चैनलों की खबर के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा को इस्तीफा देने के लिए आज सुबह ११ बजे तक का समय दिया है. भाजपा नेतृत्व को यह डेडलाइन इसलिए देनी पड़ी है कि काफी टालमटोल और सोच-विचार के बाद अंततः भाजपा नेताओं ने येदियुरप्पा से रविवार को इस्तीफा देने को कहा और उन्हें दिल्ली बुलाया था. लेकिन येदियुरप्पा ने दिल्ली का टिकट दो बार रद्द कराने के बाद बंगलुरु में ऐलान कर दिया कि उनके साथ न सिर्फ ११०-१२० विधायक हैं बल्कि येदियुरप्पा का उत्तराधिकारी येदियुरप्पा ही हैं.
साफ है येदियुरप्पा बगावती मूड में हैं. वे दिल्ली आने के बजाय साईं बाबा की शरण में पहुँच गए हैं. वे अपनी विदाई टालने के सारे जतन कर रहे हैं. लेकिन भाजपा हाईकमान के हाथ-पैर फूले हुए हैं. उसे समझ में नहीं आ रहा है कि येदियुरप्पा को कैसे काबू में करें? उसे डर सता रहा है कि कहीं येदियुरप्पा बगावत की बगावत या नाराजगी के कारण राज्य में किसी तरह तीन-तिकडम करके घिसट-घिसटकर चल रही भाजपा सरकार खतरे में न पड़ जाए. उसे इस बात की चिंता भी सता रही है कि कर्नाटक में पार्टी के मुख्य सामाजिक आधार- लिंगायतों में येदियुरप्पा को हटाने का नकारात्मक सन्देश न चला जाए.
लेकिन दक्षिण भारत में भगवा पार्टी की इस पहली सरकार की जो हालत है कि उसके लिए येदियुरप्पा से कम जिम्मेदार भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व नहीं है. पार्टी नेतृत्व ने ही नहीं बल्कि आर.एस.एस ने भी जिस तरह से सच जानते हुए भी पिछले कई महीनों से खुलकर येदियुरप्पा का बचाव किया है और अभी पिछले सप्ताह तक उन्हें क्लीन चिट दी है, उसके कारण ही येदियुरप्पा को इतनी हिम्मत हो रही है कि वे इस्तीफा देने से इंकार कर रहे हैं. इस पूरे प्रकरण ने भाजपा में पार्टी अनुशासन की भी पोल खोल दी है. इससे यह भी पता चलता है कि ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ की राजनीति में नैतिकता, शुचिता और मूल्यों की क्या हैसियत रह गई है?
सच यह है कि येदियुरप्पा आज अगर चोरी, ऊपर से सीनाजोरी के मूड में हैं तो इसकी वजह भाजपा की वह राजनीति है जिसके स्खलन के सबूत बहुत पहले से मिलने लगे थे. केंद्र में एन.डी.ए के नेतृत्व वाली वाजपेयी सरकार पर भी भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, अनियमितताओं और पक्षपात के गंभीर आरोप लगते रहे हैं. भाजपा में सत्ता के लिए मारामारी, छीना-झपटी और निकृष्ट स्तर के समझौते कोई नई बात नहीं हैं. कल्याण सिंह से लेकर येदियुरप्पा तक यह सूची बहुत लंबी है.
जाहिर है कि येदियुरप्पा को पार्टी की यह कमजोर नस पता है. उन्हें यह भी पता है कि पार्टी सत्ता के लिए किस हद तक नीचे उतर कर समझौते कर सकती है? वे इसका ही टेस्ट ले रहे हैं. वैसे उन्हें पता है कि उनका जाना तय है लेकिन जाने से पहले वे भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व की पूरी छिछालेदर कर के जाने की तैयारी में है.
2 टिप्पणियां:
... kuchh bhee sambhav hai !!!
येदियुरप्पा को पार्टी की यह कमजोर नस पता है. उन्हें यह भी पता है कि पार्टी सत्ता के लिए किस हद तक नीचे उतर कर समझौते कर सकती है? वे इसका ही टेस्ट ले रहे हैं ?
एक दम सही और सच्ची बात कह रहे हैं सर आप.....
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