सोमवार, अक्तूबर 22, 2012

क्या दिग्विजय सिंह राजनीतिक ब्लैकमेल नहीं कर रहे हैं?

‘ओमेर्ता कोड’ टूटने से राजनीतिक वर्ग की बिलबिलाहट बढ़ गई है  

कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की उलटबांसियां का जवाब नहीं है. वे कई बार ऊपर से देखने में बहुत बेतुकी दिखती हैं लेकिन उनके निहितार्थ बहुत खतरनाक स्थापनाओं तक पहुँच जाते हैं. वे पिछले कई दिनों से कह रहे हैं कि उनके पास भाजपा नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई और पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के परिवारजनों- पुत्र-पुत्रियों और दामाद के खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूत हैं लेकिन वे उन्हें उजागर नहीं करेंगे.
सी.एन.एन-आई.बी.एन पर एंकर करण थापर से बातचीत में उन्होंने दावा किया कि उनके पास बहुत दिनों से सबूत हैं लेकिन उन्होंने इसलिए उन्हें उजागर नहीं किया क्योंकि कांग्रेस की यह परंपरा नहीं है कि वह राजनेताओं के परिवारजनों के क्रियाकलापों के बारे में सवाल उठाये. यह रहा उस बातचीत का लिंक: http://ibnlive.in.com/news/have-evidence-of-corruption-against-vajpayee-advani-but-wont-make-it-public-digvijaya/301459-37-64.html

इसके लिए दिग्विजय सिंह का तर्क बहुत सीधा सा है. उनकी ‘राजनीतिक सुभाषितानि’ के मुताबिक, राजनेताओं के परिवारजन क्या करते हैं, उससे नेताओं का क्या लेना-देना? कांग्रेस महासचिव की राय में यही ‘राजनीतिक मर्यादा’ है और कांग्रेस ने हमेशा इसका पालन किया है.
उनकी पीड़ा यह है कि अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के बारे में खुलासे करके भारतीय राजनीति के इस ‘ओमेर्ता कोड’ (http://en.wikipedia.org/wiki/Omert%C3%A0) को तो तोड़ ही दिया, भाजपा भी अरविंद केजरीवाल के सुर में सुर मिलाने की कोशिश क्यों कर रही है?
वैसे तथ्य यह है कि केजरीवाल के खुलासे के बाद मुख्य विपक्षी दल होने के बावजूद भाजपा के बड़े नेताओं लाल कृष्ण आडवानी, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने इस मुद्दे पर चुप्पी ओढ़ रखी है. हालाँकि भाजपा पर जबरदस्त दबाव था कि वह राबर्ट वाड्रा मुद्दे पर खुलकर सामने आए या इस मुद्दे को लपक ले.
लेकिन भाजपा ने अपने तईं ‘ओमेर्ता कोड’ का पालन करने की पूरी कोशिश की है. इसके बावजूद दिग्विजय सिंह ने यह बयान देकर एक तरह से भाजपा नेताओं को चेताने की कोशिश की है कि अगर वे चुप नहीं रहे तो कांग्रेस भी वाजपेयी और आडवानी के बेटियों-दामादों के भ्रष्टाचार के मामले उजागर कर सकती है.

क्या यह परोक्ष भयादोहन (ब्लैकमेल) नहीं है? क्या यह भ्रष्टाचार के बारे में सबूत होते हुए भी उसे दबाने की कोशिश का मामला नहीं बनता है? अगर दिग्विजय सिंह के पास वाजपेयी और आडवानी की बेटियों-दामाद के भ्रष्टाचार के सबूत हैं तो वे उसे सार्वजनिक क्यों नहीं करते हैं? खासकर इस सार्वजनिक घोषणा के बाद कि उनके पास सबूत हैं, वे उसे छुपा कैसे सकते हैं? क्या उसकी जांच नहीं होनी चाहिए?
गौरतलब है कि वाजपेयी के दामाद रंजन भट्टाचार्य और आडवाणी की बेटी प्रतिभा आडवाणी कोई मामूली रिश्तेदार भर नहीं हैं. भट्टाचार्य पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के साथ ७, रेस कोर्स में रहते थे जबकि प्रतिभा आडवानी भी अपने पिता की छाया की तरह रही हैं. अगर उनके बारे में दिग्विजय सिंह के पास सबूत हैं तो उन्हें ‘सार्वजनिक हित’ में सामने लाया जाना चाहिए.   

इस बयान से इस सच्चाई की पुष्टि होती है कि भ्रष्टाचार को लेकर मुख्य सत्ताधारी दलों में एक आम सहमति से बन गई है. वह यह कि आमतौर पर दोनों एक-दूसरे के भ्रष्टाचार के खिलाफ तब तक नहीं बोलेंगे, जब तक कि उसका भंडाफोड न हो जाए. इसके लिए वे एक-दूसरे के भ्रष्टाचार और घोटालों का भंडाफोड नहीं करेंगे और जहाँ तक संभव होगा, वे उसे दबाने की कोशिश भी करेंगे.
इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि हर बड़े घोटाले की मलाई में सरकार और विपक्ष सबकी हिस्सेदारी है. चाहे वह २-जी घोटाले हो कामनवेल्थ या कोयला आवंटन का मामला हो या महाराष्ट्र के सिंचाई घोटाला- हर मामले में भ्रष्टाचार के छींटे कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा नेताओं पर भी पड़े हैं.

आश्चर्य नहीं कि महाराष्ट्र के सिंचाई घोटाले के खुलासे में भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी से मदद मांगने पहुंची आर.टी.आई कार्यकर्ता अंजलि दमानिया से गडकरी ने साफ़ कहा कि वे कोई मदद नहीं कर सकते क्योंकि उनके चार काम शरद पवार करते हैं और उनके चार काम वे करते हैं.

यही नहीं, पिछले कुछ सप्ताहों में कांग्रेस और भाजपा से लेकर राजद और सपा आदि ने अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम के खुलासों की खिल्ली उड़ाने से लेकर उनपर हमले तेज कर दिए हैं, उससे उनकी बिलबिलाहट साफ़ दिखने लगी है. दिग्विजय सिंह की उलटबांसी में भी वह बिलबिलाहट महसूस की जा सकती है.  

कोई टिप्पणी नहीं: