बुधवार, सितंबर 01, 2010

चैनलों का ‘आजाद’ सच

समाचार चैनल अपनी आज़ादी और सच के साथ खड़ा होने का ढोल खूब पीटते रहे हैं. अभी हाल में, यू.पी.ए सरकार ने जब चैनलों के नियमन (रेगुलेशन) के लिए एक भारतीय राष्ट्रीय प्रसारण प्राधिकरण (एन.बी.ए.आई) के गठन का मसौदा चैनलों के पास विचार के लिए भेजा, तो चैनलों ने उसे अपनी आज़ादी को कम करने की कोशिश बताते हुए उसका विरोध किया. चैनलों का यह विरोध बिल्कुल जायज है. निश्चय ही, चैनलों को ऐसी किसी भी कोशिश का खुलकर विरोध करना चाहिए जो उनकी आज़ादी को कम करने या उसमें हस्तक्षेप करने और सच को दबाने की कोशिश करता हो.

लेकिन क्या चैनल ऐसी हर कोशिश का इसी तरह से विरोध करते हैं जो उनकी आज़ादी को कम करने या सच को दबाने की कोशिश करती है? ऊपर से देखिये तो ऐसा लगता है कि ये चैनल पूरी तरह से आज़ाद हैं. लेकिन शायद यह पूरा सच नहीं है. कई मामलों में चैनलों की यह आज़ादी और सच बोलने का उनके दावे सीमित और सतही मालूम होते हैं. खासकर पाकिस्तान, कश्मीर, उत्तर पूर्व, माओवाद जैसे मसलों पर हमारे चैनलों की यह ‘आज़ादी’ और उनका ‘सच’ अक्सर ‘देशभक्ति’ और ‘राष्ट्रहित’ आदि से टकराकर लड़खड़ाने लगते हैं.

अभी पिछले महीने माओवादी नेता चेरुकुरी राजकुमार (आज़ाद) और स्वतंत्र पत्रकार हेमचन्द्र पाण्डेय की कथित पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की खबर को ही लीजिए. चैनलों ने इस मामले को न सिर्फ एक रूटीन खबर की तरह दिखाकर निपटाने की कोशिश की बल्कि पुलिस के दावे को ही सच मानकर उसकी और जांच-पड़ताल की कोई कोशिश नहीं की. आज़ाद के मामले में ‘आज़ाद’ और ‘सच’ बोलनेवाले चैनलों की चुप्पी हैरान करनेवाली है. जबकि इस पूरे मामले में ऐसे कई तथ्य हैं, जो और पहलुओं को छोड़ भी दीजिए तो सिर्फ एक खबर के लिहाज से भी उसे बड़ी खबर बनाते हैं. ऐसा भी नहीं है कि इन तथ्यों की खोज के लिए चैनलों को बहुत दौड़-भाग या खोजी पत्रकारिता करने की जरूरत थी.

लेकिन किसी भी चैनल ने इस खबर को खबर की तरह दिखाने की कोशिश नहीं की. जैसे, दिल्ली में स्वामी अग्निवेश प्रमाण सहित यह जानकारी दे रहे थे कि किस तरह माओवादी नेता आज़ाद माओवादी पार्टी और सरकार के बीच शांति वार्ता के प्रमुख सूत्रधार थे. ध्यान रहे कि अग्निवेश माओवादियों और सरकार के बीच बातचीत शुरू कराने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने शांति वार्ता की यह कोशिश गृह मंत्री पी. चिदम्बरम की पहल पर शुरू की थी. स्वामी अग्निवेश के मुताबिक आज़ाद कथित पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने से पहले स्वामी जी की वह चिट्ठी लेकर माओवादी नेतृत्व के पास जाने की तैयारी कर रहे थे जिसमें वार्ता शुरू करने के लिए गृह मंत्रालय की ओर से रखी गई जरूरी शर्त ७२ घंटे के युद्ध विराम की तीन तारीखों का प्रस्ताव था.

सवाल यह है कि आज़ाद क्यों और किन परिस्थितियों में मारे गए? उनके साथ स्वतंत्र पत्रकार हेमचन्द्र पाण्डेय कैसे मारे गए? क्या वह मुठभेड़ वास्तविक थी? इस मुठभेड़ की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच से सरकार क्यों कतरा रही है? क्या इस मुठभेड़ का मकसद शांति वार्ता की कोशिशों को आगे बढ़ने से रोकना नहीं था? आखिर सरकार और उससे बाहर वे कौन लोग हैं जो शांति वार्ता नहीं चाहते हैं? शांति वार्ता न होने से किसे फायदा होनेवाला है? ये और ऐसे ही दर्जनों सवाल हैं जो गहराई से जांच-पड़ताल की मांग करते हैं. यह इसलिए भी जरूरी है कि गुजरात में सोहराबुद्दीन मामले की सी.बी.आई जांच से न सिर्फ फर्जी पुलिसिया मुठभेड़ों की आपराधिक सच्चाई सामने आ रही है बल्कि उसमें राज्य के गृह मंत्री अमित शाह तक जेल पहुंच चुके हैं.

