भगवा गुंडों को देश नहीं सिर्फ अपने मुस्लिम विरोधी एजेंडे और वोटों की फ़िक्र है
पिछले सप्ताह जब चंडीगढ़ में एक सेमिनार में बोलने आये हुर्रियत कांफ्रेंस के नरमपंथी धड़े के नेता मीरवाइज़ उमर फारुख के साथ हाथापाई और बदतमीजी की कोशिश हुई तो गुस्सा भी आया और चिंता भी हुई कि देशभक्ति के नाम पर भगवा गुंडागर्दी की यह संस्कृति कितनी तेजी से फ़ैल रही है. उस समय भी इच्छा हुई कि इस प्रवृत्ति पर एक तीखी टिप्पणी लिखी जाए लेकिन यह सोचकर कि इसे तूल देने की जरूरत नहीं है, टाल गया.
लेकिन मैं गलत था. इन घटनाओं को नजरंदाज करना ठीक नहीं है. चंडीगढ़ के बाद अब कोलकाता में भी रविवार को विरोध के नाम पर मीरवाइज़ के साथ एक बार फिर हाथापाई और बदतमीजी करने की कोशिश हुई है. मीरवाइज़ वहाँ एक सेमिनार में अपनी बात रखने गए थे. दोनों ही जगहों पर कथित विरोध की अगुवाई आर.एस.एस और भाजपा के कार्यकर्ताओं के साथ बजरंग दल के लफंगे कर रहे थे. हर बार की तरह इस बार भी पुलिस खड़ी तमाशा देखती रही.
जाहिर है कि इस तरह का विरोध और अपमान झेलनेवाले मीरवाइज़ कश्मीर के पहले नेता नहीं हैं. पिछले कुछ महीनों में ऐसी शर्मनाक घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. इससे पहले दो और अलगाववादी नेताओं, जम्मू-कश्मीर फ्रीडम पार्टी के नेता शब्बीर शाह और जे.के.एल.एफ के यासीन मलिक के साथ प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जम्मू में हाथापाई हो चुकी है. यही नहीं, दिल्ली में भी एक सेमिनार में हुर्रियत के कट्टरपंथी धड़े के नेता सैय्यद अली शाह गिलानी और लेखिका अरुंधती राय को भी ऐसा ही विरोध झेलना पड़ा था.
अगर एक मिनट के लिए विरोध के तरीके को किनारे भी कर दिया जाए तो भी अहम सवाल है कि ये भगवाधारी देशभक्त इस तरह के विरोध से किसकी मदद कर रहे हैं? कश्मीर की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. खासकर घाटी में बेहद गंभीर और चिंताजनक हालात हैं. घाटी में अलगाव निरंतर बढ़ता जा रहा है और भारत से आज़ादी की भावनाएं जोर पकड़ रही हैं. ऐसे में, हर अमनपसंद भारतीय जो कश्मीर से प्यार करता है, उसकी पहली प्राथमिकता कश्मीर के लोगों का दिल जीतने की होनी चाहिए.
यह इसलिए भी जरूरी है कि कश्मीर को साथ रखने का एक मतलब वहां की जमीन नहीं बल्कि लोगों को साथ रखना है. लोगों को साथ रखने का एक ही तरीका है कि वे अपने को हिन्दुस्तानी महसूस करें. वे यह महसूस करें कि किसी भी अन्य हिन्दुस्तानी की तरह वे भी पहले दर्जे के नागरिक हैं. उन्हें भी अपनी बात कहने, अपने सवाल उठाने, लोकतान्त्रिक आंदोलन करने और अपने अधिकार मांगने की पूरी आज़ादी है. यहां यह स्पष्ट करते चलना भी जरूरी है कि भारतीय संघ में कश्मीर की ऐतिहासिक कारणों से एक विशेष स्थिति है.
ऐसे में, अगर कोई सच्चा देशभक्त है और सचमुच, दिली तौर पर चाहता है कि कश्मीर भारत के साथ रहे तो उसे ऐसा माहौल बनाने में मदद करनी चाहिए जिसमें कश्मीर में स्थितियां सामान्य हो सकें. वहां के लोगों का दिल और दिमाग जितने के लिए बहुत जरूरी है कि उनकी हर बात चाहे वह कितनी भी कडवी, तीखी और उत्तेजित करनेवाली क्यों न हो, उसे पूरी गंभीरता और संवेदनशीलता के साथ सुना जाए. यहां धैर्य और संयम बरतना बहुत जरूरी है.
असल में, कई बार लोगों की पीड़ा, शिकायत और गुस्से को धैर्य और पूरी संवेदना के साथ सुनना ही वह जरूरी माहौल तैयार करता है जिसमें गहरे घावों के भरने की शुरुआत होती है. आज कश्मीर में बातचीत और परस्पर विश्वास का माहौल बनाने के लिए भी यह जरूरी है कि कश्मीर के हर नेता की बात सुनी जाए, चाहे वह मीरवाइज़ हों या यासीन मलिक या शब्बीर शाह या फिर सैय्यद अली शाह गिलानी. इससे बेहतर कोई बात नहीं हो सकती है कि ये नेता देश के कोने-कोने में जाएं और अपनी बात करें.
