कांग्रेस इमरजेंसी के दौर की भाषा बोलने लगी है
कांग्रेस अब अपने असली फार्म में आ गई है. कल तक बाबा रामदेव की अगवानी में बिछी और उनसे अंदरखाते की ‘डील’ के लिए बेचैन कांग्रेस को अब इलहाम हुआ है कि रामदेव न सिर्फ ‘ठग’ हैं बल्कि वे संघ परिवार के मुखौटे हैं. कांग्रेस के मुताबिक, राष्ट्रविरोधी सांप्रदायिक ताकतें देश को अस्थिर करने की कोशिश कर रही हैं, देश में दंगा भडकाने और अराजकता फैलाने की कोशिश की जा रही है और सरकार के खिलाफ दुर्भावना पैदा करने का अभियान चलाया जा रहा है.
कांग्रेस ने इसके साथ ही यह भी एलान कर दिया है कि वह सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों से निपटने और उनका मुकाबला करने से पीछे नहीं हटेगी. माफ़ कीजियेगा, कांग्रेस की यह भाषा नई नहीं है. ७० और ८० के दशक में खासकर इमरजेंसी के दौरान देश यह भाषा सुन और भुगत चुका है. याद करिये, भ्रष्टाचार और तानाशाही के आरोपों में घिरी इंदिरा गाँधी और बाद में राजीव गाँधी के ज़माने में भी कांग्रेस लगभग यही भाषा बोलती सुनी गई थी. तब और अब में फर्क सिर्फ इतना है कि उस समय सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों के साथ-साथ अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सी.आई.ए को भी जिम्मेदार ठहराया जाता था.
लेकिन सी.आई.ए का नाम इसलिए नहीं लिया जा रहा है क्योंकि अब सी.आई.ए इस सरकार को ‘स्थिर करने में’ खासी दिलचस्पी ले रही है (सौजन्य: विकिलिक्स). यह भी देश से छुपा नहीं है कि जब कांग्रेस ऐसी भाषा बोलना शुरू करती है तो उसका मतलब क्या होता है? देश का हालिया इतिहास इसका गवाह है. इसका मतलब होता है कि सरकार आनेवाले दिनों में भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ मध्यमवर्गीय समाज के शांतिपूर्ण लोकतान्त्रिक आन्दोलनों को भी बर्दाश्त नहीं करने जा रही है. गरीबों, आदिवासियों, दलितों और खेतिहर मजदूरों के खिलाफ तो ग्रीन हंट पहले से ही जारी है.
साफ है कि यह बाबा रामदेव के अनशन और मजमे के साथ जो हुआ, वह शुरुआत भर है. कांग्रेस ने संकेतों में अपनी असली मंशा भी जाहिर कर दी है. अब किसी को कोई शंका नहीं रह जाना चाहिए कि अगला निशाना अन्ना हजारे और भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन है. कांग्रेस और सरकार से आ रहे आक्रामक बयानों से साफ है कि सिविल सोसायटी के साथ हनीमून लगभग सभी व्यवहारिक अर्थों में खत्म हो चुका है. कांग्रेस को संसद की सर्वोच्चता और संविधान की याद आने लगी है. उसने तय कर लिया है कि देश को ‘भीड़तंत्र’ से नहीं चलाया जा सकता है और शनिवार की रात उसने ‘रेडलाइन’ खींच दी है.
सवाल है कि क्या सचमुच, कांग्रेस रामलीला मैदान में पुलिसिया कार्रवाई के जरिये सांप्रदायिक फासीवाद से लड़ रही है? सच यह है कि वह संघ परिवार से नहीं बल्कि भ्रष्टाचार विरोधी नागरिक आंदोलन से लड़ रही है और इस तरह संघ परिवार-भाजपा को मजबूत करने में लगी है. दोहराने की जरूरत नहीं है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस को चुपचाप देखनेवाली और वैचारिक-राजनीतिक तौर पर संघ परिवार के आगे घुटने टेक चुकी कांग्रेस सांप्रदायिक फासीवाद से नहीं लड़ रही है बल्कि संघ परिवार को नई राजनीतिक जमीन मुहैया करवाने में लगी है.
