मंगलवार, अक्तूबर 23, 2012

'चिल्लर' आरोपों से घिरते गडकरी

क्या यह सिर्फ संयोग है कि आर.एस.एस को भाजपा को ठीक करने के लिए ‘सामाजिक उद्यमी’ नितिन गडकरी मिले?
खुद को ‘सामाजिक उद्यमी’ बतानेवाले भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. आज के ‘टाइम्स आफ इंडिया’ में उनके ‘सामाजिक उपक्रम’ पूर्ति पावर एंड सुगर लिमिटेड के बारे में कई नए खुलासे सामने आए हैं http://timesofindia.indiatimes.com/india/Questions-swirl-around-source-of-funding-of-Gadkaris-firm/articleshow/16920160.cms  इससे पहले अरविंद केजरीवाल ने भी गडकरी पर विदर्भ में किसानों की जमीन हथियाने और कृषि सिंचाई के लिए बने बाँध से अपनी चीनी मिल और बिजलीघर के लिए पानी लेने जैसे आरोप लगाये थे.

इन आरोपों पर गडकरी का जवाब है कि वे पूर्ति कम्पनी के मुखिया का पद १४ महीने पहले छोड़ चुके हैं. उनकी कम्पनी के अधिकारियों की सफाई यह है कि कहीं कोई गडबडी नहीं है और सब कुछ कानूनी तौर पर सही और पारदर्शी है.
उनका दावा है कि पूर्ति कंपनी में ठेकेदारों और बिल्डरों के निवेश में क्या गलत है? यह और बात है कि इनमें से कई ठेकेदार श्री गडकरी के महाराष्ट्र के लोक-निर्माण मंत्री रहते हुए सरकारी ठेके हासिल कर चुके हैं.
गडकरी की यह सफाई अपेक्षित थी. आखिर वे अरविंद केजरीवाल के खुलासे और आरोपों को ‘चिल्लर’ आरोप बता चुके हैं. यह भी कि महाराष्ट्र की सिंचाई परियोजनाओं में भ्रष्टाचार/घोटालों के बावजूद ठेकेदारों को जल्दी से जल्दी भुगतान के लिए चिट्ठी लिखने को सही ठहरा चुके हैं और कह चुके हैं कि वे ऐसी दस चिट्ठियां और लिखेंगे. ऐसे में, अगर उनके सामाजिक उपक्रम में ठेकेदार भाइयों ने निवेश कर दिया तो उसमें कोई लेन-देन (क्वीड प्रो क्यो) देखने की जरूरत नहीं है!
भूलिए मत ये उसी ‘पार्टी विथ डिफ़रेंस’ के अध्यक्ष हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अपने मुख्यमंत्री येदियुरप्पा का यह कहते हुए बचाव किया था कि उनके फैसले अनैतिक हो सकते हैं लेकिन गैरकानूनी नहीं हैं.
यही नहीं, गडकरी का बचाव करते हुए भाजपा नेता अरूण जेटली ने एक मासूम सा तर्क दिया कि राजनीति करनेवालों को भी अपना घर चलाना पड़ता है और इसके लिए कोई बिजनेस करे तो इसमें बुराई क्या है? यह रहा उनके इंटरव्यू का लिंक: http://www.ndtv.com/article/india/politicians-too-need-to-earn-a-living-arun-jaitley-to-ndtv-281714
लेकिन जेटली जी भूल गए कि गडकरी का दावा है कि वे अपने लिए बिजनेस नहीं करते हैं बल्कि वे ‘सामाजिक उद्यमी’ हैं और उन्होंने चीनी मिल से लेकर बिजलीघर तक सब विदर्भ के किसानों की भलाई के लिए लगाया है. अब अगर इस सामाजिक प्रकल्प में कोई ठेकेदार/बिल्डर भी योगदान करना चाहे तो वे उसे इस पुण्यकार्य से कैसे रोक सकते हैं?  

याद रहे गडकरी किसी और की नहीं बल्कि भगवा ब्रिगेड में नैतिक सत्ता के प्रतीक होने का दावा करनेवाले आर.एस.एस की पसंद हैं. कई भगवा समर्थक यह तर्क देते दिख जाते हैं कि भाजपा तो भ्रष्टाचार/घोटालों की कांग्रेसी संस्कृति में डूब गई है लेकिन आर.एस.एस दाग-विहीन शुद्ध-धवल और नैतिकता के सर्वोच्च सिंहासन पर बैठा हुआ है.
लेकिन क्या यह सिर्फ संयोग है कि उसी आर.एस.एस को भाजपा को ठीक करने के लिए ‘सामाजिक उद्यमी’ नितिन गडकरी मिले. यही नहीं, संघ के आशीर्वाद से उन्हें भाजपा का संविधान बदलकर दूसरा कार्यकाल भी मिल रहा है. साफ़ है कि यहाँ तो ‘सगरे कूप में भांग पड़ी है’ और गडकरी उसके एक प्रतीक भर हैं.   

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