अगर उनकी बात सुनी जायेगी तो कश्मीरियों को भी लग सकता है कि इस देश में उनकी बात सुनी जा रही है. यह देश उनका भी है और इसमें उनके सभी वास्तविक मुद्दों और चिन्ताओं को सुनने और उसका हाल ढूंढने की इच्छा है. इससे कश्मीर में हिन्दुस्तान को लेकर जो गलत-सही धारणाएं, भ्रांतियां और भावनाएं बनी हुई हैं, उन्हें दूर करने में मदद मिलेगी. सच तो यह है कि कश्मीर में हालात सुधारने की यह एक कारगर रणनीति यह हो सकती है कि अधिक से अधिक कश्मीरी लोगों, युवाओं, उनके नेताओं को देश भर में विश्वविद्यालयों, बार कौंसिलों, प्रेस कांफ्रेंसों, खुले और लोकतान्त्रिक मंचों पर बोलने और चर्चा के लिए आमंत्रित किया जाए.
लेकिन जो भगवाधारी गुंडे मीरवाइज़ जैसे नेताओं को बोलने नहीं दे रहे हैं, उनका अपमान कर रहे हैं, उनके साथ हाथापाई पर उतारू हैं और उन्हें जेल में डालने की मांग कर रहे हैं, वे वास्तव में, उनसे दुश्मन की तरह सुलूक कर रहे हैं और उन्हें देश से अलग होने के लिए उकसा रहे हैं. इन भगवा गुंडों के रूख से साफ है कि वे कश्मीरियों और उनके नेताओं को देश से अलग मान चुके हैं. वे नहीं चाहते हैं कि कश्मीर में हालात सुधरें. कहने की जरूरत नहीं है कि उनके निहित राजनीतिक स्वार्थ इसी में हैं कि कश्मीर में हालात और खराब हों. इसके लिए वे किसी हद तक जा सकते हैं और जा रहे हैं.
(पुनश्च: पहले यह तय किया था कि आज बिहार पर कुछ बातें करेंगे लेकिन मीरवाइज़ के साथ हो रहे इस व्यवहार ने मजबूर कर दिया कि पहले इसपर बात की जाए....बिहार पर फिर कभी...इस बीच, बिहार में नीतिश की आंधी से उठा गर्दो-गुबार भी बैठ जायेगा और लोगों को कुछ चीजें साफ दिखने लगेंगी...)
5 टिप्पणियां:
देश के विरुद्ध बोलने वालों को एक गुंडा मारे या पुलिस सब सही है
डॉ.आनंद सर,आप का यह लेख आपकी दोहरी मानसिकता का परिचय है एक ओर आप को कश्मीरी मुस्लिम लड़के "मासूम" और "गुमराह"लगते है ! यह "मासूम" और "गुमराह"लड़के CRPF के जवानों को सड़क पर घेरकर मार भी रहे हैं,और पत्थर फ़ेंकने में भी पैसा कमा रहे हैं। आजमगढ़ के "मासूम" तो खैर विश्वप्रसिद्ध हैं ही, बाटला हाउस के "गुमराह" भी उनके साथ विश्वप्रसिद्ध हो लिये। उधर कोलकाता में भी "मासूम" लोग कभी बुरका पहनने के लिये दबाव बना रहे हैं, तो कभी "गुमराह" लड़के हिन्दू लड़कियों को छेड़छाड़ और मारपीट कर देते हैं। असम में तो बेचारे इतने "मासूम मुस्लिम" हैं कि उन्हें यही नहीं पता होता कि, जो झण्डा वे फ़हरा रहे हैं वह भारत का है या पाकिस्तान का?
ऐसे "मासूम", "गुमराह", "बेगुनाह", "बेकसूर", "मज़लूम", "सताये हुए", "पीड़ित" (कुछ छूट गया हो तो आनंद सर आप अपनी तरफ़ से जोड़ लीजियेगा) आप के प्यारे-प्यारे बच्चों और युवाओं को हमें स्कॉलरशिप देना चाहिये, उत्साहवर्धन करना चाहिये, आर्थिक पैकेज देना चाहिये… और भी जो कुछ बन पड़े वह करना चाहिये, उन्हें कोई दुख नहीं पहुँचना चाहिये। वही
कश्मीरी पंडित कुछ विरोध करते है तो आपको वह भगवा गुंडे ,लफंगे लगते है!धन्य -धन्य है आप और आपकी विचारधारा !
आप का प्रिय-रवि hj
mahoday apne achchha kiya jo bhagawa briged ko lekr uth rahi jwar ko nikal diya. waise bhi inka rastravad ek Dhong hi hai, Iske siwa kuch nahi
आपसे पूरी तरह सहमत हूँ.......मीरवाइज़ जैसे लोगो से जनरल चौधरी की निपटना चाहिए .....ओर ये भी सच है कश्मीरी समस्या हाईजेक हो गयी है .....ओर हर हाईजेकर का अपना अपना स्वार्थ है ...
आपका ये लेख निश्चित ही सराहना योग्य है. परन्तु सोचने वाली बात ये है कि आखिर आम हिन्दू समाज इन भगवाई गुंडों और उग्रवादियों का समर्थक क्यूँ बना हुआ है. हम सभी जानते हैं कि इसी अतिवादी वर्ग के अहंकार, आतंक और राष्ट्रवाद कि घ्रणित अवधारणा के कारण ही मुसलमानों को पाकिस्तान का संघर्ष करने के लिए बाध्य होना पड़ा था. क्या ये लोग कश्मीर में भी वही कहानी दोहराना चाहते हैं. और सिर्फ कश्मीर में ही क्यूँ, जिस प्रकार दिनोदिन छद्म हिन्दू राष्ट्रवादियों के हौंसले और आतंक बढ़ता जा रहा है, उसे देख कर तो लगता है कि शायद पूरा देश इनकी नफरत और आतंक कि आग कि भेंट चढ़ने जा रहा है.
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