राजनीतिक रूप से कोई अंधा भी देख सकता है कि कांग्रेस के रवैये से राजनीतिक तौर पर किसे फायदा हो रहा है? कांग्रेस और यू.पी.ए की मदद से खुद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी और येदियुरप्पा से लेकर निशंक तक भ्रष्ट मुख्यमंत्रियों की पैरोकार भाजपा को गंगा नहाने और भ्रष्टाचार विरोध की अगुवाई करने का मौका मिल गया है. इस हकीकत को अनदेखा करना मुश्किल है कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी और विदेशों में जमा कालेधन के मुद्दे पर मुंह चुरा रही मनमोहन सिंह सरकार की साख और विश्वसनीयता दिन-पर-दिन और जैसे-जैसे नीचे गिर रही है, उसका सबसे ज्यादा राजनीतिक फायदा भाजपा और संघ परिवार को हो रहा है.
सच पूछिए तो कांग्रेस भी यही चाहती है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर खड़ी हो रही देशव्यापी लड़ाई उसके और संघ परिवार के बीच की राजनीतिक कुश्ती में बदल जाये. इसमें उसे कम से कम अल्पसंख्यक वोटों के ध्रुवीकरण और उससे होनेवाला राजनीतिक फायदा दिखाई पड़ रहा है. यह राजनीतिक रूप से भाजपा और संघ परिवार को भी मुफीद बैठता है. उन्हें इसमें अपने राजनीतिक पुनरुद्धार का सुनहरा मौका दिखाई दे रहा है.
जाहिर है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों लोकतान्त्रिक ताकतों की अगुवाई में चल रहे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को अपने-अपने तरीके से इस्तेमाल और हाइजैक करने की कोशिश कर रहे हैं. इसमें कोई दोराय नहीं है कि बाबा रामदेव भी इस कांग्रेसी-भाजपाई नूराकुश्ती के एक मोहरे भर बनकर रह गए. लेकिन अब जरूरत इस खेल को समझने और उसका पर्दाफाश करने की है.
सच यह है कि संघ परिवार की सबसे बड़ी मददगार खुद कांग्रेस है. विश्वास नहीं हो तो आनेवाले दिनों में सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक से लेकर सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू करने के मुद्दे पर कांग्रेस की नीति और रवैये पर नजर रखियेगा. सच सामने आ जायेगा कि कांग्रेस सांप्रदायिकता से कितनी मजबूती से लड़ती है.
(जल्दी ही, भ्रष्टाचार विरोधी सिविल सोसायटी के आन्दोलन की कमजोरियों और अंतर्विरोधों पर भी बात करेंगे...आप इस बहस पर अपनी राय से जरूर दीजिये)
3 टिप्पणियां:
ye saamanto ki congress ho gayi hai?congress ko desh ki nhi apne netaon ki fikar hai.in sabke beech sawal soniya aur rahul se seedhe sawaal pooche jane chahiye?madam yahan desh ko bachane ke liye bhi kuch karengi ya apne vansh ka hi poshan karati rahengi?asali mudda kahan hai rahul g,soniya g aapka mouthpiece(digvijay singh)to aant shant bol kar media byte batorne main laga hai.
ye saamanto ki congress ho gayi hai?congress ko desh ki nhi apne netaon ki fikar hai.in sabke beech sawal soniya aur rahul se seedhe sawaal pooche jane chahiye?madam yahan desh ko bachane ke liye bhi kuch karengi ya apne vansh ka hi poshan karati rahengi?asali mudda kahan hai rahul g,soniya g aapka mouthpiece(digvijay singh)to aant shant bol kar media byte batorne main laga hai.
सच्चाई बिलकुल सामने नजर आ रही है कि केन्द्र सरकार अब अपने भ्रष्ट आचरण की पोल खुलने से पूरी तरह से घबराई हुई है। एक बात कहुगां "विनाशकाले विपरित बुद्धी"
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