गुरुवार, सितंबर 09, 2010

विकास या विनाश?

जमीन की लूट पर आधारित ‘विकास’ का यह माडल टिकाऊ और समावेशी नहीं है


‘दिल्ली में आदिवासियों, किसानों और गरीबों के सिपाही’ कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की मांग पर प्रधानमंत्री ने तुरंत यह आश्वासन दे दिया कि सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में भूमि अधिग्रहण कानून’१८९४ में बदलाव के लिए संशोधन विधेयक लाएगी.

इस हड़बड़ी के कारण स्पष्ट हैं. कौन नहीं जानता है कि मौजूदा युवराज और ‘आगामी प्रधानमंत्री’ मिशन उत्तर प्रदेश-२०१२ पर हैं और टप्पल(अलीगढ) में भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों पर फायरिंग के बाद किसान आक्रोश को भुनाने में वे अजीत सिंह या बहन जी से पीछे कैसे रह सकते थे? इसलिए आनन-फानन में उनके नेतृत्व में एक कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिलने पहुंच गया और पहले से तैयार बैठे प्रधानमंत्री से १८९४ के भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन विधेयक लाने का आश्वासन भी ले आया.

कहने की जरूरत नहीं है कि काफी देर और बड़ी संख्या में किसानों की जमीनें छिनने और उनका खून बहने के बाद युवराज की नींद खुली है. लेकिन एक मिनट के लिए इसे भूल जाएं और युवराज की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को परे रख दें तो भी यह सवाल उठता है कि मौजूदा भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन को लेकर उनकी और कांग्रेस की राय क्या है? आखिर वे कैसा भूमि अधिग्रहण कानून चाहते हैं? इसका खुलासा होना बाकी है.

हालांकि युवराज के उत्तर प्रदेश मिशन के प्रमुख सिपहसालार और रणनीतिकार दिग्विजय सिंह ने यह संकेत जरूर दिया है कि वे हरियाणा माडल का कानून चाहते हैं. लेकिन उन्होंने हरियाणा माडल को कुछ इस तरह से पेश किया गोया वहां किसानों से भूमि अधिग्रहण के मामले में पूरा रामराज्य हो और वहां किसानों को ‘दैहिक-भौतिक तप, रामराज्य काहू नाहिं व्यापा’ वाली स्थिति है.

जबकि इस कांग्रेसी रामराज्य की हकीकत सबको पता है. असल में, लोहे का स्वाद लुहार से नहीं बल्कि घोड़े से पूछा जाना चाहिए जिसके मुहं में लगाम होती है. हैरानी की बात नहीं कि तमाम प्रलोभनों के बावजूद हरियाणा के किसान भी मनमाने भूमि अधिग्रहण से खुश नहीं हैं और रिलायंस सेज के खिलाफ उनका आंदोलन अभी थमा नहीं है.

सच यह है कि हरियाणा में भूमि अधिग्रहण कानून और नियम बुनियादी रूप से किसी भी मायने में मूल कानून से अलग नहीं हैं, सिवाय इसके कि किसानों को लुभाने के लिए हुड्डा सरकार ने मुआवजे की रकम बढ़ा दी है और उन्हें ३३ वर्षों के लिए प्रति वर्ष १५ हजार रूपये प्रति एकड़ की दर से अतिरिक्त भुगतान किया है जिसमें हर साल ५०० रूपये की वृद्धि भी होगी.

लेकिन अंग्रेजों के बनाये भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर मुद्दा सिर्फ मुआवजे की रकम भर का नहीं है. बुनियादी सवाल उससे कहीं अधिक बड़े और गंभीर हैं. सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि किसानों से कृषि भूमि क्यों और किसके लिए ली जाए? भूमि अधिग्रहण कानून में केंद्र और राज्य सरकारों को जिस तरह से ‘लोक उद्देश्य’ के नाम पर मनमाने तरीके से जमीन अधिग्रहण का अधिकार मिला हुआ है, उसका औचित्य क्या है?

खासकर पिछले एक दशक में जिस तरह से केन्द्र और सभी रंगों की राज्य सरकारों के नेतृत्व में ‘लोक उद्देश्य’ के नाम पर मनमाने तरीके से निजी कारपोरेट क्षेत्र के लिए द्वि और बहु फसली कृषि भूमि की लूट मची हुई है, वह हर तरह से ‘ऐतिहासिक’ है. देशी-विदेशी कंपनियों में होड़ सी मची हुई है कि सरकारों की सरपरस्ती में कौन कितनी जमीन लूट सकता है और कितना बड़ा ‘लैंड बैंक’ बना सकता है?

इसका ठीक-ठीक अनुमान लगाना मुश्किल है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देशी-विदेशी कंपनियों ने भविष्य में जमीन की अनुपलब्धता और ऊँची कीमतों के रणनीतिक महत्व को समझते हुए देश भर में गरीब और मंझोले किसानों से आने-पौने दामों पर लाखों एकड़ जमीन खरीद कर लैंड बैंक बनाना शुरू कर दिया है, वह अपने आप में एक बहुत बड़ा स्कैंडल है.