सवाल है कि क्या आज़ाद चैनलों के लिए आज़ाद की मुठभेड़ हत्या ऐसी खबर नहीं थी जिसकी सच्चाई सामने लाने की कोशिश की जाती? क्या इस देश की जनता को सच जानने का हक नहीं है? लेकिन अफ़सोस की बात है कि इतने महत्वपूर्ण मामले को चैनलों ने गहरी छानबीन के लायक नहीं समझा जबकि माओवादी-पुलिस हिंसा-प्रतिहिंसा में सैकड़ों बेगुनाह लोग लगातार मारे जा रहे हैं. याद रखिए, ये वही चैनल हैं जिन्होंने माडल विवेका बाबाजी की आत्महत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए कई दिनों तक घंटों कीमती एयर टाइम खर्च किया. क्या फिर यह मान लिया जाए कि चैनलों की आज़ादी का दायरा सिर्फ माडल विवेका बाबाजी या थोडा आगे बढ़कर जेसिका लाल या रुचिका या प्रियदर्शिनी मट्टू आदि मामलों को उठाने तक सीमित हो चुका है जहां कुछ बड़े और रसूखदार लोगों के खिलाफ बोलना ही सच की सीमा है?

लेकिन बात जैसे ही कुछ व्यक्तियों से आगे बढ़कर सत्ता संरचना और उसकी संस्थाओं और उसमें बैठे शीर्ष व्यक्तियों तक पहुंचती है, चैनलों की आज़ादी और उनका सच हकलाने लगते हैं. सच पूछिए तो आज़ाद चैनलों की आज़ादी की सीमा की जांच के लिए आज़ाद की मौत एक टेस्ट केस बन गई है. इस मामले में चैनलों के साथ-साथ समूचे कारपोरेट मीडिया की चुप्पी या खुलकर सरकार के साथ खड़े होने से उनकी आज़ादी की सीमाएं पूरी तरह से बेपर्द हो गई हैं. साफ है, चैनलों ने खुद ही अपनी आज़ादी सरकार के सच को समर्पित कर दी है. सरकार बेवकूफ है, ऐसे समर्पित चैनलों के लिए नियमन की क्या जरूरत है?
(तहलका, ३१ जुलाई'१० )

5 टिप्‍पणियां:

govtjobeffortless ने कहा…

सर आपने मीडिया के बारे में अच्छी बात बताई ! लेकिन मुझे लगता है कि हर व्यक्ति कि एक विचारधारा होती है वो उसी के अनुसार सोचाता है , लिखता,बोलता है !आप का ब्लॉग में रोज पढ़ रहा हु !लेकिन मुझे लगता है कि आप के विचार में भी निष्पकता कि कमी है !आजाद के बारे में आप का विश्लेषण सही हो सकता है लेकिन नक्सलवादियो कि हिंसा के बारे में आपने अपने ब्लॉग में कुछ भी नहीं लिखा है!आप नक्सलवाद हिंसा के बारे में नहीं लिखते और मीडिया वाले पुलिस हिंसा के बारे में,तो फिर दोनों में अंतर क्या है ! आपका प्रिय स्टुडेंट -रवि hindi journalism

govtjobeffortless ने कहा…

सर आप ने मीडिया के बारे में बहुत अच्छा बताया लेकिन मुझ ऐसा लगता है कि हर इन्सान कि कोई विचारधारा होती है और हर इन्सान उसी के अनुसार सोचता है ,लिखता है,बोलता है! मै आप का ब्लॉग लगातार पढ़ रहा हूँ !मुझे ऐसा लगता है कि आप के कमेन्ट में भी निष्पक्षता कि कमी है !आप नक्सलवादी हिंसा पर कुछ नहीं लिखते है और मीडिया वाले पुलिस हिंसा पर तो दोनों में क्या अंतर है !
आप का प्रिय स्टुडेंट -रवि hindi journalism

आनंद प्रधान ने कहा…

प्रिय रवि,
तुम्हारा गुस्सा सिर माथे...हो सकता है कि मैं भी निष्पक्ष न होऊं. लेकिन कोई तीन महीने पहले मैं एक लेख माओवाद पर लिखा था...अगर पढकर बता सको कि तुम्हें कैसा लगा?

http://teesraraasta.blogspot.com/2010/04/blog-post_20.html

govtjobeffortless ने कहा…

सर मैंने आप का "संकट में है अराजक सैन्य माओवादी राजनीति अप्रैल 20 , 2010 " लेख पढ़ा! मैं आप से माफी चाहता हूँ कि मैंने आप का यह ब्लॉग पढ़े बिना आप पर आरोप लगाया !वास्तव में आप ने इस लेख में माओवाद हिंसा को उजागर किया है !आप इसी तरह मेरी ग़लतियों में सुधार करते रहेंगे !आप का प्रिय स्टुडेंट -रवि HINDI JOURNALISM

pooja nagar ने कहा…

sir media ki azadi aur sawantra lekhan ki baat se to har wo insan sahmat hoga jiska zara bhi journalism se taluuk hai, lekin kya apko nahi lagta ki aaj media apni simao ko jis tar lang raha hai aur khokali patrakarita kar raha hai uske liye ab jaruri ho gaya hai ki kisi tarah ka niyaman hona chaiye.
pooja nagar,HJ