंगे हैं और चुनावों से एक बार फिर कोई नया नंगा चुनकर आ जाएगा. लेकिन लोकतंत्र में ऐसे गतिरोध को तोड़ने के लिए जनता के पास जाने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है.

जनता के पास जाने का विकल्प किसी भी सौदेबाजी और खरीद-फरोख्त से बेहतर है. कर्नाटक में इस विकल्प को आजमाने का समय आ गया है.

(लखनऊ से प्रकाशित दैनिक जनसंदेश टाइम्स' में ३० जुलाई को पहले पृष्ठ पर प्रकाशित पूरी टिप्पणी : http://www.jansandeshtimes.com/ )

* कर्नाटक के राजनीतिक ड्रामे पर पहले प्रकाशित कुछ और टिप्पणियां :

 
 
 
                                                                               

1 टिप्पणी:

निर्मला कपिला ने कहा…

उइस हमाम मे सब नंगे हैं। जनता मजबूर।