मंगलवार, नवंबर 02, 2010

इस देश की सुरक्षा को खतरा किससे है?

कल अरुंधती के घर पर हमले की निंदा करती टिप्पणी के लिंक को फेसबुक पर डालते हुए मुझे यह आशंका तो थी कि मेरे कई दोस्तों को इसपर आपत्ति होगी. यह अंदाज़ा भी था कि कई मित्र जो अरुंधती के विचारों से सहमत नहीं हैं, वे इस हमले से ज्यादा अरुंधती के विचारों को मुद्दा बनाएंगे लेकिन मुझे इसका अंदाज़ा नहीं था कि कश्मीर के सवाल पर देशभक्ति इतनी जल्दी अंध देशभक्ति में बदल जाती है कि तथ्यों को भी तोड़-मरोडकर पेश किया जायेगा.

फेसबुक पर चली बहस में समय की कमी कारण मैंने कुछ खास हस्तक्षेप नहीं किया लेकिन उनमें से कुछ मुद्दों का जवाब जरूर देना चाहता हूँ लेकिन आज नहीं. कोशिश करूँगा कि समय मिल सके तो कल कुछ लिखूं. लेकिन आज पाश की एक कविता जरूर यहां रखने चाहता हूँ जो उन्होंने ८० के दशक के मध्य में लिखी थी जब देश में पंजाब के आतंकवाद को लेकर जबरदस्त युद्धोन्माद का माहौल था.

हमें देश की सुरक्षा से खतरा है
अवतार सिंह पाश

यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना जमीर होना जिंदगी के लिए शर्त बन जाये
आंख की पुतली में हां के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दंडवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है.


हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेंह की गूंज की तरह गलियों में बहता है
गेहूं की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है
हम तो देश को समझे थे आलिंगन-जैसे एक एहसास का नाम
हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा
हम तो देश को समझते थे कुरबानी-सी वफा


लेकिन गर देश
आत्मा की बेगार का कोई कारखाना है
गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे खतरा है


गर देश का अमन ऐसा होता है
कि कर्ज के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा


और तनख्वाहों के मुंह पर थूकती रहे
कीमतों की बेशर्म हंसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से खतरा है


गर देश की सुरक्षा को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मर कर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
अक्ल, हुक्म के कुएं पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है.

1 टिप्पणी:

डॉ .अनुराग ने कहा…

अरुंधति के घर पर हमला मूर्खता की निशानी है .....निंदनीय है ......अलबत्ता इस कविता का तात्पर्य समझ नहीं आया .....क्यूंकि अब सबके पास कई हिस्से है....सब उसका इस्तेमाल अपनी अपनी सहूलियत के हिसाब से करते है