क्या सचमुच मर्डोक को कुछ भी पता नहीं था?
वैश्विक मीडिया के बेताज बादशाह माने जानेवाले कीथ रूपर्ट मर्डोक ने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसने जिस तरह की गटर टैबलायड पत्रकारिता को बढ़ावा और उसके बल पर अपना विशाल मीडिया साम्राज्य खड़ा किया, उसके अपराधों के लिए एक दिन ब्रिटिश जनता से इस तरह माफ़ी मांगनी पड़ेगी. लेकिन न चाहने के बावजूद अपने विशाल मीडिया साम्राज्य को बचाने के लिए मर्डोक को पिछले सप्ताह ऐसा करना पड़ा.
भले ही यह मर्डोक का नया ड्रामा हो और उसका कुछ खास न बिगड़ने वाला हो लेकिन दुनिया ने देखा कि जिस मीडिया मुग़ल के आगे पूरा ब्रिटिश सत्ता प्रतिष्ठान बिछा रहता है, प्रधानमंत्री से लेकर विपक्ष के नेता तक उसके इशारे का इंतज़ार करते हैं, उस मर्डोक को न सिर्फ अपना सबसे अधिक बिकनेवाला साप्ताहिक टैबलायड ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ बंद करना पड़ा बल्कि ब्रिटिश जनता से हाथ जोड़कर और अख़बारों में लिखित रूप से माफ़ी मांगनी पड़ी.
यही नहीं, मर्डोक और उसके बेटे और ब्रिटेन में उसकी कंपनी- न्यूज इंटरनेशनल के प्रमुख जेम्स मर्डोक को संसदीय समिति के सामने पेश होकर सफाई देनी पड़ी. दूसरी ओर, मर्डोक की सबसे करीबी और ब्रिटेन में न्यूज इंटरनेशनल की सी.ई.ओ रेबेका ब्रुक्स को इस्तीफा देना पड़ा है.
इससे पहले ब्रुक्स और ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ के पूर्व संपादक और प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के प्रेस सलाहकार रहे एंडी कॉलसन को पुलिस हिरासत में भी रहना पड़ा. चौतरफा आलोचनाओं और जन विक्षोभ के कारण प्रधानमंत्री कैमरन को इस पूरे प्रकरण की स्वतंत्र जाँच के लिए जांच आयोग का गठन करना पड़ा है.
निश्चय ही, मर्डोक के लिए यह सब किसी दु:स्वपन से कम नहीं है. लेकिन सच पूछिए तो मर्डोक के लिए सबसे बड़ा झटका ब्रिटिश स्काई ब्राडकास्टिंग (बी.स्काई.बी) को अधिग्रहित करने के सौदे का खटाई में पड़ जाना है. बी.स्काई.बी के लिए मर्डोक ने कोई १३.६ अरब डालर का दांव चला था. मर्डोक ने इस सौदे को बचाने के लिए ही ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ की कुर्बानी दी थी.
असल में, बी.स्काई.बी पर पिछले कई वर्षों से मर्डोक की निगाह गड़ी थी. मर्डोक का मानना था कि ब्रिटेन में अपने मीडिया साम्राज्य को अजेय बनाने के लिए बी.स्काई.बी पर पूर्ण नियंत्रण जरूरी है. उसे पूरी तरह से अपने कब्जे में लेने के लिए मर्डोक ने पिछले डेढ़ साल में क्या नहीं किया?
यहाँ तक कि मर्डोक के दबाव में इस सौदे की राह में रोड़ा बन रहे वाणिज्य मंत्री विन्स केबल से इस सौदे की जांच-पड़ताल का अधिकार छीन लिया गया. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ की गटर पत्रकारिता खासकर फोन हैकिंग का विवाद इस हद तक नहीं बढ़ा होता तो अब तक बी.स्काई.बी पर मर्डोक का कब्ज़ा हो चुका होता.
यह किसी से छुपा नहीं है कि प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने अपने मीडिया संरक्षक की इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए पूरा जोर लगा रखा था. दरअसल, कैमरन एक तरह से आम चुनावों में मर्डोक के ताकतवर मीडिया साम्राज्य की खुली मदद का कर्ज उतारने की कोशिश कर रहे थे.
