मंगलवार, नवंबर 16, 2010

येदियुरप्पा को भ्रष्ट मत कहिये, वे परंपरा निभा रहे हैं


सुशासन के नाम पर ‘निजी हितों’ को आगे बढ़ाने की राजनीति की चैम्पियन बन गई है भाजपा
कर्नाटक से झारखंड तक यही है भाजपा का असली ‘चाल, चरित्र और चेहरा’

जमीन लूट और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस येदियुरप्पा का  कहना है कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है. उन्होंने सिर्फ परंपरा का पालन किया है. उनसे पहले भी कांग्रेस और जे.डी-यू के मुख्यमंत्रियों ने अपने सगे-सम्बन्धियों को सरकारी जमीन के प्लाट आवंटित किये हैं. उनसे पहले, टेलीकाम मंत्री ए. राजा भी यही तर्क दे रहे थे कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है और सिर्फ परंपरा और अपने पूर्ववर्तियों के दिखाए रास्ते का पालन किया है.  लेकिन भाजपा उनका इस्तीफा लेने के लिए जमीन-आसमान एक किये हुए थी.

यह है भाजपा की असलियत. खुद को अपने ‘चाल, चरित्र और चेहरे’ से ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ बतानेवाली भारतीय जनता पार्टी के दावे की पोल-पट्टी बहुत पहले ही खुल चुकी है. पिछले डेढ़ दशकों में केंद्र और कई राज्यों में सत्ता की मलाई चख चुकी भाजपा ने राजनीतिक और नैतिक गिरावट के मामले में कांग्रेस को भी पीछे छोड़ दिया है. लेकिन ऐसा लगता है कि पार्टी के इस राजनीतिक और नैतिक पतन को रोकने के नाम पर पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस) की ओर से थोपे गए उसके नए अध्यक्ष नितिन गडकरी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता की मलाई के लिए राजनीतिक और नैतिक पतन के नए रिकार्ड बनाकर ही मानेगी.

पिछले कुछ सप्ताहों में कर्नाटक और झारखण्ड की राजनीति में गिरावट का जो नया रसातल देखा गया है, उससे एक बात साफ हो गई है कि आर.एस.एस के नेतृत्व में भाजपा की ‘नई राजनीति’ अपने ‘चाल, चरित्र और चेहरे’ में किसी भी तरह से ‘पूर्ववर्ती राजनीति’ अलग नहीं है. जिन लोगों को यह भ्रम था कि आर.एस.एस राजनीति में शुचिता, ईमानदारी और नैतिकता का प्रतीक है और उसके नेतृत्व में भाजपा का कायाकल्प हो जायेगा, उनका भ्रम बहुत जल्दी टूट गया है. सत्ता की मलाई में खुली लूट के लिए भाजपा ने बाकायदा घोषित तौर पर न्यूनतम राजनीतिक और नैतिक मूल्यों, आदर्शों और परम्पराओं को भी ताक पर रख दिया है.

गडकरी की अगुवाई में भाजपा ने तय कर लिया है कि सत्ता के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है और कोई भी समझौता कर सकती है. सच पूछिए तो कर्नाटक और झारखंड में सत्ता के लिए भाजपा ने खुद को खान (माइनिंग) माफिया के हाथों में सौंप दिया है. इन दोनों ही राज्यों में सत्ता की बागडोर वास्तव में बड़ी माइनिंग, रीयल इस्टेट कंपनियों और भ्रष्ट मंत्रियों-अफसरों-ठेकेदारों-दलालों-माफियाओं के हाथों में है. झारखण्ड भाजपा के अध्यक्ष के अनुसार, राज्य में खुद गडकरी की पहल पर कुछ दलाल उद्योगपतियों ने अर्जुन मुंडा की सरकार बनाने के लिए सारे इंतजाम किए ताकि पार्टी को धन-साधनों की कमी नहीं रहे. कर्नाटक में भी सत्ता से चिपके रहने के लिए हर तिकडम करने के पीछे यही तर्क दिया जा रहा है.

अगर ऐसा नहीं होता तो राजनीतिक शुचिता और नैतिकता की दुहाई देनेवाली भाजपा कर्नाटक में खुलेआम २५ से ५० करोड़ में एक-एक विधायक खरीदने, उन्हें मंत्री पद का लालच देने और अपने बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए स्पीकर का इस्तेमाल करने जैसे पतित समझौते करने के बजाय अपने मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को इस्तीफा देने और विधानसभा भंग करके नया जनादेश लेने का फैसला करती.

