रविवार, जून 05, 2011

दमन पर उतर आई है यू.पी.ए सरकार

कांग्रेस और भाजपा दोनों रामदेव का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही हैं



जैसीकि आशंका थी, वही हुआ. भ्रष्टाचार और कालेधन के मुद्दे पर चारों ओर से घिरी यू.पी.ए सरकार और खासकर कांग्रेस अब दमन पर उतर आई है. सिविल सोसायटी के साथ भ्रष्टाचार से लड़ने का नाटक कर रही सरकार अपने असली रूप में आ गई है. इसके साथ ही, यू.पी.ए सरकार और सिविल सोसायटी के राजनीतिक रूप से महत्वाकांक्षी हिस्से के साथ शुरू हुआ संक्षिप्त हनीमून कल रात जबरदस्त कड़वाहट के बीच समाप्त हो गया.


कहने की जरूरत नहीं है कि विदेशों में जमा कालाधन को वापस देश में लाने के मुद्दे पर शनिवार से अनशन (या तप) पर बैठे बाबा रामदेव के सत्याग्रह को जिस तरह से आधी रात की पुलिसिया कार्रवाई के जरिये तहस-नहस किया गया, उससे साफ़ है कि मनमोहन सिंह सरकार ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सिविल सोसायटी के साथ दिखावे के लिए ही सही सहयोग और समावेश की राजनीति के बजाय टकराव और दमन का इरादा बना लिया है. इस तरह यू.पी.ए सरकार ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया है.

आश्चर्य नहीं होगा, अगर आनेवाले दिनों में लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए गठित समिति का भी यही हश्र हो. इसके संकेत मिलने भी लगे हैं. लोकपाल समिति की पिछली बैठक में सरकारी प्रतिनिधियों ने जिस तरह से प्रधानमंत्री और शीर्ष न्यायपालिका से लेकर सांसदों और अफसरों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने की वकालत और इस मुद्दे पर अड़ियल रूख अपनाना शुरू कर दिया है, उसके बाद सरकार के इरादों को लेकर संदेह बढ़ने लगा है. सरकार के रवैये से साफ है कि वह एक प्रभावी और सख्त लोकपाल के पक्ष में नहीं है और इस पूरी प्रक्रिया को पटरी से उतारने के लिए हर तिकड़म करेगी.

वैसे इसकी शुरुआत पहले से ही हो चुकी है. जिस तरह से लोकपाल समिति के गठन के बाद इसके सिविल सोसायटी सदस्यों खासकर शांति भूषण और प्रशांत भूषण के खिलाफ सरकार की शह पर दुष्प्रचार शुरू हुआ, उससे साफ हो गया था कि आगे क्या होनेवाला है? हैरानी की बात नहीं है कि कल रात रामलीला मैदान में यू.पी.ए सरकार खुले दमन पर उतर आई. यही नहीं, सरकार ने जिस तरह से ऐसे सभी आन्दोलनों को सख्ती की चेतावनी दी है, उससे भी साफ है कि रामलीला मैदान में जो कुछ भी हुआ, वह सिर्फ ट्रेलर है. आनेवाले दिनों में सरकार भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को तोड़ने के लिए साम-दाम-दंड-भेद की नीति का खुलकर इस्तेमाल करेगी.

यहाँ यह स्पष्ट करना जरूरी है कि मैं खुद बाबा रामदेव और उनके विचारों और तौर-तरीकों का समर्थक नहीं हूँ. इस बात को स्वीकार करते हुए भी कि भ्रष्टाचार और कालेधन खासकर विदेशों में जमा कालेधन को देश में वापस लाने के लिए एक बड़े जनांदोलन की जरूरत है, मैं बाबा रामदेव के अभियान के साथ कई कारणों से असहज महसूस करता हूँ. उनके अभियान में जिस तरह से सांप्रदायिक फासीवादी संगठनों और उनके नेताओं से लेकर कुख्यात खाप पंचायत तक के लोग शामिल हैं और उसका नेतृत्व कर रहे हैं, उसके साथ किसी भी जनतांत्रिक व्यक्ति के लिए खड़ा होना मुश्किल होगा. यही नहीं, खुद बाबा रामदेव के विचारों में अलोकतांत्रिक और सांप्रदायिक फासीवादी रुझान साफ देखे जा सकते हैं.

लेकिन कोई भी जनतांत्रिक व्यक्ति एक शांतिपूर्ण सत्याग्रह पर बर्बर पुलिसिया कार्रवाई का समर्थन नहीं कर सकता है. खासकर जिस तरह से सरकार ने आधी रात को आंसू गैस, लाठीचार्ज और वृद्धों-महिलाओं के साथ बदसलूकी की है, उसकी जितनी निंदा की जाये, वह कम है. यह समझ से बिलकुल बाहर है कि जो सरकार कल तक रामदेव के स्वागत में बिछी जा रही थी, उनसे डील कर रही थी और यहाँ तक कि रात में ११.३० बजे मांगे मानने की चिट्ठी भेजने के बाद अचानक ऐसा क्या हो गया कि रात १.३० बजे पुलिसिया कार्रवाई करनी पड़ी? निश्चय ही, सरकार को इस यू टर्न के कारण स्पष्ट करने होंगे.