आश्चर्य नहीं कि हैकिंग विवाद के बढ़ने के बाद भी पिछले पखवाड़े तक कैमरन इस सौदे को यह कहकर बचाने की कोशिश कर रहे थे कि उनकी सरकार आम वाणिज्यिक सौदों में हस्तक्षेप नहीं करती. हालांकि कैमरन को अच्छी तरह से पता था कि यह आम वाणिज्यिक सौदा नहीं था. इससे ब्राडकास्टिंग क्षेत्र में न सिर्फ मर्डोक के एकाधिकार या वर्चस्व का खतरा दिख रहा था बल्कि इससे समाचार मीडिया के क्षेत्र में लोकतंत्र और सर्व सूचित नागरिक समाज के लिए अनिवार्य ‘विविधता और बहुलता’ का ह्रास भी निश्चित था.
तथ्य यह है कि इस सौदे से ब्रिटेन के मीडिया परिदृश्य पर मर्डोक का एकछत्र राज कायम हो जाता. अभी मर्डोक का ब्रिटेन के एक तिहाई मीडिया पर कब्ज़ा है. लेकिन यह जानते हुए भी कैमरन और उनकी सरकार इस सौदे को सफल बनाने के लिए जिस तरह से जुटी हुई थी, उससे मर्डोक के राजनीतिक प्रभाव का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
कैमरन ही क्यों, ब्रिटेन में सत्ता पक्ष हो या विपक्ष- सभी मर्डोक की कृपा के आकांक्षी रहे हैं. मर्डोक के जलवे का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि चाहे लेबर पार्टी के प्रधानमंत्री रहे टोनी ब्लेयर और गोर्डन ब्राउन रहे हों या अब कंजर्वेटिव पार्टी के डेविड कैमरन और विपक्ष में बैठे एड मिलिबैंड- सभी बिना किसी अपवाद के मर्डोक की मेहमाननवाजी का लुत्फ़ उठाते और उसके इशारों पर नाचते रहे हैं.
ऐसा नहीं है कि इन्हें मर्डोक की टैबलायड पत्रकारिता और उसके निरंतर सनसनीखेज, पतित और अपराधी होते चरित्र के बारे में मालूम नहीं था. सच यह है कि मर्डोक के टैबलायड ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ और ‘सन’ पिछले कुछ महीनों या सालों से नहीं बल्कि एक-डेढ़ दशक से अधिक समय से चर्चित फ़िल्मी सितारों, खिलाडियों, राजनेताओं और सेलेब्रिटीज के निजी जीवन में तांक-झांक के लिए फोन हैकिंग और ई-मेल पढ़ने सहित निजी जासूसों के इस्तेमाल से लेकर पुलिस अफसरों को घूस देने जैसे तमाम कानूनी-गैरकानूनी हथकंडे इस्तेमाल कर रहा था.
शुरुआत में निशाने पर सेलेब्रिटीज थीं लेकिन धीरे-धीरे इस खून का स्वाद ऐसा लगा कि आम लोगों के निजी जीवन में भी घुसपैठ शुरू हो गई. हालत यह हो गई कि पत्रकारिता की आड़ में फोन हैकिंग का धंधा लगभग औद्योगिक स्तर पर पहुँच गया जहाँ उसकी चपेट में आने से ब्रिटिश राजपरिवार, अन्य सेलेब्रिटीज से लेकर ईराक युद्ध में मारे गए सैनिकों के परिवारजनों, लन्दन बम विस्फोट के पीडितों एयर यहाँ तक कि हत्या की शिकार १३ साल की मिली डावलर भी नहीं बच सकी.
रिपोर्टों के मुताबिक, पिछले कुछ वर्षों में ‘न्यूज आफ द वर्ल्ड’ ने कोई ४५०० से ज्यादा फोन हैक किये और लोगों के निजी वायसमेल सुने. कहने की जरूरत नहीं है कि इतने सालों से और इतने बड़े पैमाने फोन हैकिंग से लेकर निजी जासूसों के इस्तेमाल और पुलिस अफसरों को घूस के जरिये सनसनीखेज स्कूप निकालने की ‘गटर पत्रकारिता’ बिना मर्डोक पिता-पुत्र और उनके सी.ई.ओ और संपादकों की जानकारी के नहीं चल रही होगी.
लेकिन अब मर्डोक पिता-पुत्र से लेकर उनकी सी.ई.ओ और संपादक तक यह सफाई दे रहे हैं कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी, उनके साथ धोखा हुआ है और यह सब कुछ पथभ्रष्ट रिपोर्टरों का किया-धरा है. इस कमजोर सफाई पर भला कौन भरोसा कर सकता है?
('जनसत्ता' में २७ जुलाई को प्रकाशित आलेख की पहली किस्त...बाकी कल)
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