लेकिन इसके उलट भाजपा कर्नाटक में ‘सुशासन’ का नया चेहरा पेश करने में जुटी हुई है. यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है कि भाजपा कर्नाटक में हर तिकडम का इस्तेमाल करके तकनीकी रूप से भले ही विश्वास मत जीतने में सफल हो गई हो लेकिन राजनीतिक और नैतिक रूप से वह न सिर्फ विधानसभा बल्कि जनता का विश्वास भी खो चुकी है.

सकी वजह यह है कि दक्षिण भारत में भाजपा की इस पहली सरकार ने सुशासन के नाम पर कर्नाटक की जनता के साथ धोखा ही किया है. लोगों ने कांग्रेस और जे.डी(एस) के नेतृत्ववाली सरकारों की भ्रष्ट, अवसरवादी, नाकारा और अमीरपरस्त नीतियों से तंग आकर और जे.डी (एस) द्वारा येदियुरप्पा के साथ कथित ‘धोखे’ से नाराजगी में भाजपा को मौका दिया था. लेकिन येदियुरप्पा सरकार को सत्ता में आये अभी मुश्किल से तीन साल भी नहीं हुए हैं और हालत यह है कि उसने भ्रष्टाचार, लूट-खसोट, अवसरवाद, निकम्मेपन और आपसी सिर-फुटव्वल में पिछली सभी सरकारों को पीछे छोड़ दिया है.

पूरी सरकार भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई है. यहां तक कि खुद मुख्यमंत्री येदियुरप्पा और उनके बेटों पर जमीन घोटालों के गंभीर आरोप लगे हैं. वैसे अधिकांश मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं. भ्रष्टाचार के आरोपों में अब तक दो मंत्रियों- एस.एन कृष्णैया और रामचंद्र गौड़ा को इस्तीफा देना पड़ा है जबकि अभी हाल में एक और मंत्री कट्टा सुब्रमनियम नायडू पर जमीन घोटाले का आरोप लगा है.

यहां तक कि लोकायुक्त ने कट्टा के बेटे को एक किसान को घूस देने की कोशिश करते हुए गिरफ्तार किया है. दूसरी ओर, सरकार पर बेल्लारी के माइनिंग किंग रेड्डी बंधुओं के दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सिर्फ साल भर पहले येदियुरप्पा को अपने पैरों पर नाक रगडने के लिए मजबूर करनेवाले रेड्डी बंधु इस बार सरकार बचाने की अगुवाई कर रहे थे.

जाहिर है कि रेड्डी बंधु इसकी पूरी कीमत भी वसूल रहे हैं और आगे भी वसूलेंगे. यह किसी से छुपा नहीं है कि बेल्लारी की खदानों से बड़े पैमाने पर लौह अयस्क का अवैध खनन और व्यापार सरकार के संरक्षण में चल रहा है. यहां तक कि इस साल जून में कर्नाटक के बेलेकेरी पोर्ट से लोकायुक्त द्वारा जब्त किया गया सैकड़ों करोड़ रूपये का लगभग ३५ लाख टन लौह अयस्क अवैध तरीके से निर्यात कर दिया गया. इस मामले में लोकायुक्त एन. संतोष हेगड़े ने इस्तीफा तक दे दिया था, इससे येदियुरप्पा सरकार की भारी किरकिरी हुई थी.

बात यहीं खतम नहीं होती. येदियुरप्पा सरकार के एक मंत्री एच. हलप्पा को अपने मित्र की पत्नी के साथ बलात्कार के आरोपों में इस्तीफा देना पड़ा जबकि एक अन्य मंत्री रेणुकाचार्य पर एक नर्स ने सार्वजनिक तौर पर यौन उत्पीडन का आरोप लगाया था. एक भाजपा विधायक वाई. सम्पंगी को पांच लाख रूपये की घूस लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया. आश्चर्य नहीं कि सत्ता की मलाई में अपने हिस्से के लिए भाजपा विधायकों में मंत्री बनने के लिए मार मची हुई है. हालत यह हो गई है कि मंत्री बनने के लिए भाजपा विधायक खुलेआम धरना, प्रदर्शन और लाबींग करते दिखे और जब मंत्री पद नहीं मिला या मलाईदार मंत्रालय नहीं मिला तो खुलेआम बगावत पर उतारू हो गए.

