शुक्रवार, नवंबर 26, 2010

पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?

बिहार में नीतीश की जीत को जोरशोर से विकास की जीत बताया जा रहा है. क्या राजनेता, क्या मीडिया, क्या राजनीतिशास्त्री, क्या समाजशास्त्री और क्या अर्थशास्त्री- सभी एक सुर में बिहार में नीतीश के नेतृत्व में विकास और सुशासन की नई कहानी लिखे जाने का गाना गा रहे हैं. इस कोरस में कुछ बहुत बुनियादी बातें भुला दी गई हैं या उनपर बड़ी चालाकी से पर्दा डालने की कोशिश हो रही है.

सवाल है कि इस विकास और सुशासन की राजनीति क्या है? क्या विकास और सुशासन के नाम पर विकास पुरुष की राजनीति को नजरंदाज़ किया जा सकता है. क्या सांप्रदायिक और सामंती शक्तियों के साथ गलबहियां डाले नीतीश की राजनीति को सिर्फ इसलिए अनदेखा कर दिया जाये कि उन्होंने बिहार में सड़क-सुरक्षा और सुशासन दिया है? भाजपा के साथ खड़े नीतीश आखिर किस राजनीति को मजबूत कर रहे हैं?

 याद रहे  यह कथित विकास और सुशासन तो गुजरात में भी खूब हो रहा है और इसी आधार पर कार्पोरेट जगत से लेकर बहुतेरे स्वनामधन्य पत्रकारों को भी लगता है कि इस 'विकास और सुशासन' के सूत्रधार नरेन्द्र  मोदी को प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए. नीतीश ने मोदी को बिहार आकर प्रचार नहीं करने दिया लेकिन उनकी राजनीति परोक्ष रूप से मोदी और उनकी राजनीति को मजबूत कर रही है.

लेकिन हवा देखकर पीठ बदल लेनेवाले कुछ बुद्धिजीवियों को लगता है कि बिहार में भाजपा बदल गई है. क्या भाजपा सचमुच, बदल गई है? आखिर ये लोग किसे बेवकूफ बना रहे हैं? भाजपा जो थी, वही है और वही रहेगी.   

माफ़ कीजिये मैं इस कोरस में शामिल होने को तैयार नहीं हूँ. मैं नीतीश और उनके समर्थकों से जरूर पूछना चाहता हूँ कि पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?

(इस मुद्दे पर विस्तार से मेरी राय पढने के लिए इंतजार किये, अगले सोमवार तक... इस बीच, आपको जो भी सवाल या मुद्दे जरूरी लगते है, मुझे जरूर बताइए ताकि उनपर बात की जा सके...और हाँ, कल 'राष्ट्रीय सहारा' के हस्तक्षेप में २ जी पर अलग नजर... )      

3 टिप्‍पणियां:

sandeep ने कहा…

* बिहार के सकल घरेलू उत्पाद में लगातार गिरता कृषी-उत्पादन , (पछले साल 18 फिसद का गिरावट उस से पहले 14 फिसद का) ,

* शिक्षा नीति द्वारा निजीकरण को लगातार बढ़ावा देना ,

* भूमि-सुधार के सवाल पर सामंतों के साथ खड़ा होना ,( डी. बंदोपाध्याय कमिटी पर आपराधिक चुप्पी )

* भ्रष्टाचार को सामान्यीकृत कर देना (राशन-किरासन , इंदिरा आवास , मनरेगा, लाल कार्ड , पीला कार्ड वृद्धा पेंसन आदि में घूसखोरी नाम मात्र भी कम नहीं हुआ है , बल्कि इस भ्रष्टाचार को सामान्यीकृत और स्वाभाविक बना दिया गया है ),

* रोजगार के बचे खुचे अवसर को भी ठेकेदारों के हाथ में सौंप देना ( शिक्षा-मित्र , आंगनबाड़ी की नियुक्ति में बिचौलियों और मुखियाओं की धांधली जगजाहिर है ) , या किसी तरह कम कर देना (बिहार पुलिस की नियुक्ति को रोक कर उसकी जगह फ़ौज के सेनानिवृतों को सैफ के नाम पर भर्ती कर लिया गया, शिक्षा में सुधार को लेकर एक कमिटी बनी थी जिसने 7 लाख स्थायी शिक्षकों की नियुक्ती की सिफारिश की थी लेकिन 7 हज़ार की भी भर्ती नहीं हुई .)
* दंगाई भाजपा की गोद में बैठकर या उसे अपनी गोद में बैठाकर मुसलमानों की बात करना !


दरअसल सुशासन और विकास के नाम पर यह झूट और लूट का राज है !!!

sandeep ने कहा…

* बिहार के सकल घरेलू उत्पाद में लगातार गिरता कृषी-उत्पादन , (पछले साल 18 फिसद का गिरावट उस से पहले 14 फिसद का) ,

* शिक्षा नीति द्वारा निजीकरण को लगातार बढ़ावा देना ,

* भूमि-सुधार के सवाल पर सामंतों के साथ खड़ा होना ,( डी. बंदोपाध्याय कमिटी पर आपराधिक चुप्पी )

* भ्रष्टाचार को सामान्यीकृत कर देना (राशन-किरासन , इंदिरा आवास , मनरेगा, लाल कार्ड , पीला कार्ड वृद्धा पेंसन आदि में घूसखोरी नाम मात्र भी कम नहीं हुआ है , बल्कि इस भ्रष्टाचार को सामान्यीकृत और स्वाभाविक बना दिया गया है ),

* रोजगार के बचे खुचे अवसर को भी ठेकेदारों के हाथ में सौंप देना ( शिक्षा-मित्र , आंगनबाड़ी की नियुक्ति में बिचौलियों और मुखियाओं की धांधली जगजाहिर है ) , या किसी तरह कम कर देना (बिहार पुलिस की नियुक्ति को रोक कर उसकी जगह फ़ौज के सेनानिवृतों को सैफ के नाम पर भर्ती कर लिया गया, शिक्षा में सुधार को लेकर एक कमिटी बनी थी जिसने 7 लाख स्थायी शिक्षकों की नियुक्ती की सिफारिश की थी लेकिन 7 हज़ार की भी भर्ती नहीं हुई .)
* दंगाई भाजपा की गोद में बैठकर या उसे अपनी गोद में बैठाकर मुसलमानों की बात करना !


दरअसल सुशासन और विकास के नाम पर यह झूट और लूट का राज है !!!

PD ने कहा…

आपका लेख आया नहीं?

वैसे किसी एक दल के प्रति पूर्ण निष्ठा से घृणा भाव दिखाने पर यह सवाल आपसे भी है!!