माफ़ कीजिये ये ‘विकास’ के लिए नहीं हो रहा है बल्कि सीधे-सीधे विनाश को आमंत्रण है. ज्यादातर मामलों में कृषि भूमि की यह लूट अमीरों और उच्च मध्यवर्ग के लिए विशाल गोल्फ कोर्स से सजी आरामदेह कालोनियों, बंगलों और फ्लैट्स, शापिंग माल्स आदि के लिए कब्जाई जा रही है. इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर बड़े-बड़े एयरपोर्ट, चार-छह लेन के हाइवे, सुपर थर्मल पावर स्टेशन आदि को बढ़ावा दिया जा रहा है. यही नहीं, जहां कारखानों आदि के लिए भी जमीन ली गई है, वहां भी वास्तविक जरूरत से काफी ज्यादा जमीन हडपी गई है.

ऐसा लगता है जैसे यह मान लिया गया है कि देश में न सिर्फ असीमित जमीन है बल्कि जमीन फैक्टरियों में पैदा की जा सकती है. साथ ही यह भी कि जमीन का सबसे बेहतर इस्तेमाल खेती के लिए नहीं बल्कि ‘विकास’ के लिए हो सकता है. गोया अब अनाज अमीरों के किचन गार्डन में पैदा होगा या फिर अफ्रीका में जमीन खरीदकर. जाहिर है कि जमीन की यह अंधाधुंध लूट कृषि और खाद्यान्न उत्पादन की कीमत पर हो रही है.

इसलिए मुद्दा सिर्फ किसानों की सहमति, उनकी भागीदारी और उन्हें अधिक से अधिक मुआवजा देने भर का नहीं है बल्कि सीमित जमीन के सबसे जरूरी और बेहतर इस्तेमाल का है. इस कारण हरियाणा माडल मौजूदा समस्या का वास्तविक समाधान नहीं है. आखिर किसानों को हरियाणा में अगर बाजार दर पर और भारी मुआवजा मिल जाने का नतीजा क्या हो रहा है?

हरियाणा में देश की सबसे उपजाऊ जमीन के गैर कृषि कार्य में जाने का खामियाजा खादयान्न उत्पादन में नुकसान के रूप में उठाना पड़ेगा. दूसरी ओर, भारी मुआवजा लेकर हरियाणा के किसान देश के दूसरे हिस्सों में खासकर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में स्थानीय किसानों की जमीन खरीद रहे हैं. इस तरह हरियाणा से विस्थापित किसान दूसरे राज्यों में किसानों को विस्थापित कर रहा है. इससे देश के अंदर ‘विकास’ के नाम पर एक ऐसा असंतुलन पैदा हो रहा है जो भविष्य में नए तनावों और टकरावों को जन्म दे सकता है.

इसी तरह, कृषि योग्य भूमि के लगातार कम होते जाने और कम भूमि से ही अधिक उत्पादन के लिए उसका मशीनीकरण/कारपोरेटीकरण बढ़ेगा तो कृषि क्षेत्र से करोड़ों गरीब और छोटे किसान और भूमिहीन खेतिहर मजदूर बेरोजगार होंगें. सवाल है कि ‘विकास’ के नए माडल में उनके लिए रोजगार कहां है? आखिर किसान खेती नहीं करेंगे तो क्या करेंगे?

सवाल यह भी है कि देश के लिए ज्यादा जरूरी क्या है: रियल इस्टेट, एयरपोर्ट, हाइवे, शापिंग माल्स और गोल्फ कोर्स या खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता? सभी लोगों को रोजी-रोजगार या मुट्ठी भर लोगों के लिए ‘वर्ल्ड क्लास फैसिलिटीज’? इसलिए मामला भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव का नहीं बल्कि भूमि सुरक्षा कानून बनाने का है. युवराज को अपनी प्राथमिकताएं बतानी होंगी.
(राष्ट्रीय सहारा, हस्तक्षेप, ४ सितम्बर'१०)

5 टिप्‍पणियां:

Praveen ने कहा…

यूपी के रायबरेली में रेल कोच फैक्ट्री के लिए 10 गावों की सारी ज़मीन ले ली गयी. कुछ दिन पहले रेल राज्यमंत्री मुनियप्पा वहा पहुंचे तो किसानों ने ज्यादा मुआवजा माँगा. मुनियप्पा बोले, राज्य सरकार ने 2.60 लाख रुपये प्रति बीघा माँगा था. वो दे दिया. अब बाकी राज्य सरकार से मांगो. कहने का मतलब ये है की 10 गावों का अस्तित्वा खतम और फैक्ट्री की ज़मीन की ज़रूरत पूरी नहीं हुई है. जो ज़मीन ली गयी वो साल में तीन फसलें देती थी लेकिन अब वीरान पड़ी है. ऐसा है भारत निर्माण.

Bibhav ने कहा…

प्रवीण भाई अगर आपके पास रायबरेली के इन १० गाँव में कोई संपर्क सूत्र है तो मुझे बताइए में जाना चाहता हूँ वहां मेरा नंबर है 9868219486

Praveen ने कहा…

बिभव सर, आपके मोबाइल पर रायबरेली के एक पत्रकार का नंबर मेसेज किया है. आप उससे बात कर लें. वो आपको हर तरह की मदद देंगे.

Nityanand Gayen ने कहा…

achha hai aapka blog.

Nityanand Gayen ने कहा…

sundar blog