सल में, कर्नाटक में राजनीतिक पतन और उच्चक्केपन का जो खेल चल रहा है, वह कोई अपवाद नहीं है. कमोबेश यह एक राष्ट्रीय परिघटना बन चुका है. अधिकांश सत्ताधारी पार्टियां इस खेल में भागीदार हैं. हालांकि कांग्रेस इसकी स्रोत रही है लेकिन अब भाजपा पूरी तरह से कांग्रेसी संस्कृति में रंग चुकी है और कई मामलों में कांग्रेस के भी कान काटने पर उतारू है. कर्नाटक और झारखंड भाजपा के उस दोहरे राजनीतिक चरित्र की गवाही हैं जहां एक ओर पार्टी सार्वजनिक तौर पर ‘सुशासन’ की बात करती है लेकिन व्यवहार में, उसके नेता, विधायक, सांसद, मंत्री और मुख्यमंत्री अपने ‘निजी हितों’ को प्राथमिकता देते हैं. पार्टी और सरकार दोनों इस ‘निजी हित’ के बंधक बन चुके हैं. आश्चर्य नहीं कि कर्नाटक में पार्टी और सरकार रेड्डी बंधुओं और झारखंड में अजय कुमार संचेती जैसों के निजी हितों की बंधक है.

यह ठीक है कि गडकरी ने कथित सुशासन पर ‘निजी हितों’ की प्राथमिकता की राजनीति को न सिर्फ खुली स्वीकृति और वैधता दे दी है बल्कि सांस्थानिक रूप भी दे दिया है. लेकिन गडकरी के इस योगदान के बावजूद पूरा सच यह है कि वह भाजपा की परंपरा और विरासत को ही आगे बढ़ा रहे हैं. आखिर सत्ता की मलाई के लिए सबसे पहले भाजपा ने उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में ९५ सदस्यी मंत्रिमंडल का रिकार्ड बनाया था.

उसी दौर में भाजपा के सुशासन के माडल राज्य गुजरात में केशुभाई पटेल और शंकर सिंह बघेला के बीच सत्ता पर कब्जे का खुला और नंगा खेल चला. इसके बाद तो भाजपा के ‘चाल, चरित्र और चेहरे’ को तार-तार होने में ज्यादा समय नहीं लगा. इस मायने में, आज कर्नाटक और झारखंड के अलावा दूसरे भाजपा शासित राज्यों में जो कुछ हो रहा है, वह उसी प्रवृत्ति की निरंतरता और विस्तार भर है.

लेकिन निजी हितों की भरपाई के लिए सत्ता के इस्तेमाल और सार्वजनिक संपत्ति और संसाधनों की लूट की इस राजनीति की असली कीमत आम जनता चुका रही है. कहने की जरूरत नहीं है कि येदियुरप्पा की सरकार विधायकों और मंत्रियों और उनके कारपोरेट संरक्षकों के निजी हितों को प्राथमिकता देकर जितने भी दिन और सत्ता में रहेगी, राज्य और आम लोगों के हितों की ही क़ुरबानी देगी. कर्नाटक को इस लूट और राजनीतिक कीचड़ से निकालने के लिए कांग्रेसी राज्यपाल या कांग्रेस-जे.डी(एस) की अवसरवादी सरकार बनाने या हाई कोर्ट से उम्मीद करना भी बेकार है.

ऐसे में, यह जरूरी हो गया है कि विधानसभा भंग करके तत्काल नए चुनाव कराए जाएं. हालांकि कर्नाटक में लोगों के सामने कोई खास विकल्प नहीं है लेकिन लोकतंत्र में किसी भी और जोड़तोड़ के बजाय लोगों की अदालत में जाना ज्यादा बेहतर विकल्प है.

('समकालीन जनमत' के नवम्बर अंक में प्रकाशित लेख का संशोधित और परिवर्धित रूप)

1 टिप्पणी:

Gagan Gera ने कहा…

aaj kal hamare desh mein brashtachar hi to prampara ban gaya hai.