इसमें भी कोई शक नहीं है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस) और उसके अनुषांगिक संगठनों जैसे विहिप, बजरंग दल आदि की बाबा रामदेव के इस आंदोलन में गहरी दिलचस्पी है. यह किसी से छुपा नहीं है कि संघ परिवार बाबा रामदेव को कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहता है. लेकिन इसके साथ ही यह भी उतना ही बड़ा सच है कि खुद बाबा रामदेव की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं आसमान छू रही हैं. यही कारण है कि खुद भाजपा इस आंदोलन को लेकर संशय में थी और उसे लग रहा था कि कहीं कांग्रेस रामदेव को इस्तेमाल न कर ले जाये. उसे यह भी डर सता रहा था कि कांग्रेस बाबा रामदेव को चढ़ाकर उसके समानांतर एक राजनीतिक ताकत खड़ा करने की कोशिश कर रही है.

इस प्रकरण पर भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया में भी वह खिन्नता छुपाये नहीं छुप सकी कि विदेशों में जमा कालेधन का मुद्दा सबसे पहले भाजपा ने उठाया था. भाजपा का यह डर तब और बढ़ गया, जब कांग्रेस ने बाबा को हाथों-हाथ लेना शुरू किया. हालाँकि तुलनाएं हमेशा बिलकुल सही नहीं होती हैं लेकिन बाबा रामदेव को कांग्रेस और यू.पी.ए सरकार जिस तरह से आसमान पर चढा रही थी, वह काफी हद तक ८० के दशक में अकालियों को राजनीतिक रूप से मात देने के लिए इंदिरा गाँधी ने पंजाब में भिंडरावाले को खड़ा करने की रणनीति से मिलता-जुलता था.

कहने का मतलब यह है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों राजनीतिक रूप से बाबा रामदेव को इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं. जब कांग्रेस को लगा कि बाबा रामदेव हाथ में नहीं आ रहे हैं तो उसने रणनीति बदलते हुए एक ओर पुलिसिया दमन और दूसरी ओर, राजनीतिक रूप से बाबा को आर.एस.एस एजेंट घोषित करने का अभियान छेड दिया है. कांग्रेस और सरकार ने अब भाजपा को भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को हाइजैक करने का मौका दे दिया है. इस तरह एक बार फिर भ्रष्टाचार और कालेधन के मुद्दे पर कांग्रेस और भाजपा के बीच नूराकुश्ती शुरू हो गई है. दोनों इसका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश में जुट गए हैं.

लेकिन इसका मौका खुद बाबा रामदेव और उनके समर्थकों ने दिया है. उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं, सांप्रदायिक विचारों और मनमाने तौर-तरीकों ने भ्रष्टाचार और कालेधन के गंभीर मुद्दे को जिस तरह से हल्का और मजाक का विषय बना दिया है, वह देश में इस मुद्दे पर खड़ा हो रहे एक बड़े आंदोलन के लिए बड़ा झटका है.

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

sir,
aapka vishleshan balanced hai.varana pure din lagbhag saare channel dekhe sare bised view hi de rahe hain sahi aaklan koi nahi karata,shayad yahi durbhagya hai desh ka jo log, logo ki soch gadate hain vahi logo ke saamne anargal pralaap karate sunayee padate hain..tabhi kaale dhan ke asal mudde ko dustbin main daalkar RSS,BJP,CONGRESS ke raag sunane lage hain so called national media..

दीपान्शु गोयल ने कहा…

आपने सही लिखा है कि बाबा के तौर तरीको पर आपत्ति की जा सकती है। अगर बाबा के तरीके किसी को पंसदी नही है तो उसकी आलोचना का अधिकार सभी को है। लेकिन उन्होने एक सही मुद्दे को उठाया है इसमे कोई शक नही है। सरकार ने जिस तरह से उस आवाज को दबाने के लिए पुलिसिया अत्याचार किये है उसकी घोर निंदा की जानी चाहिए। एक लोकतंत्र मे अपनी बात कहने का अधिकार सभी को है। इस घटना के बाद तो लग रहा है कि जैसे देश तानाशाही की तरफ बढ रहा है। औऱ इसके खिलाफ हर व्यक्ति को मिल कर आवाज उठानी होगी।

Indra ने कहा…

बहुत सटीक और संतुलित टिप्पणी है सर।

Indra ने कहा…

बहुत सटीक और संतुलित टिप्पणी है सर।