शनिवार, अप्रैल 28, 2012

निर्मल बाबा और चैनलों की बंद आँख

निर्मल बाबा मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के नए ‘एगोनी आंट’ या ‘संकटमोचक’ हैं

कहते हैं कि भक्ति में बहुत शक्ति है. लेकिन भक्ति से ज्यादा शक्ति बाबाओं/बापूओं/स्वामियों में है. विश्वास न हो तो चैनलों को देखिये, जहाँ भक्ति से ज्यादा बाबा/बापू/स्वामी छाए हुए हैं. यह ठीक है कि चैनलों पर बाबाओं/बापूओं/स्वामियों की मौजूदगी कोई नई बात नहीं है. आधा दर्जन से अधिक धार्मिक चैनलों पर चौबीसों घंटे इन बाबाओं/बापूओं/स्वामियों का अहर्निश प्रवचन और उससे अधिक उनकी लीलाएं चलती रहती हैं.
लेकिन इन बाबाओं का साम्राज्य सिर्फ धार्मिक चैनलों तक सीमित नहीं है. मनोरंजन चैनलों से लेकर न्यूज चैनलों तक पर भी सुबह की कल्पना उनके बिना संभव नहीं है. इन बाबाओं/बापूओं/स्वामियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि धर्म और ईश्वर भक्ति से उनका बहुत कम लेना-देना है. वे भक्तों को ईश्वर भक्ति की सही राह दिखाने से ज्यादा उनकी समस्याओं के हल बताने में दिलचस्पी लेते हैं. वे लाइलाज बीमारियों की दवाइयां बेचते/बांटते हैं.
यही नहीं, उनमें से कई जीवन-जगत की सभी समस्याओं को अपने पेड शिविरों में योग और ध्यान लगाकर दूर करने से लेकर शनिवार को काली बिल्ली को पीला दूध और काले तिल के सफ़ेद लड्डू जैसे टोटकों से विघ्नों/कठिनाइयों को साधने के रास्ते सुझाते दिखते हैं. ये नए जमाने के बाबा हैं जिन्हें चैनलों ने बनाया और चढ़ाया है और जो अब चैनलों को बना/चढ़ा रहे हैं.
इन्हीं में से एक निर्मल बाबा आजकल सुर्ख़ियों में हैं. कुछ अपवादों को छोडकर हिंदी के अधिकांश न्यूज चैनलों पर वे छाए हुए हैं. हिंदी न्यूज चैनलों पर उनका प्रायोजित कार्यक्रम “थर्ड आई आफ निर्मल बाबा” यानी निर्मल बाबा की तीसरी आँख इन दिनों सबसे हिट कार्यक्रमों में से है.
रिपोर्टों के मुताबिक, यह कार्यक्रम हिंदी न्यूज चैनलों के टाप ५० कार्यक्रमों की सूची में ऊपर से लेकर नीचे तक छाया हुआ है. कहने की जरूरत नहीं है कि उनके कार्यक्रम की ऊँची टी.आर.पी और कार्यक्रम दिखाने के लिए बाबा से मिलने वाले मोटे पैसों के कारण इन दिनों चैनलों में निर्मल बाबा की तीसरी आँख दिखाने की होड़ सी लगी हुई है.
लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि देश को निर्मल बाबा और उनकी तीसरी आँख देने का बड़ा श्रेय चैनलों को जाता है. हालाँकि चैनलों ने देश को पहले भी कई बाबा/बापू/स्वामी दिए हैं लेकिन निर्मल बाबा शायद पहले ऐसे बाबा हैं जिनका पूरा कारोबार चैनलों के आशीर्वाद से खड़ा और फल-फूला है.
उनसे पहले इंडिया टी.वी और कुछ और चैनलों के सहयोग से दाती महाराज (मदन लाल राजस्थानी) उर्फ शनिचर बाबा ने खासी लोकप्रियता (और दान-दक्षिणा) बटोरा था. वैसे चैनलों की मदद से कारोबार चमकाने वाले बाबाओं/स्वामियों में स्वामी रामदेव का कोई जवाब नहीं है और उनकी सफलता ने बहुतेरे बाबाओं/बापूओं/स्वामियों को चैनलों की ओर आकर्षित किया.
इसके बावजूद मानना होगा कि रामदेव कम से कम योग/कसरत पर मेहनत करते हैं. लेकिन निर्मल बाबा को अपना शरीर भी बहुत हिलाना-डुलाना नहीं पड़ता है. वे हर मायने में ‘अद्दभुत’ और अनोखे हैं. वे मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के नए ‘एगोनी आंट’ या ‘संकटमोचक’ हैं जिसके पास शादी न होने से लेकर नौकरी न मिलने और कारोबार न चलने से लेकर पति के दूसरी महिला के चक्कर में फंसने जैसे आम मध्यमवर्गीय समस्याओं/उलझनों का बहुत आसान और शर्तिया इलाज है.
यह इलाज बटन धीरे-धीरे खोलने से लेकर दायें के बजाय बाएं हाथ से पानी पीने और दस के बजाय बीस रूपये का भोग चढाने तक कुछ भी हो सकता है. हंसिए मत, यही निर्मल बाबा की सफलता का राज है. असल में, निर्मल बाबा के इलाज बहुत आसान, सस्ते और दिलचस्प हैं. इन टोटकों पर अमल करने में किसी एब या आदत को छोड़ना नहीं पड़ता, बहुत समय और उर्जा नहीं खर्च करनी पड़ती और समस्या के हल होने की ‘उम्मीद’ बनी रहती है.
ये नए किस्म के अन्धविश्वास हैं. बाबा चैनलों की ‘साख’ का सहारा लेकर उन्हें आसानी से भक्तों के गले में उतार देते हैं. नतीजा, बाबा के निर्मल दरबार में “भक्तों की भीड़” लगी हुई है. चैनलों पर इस भीड़ और बाबा की जय-जयकार सुनकर मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के सैकड़ों और दुखियारे बाबा के दरबार में पहुँच रहे हैं.
रिपोर्टों के मुताबिक, बाबा के इन शंका समाधान शिविरों में प्रवेश के लिए दो हजार रूपये देने पड़ते हैं. कहते हैं कि इन शिविरों से बाबा करोड़पति हो गए हैं. हालाँकि पैसा देकर आनेवाले इन दुखियारों में से बहुत कम को ही सवाल पूछने का मौका मिल पाता है क्योंकि आरोप हैं कि ज्यादातर सवाल पूछनेवाले बाबा के ही चेले और यहाँ तक कि मासिक तनख्वाह पर काम करनेवाले टी.वी के जूनियर आर्टिस्ट होते हैं.
बाबा की दूकान सजाने में इनकी बहुत बड़ी भूमिका है. चैनल देखने वाले लोगों को लगता है कि उनकी तरह के ही लोगों की, उन जैसी ही समस्याओं को बाबा किस तरह चुटकी बजाते हल किये दे रहे हैं. इस तरह बाबा का कारोबार फैलता जा रहा है. वह एक चैनल से शुरू होकर अनेक चैनलों पर पहुँच चुका है. लेकिन ऐसा लगता है कि चैनलों ने बाबा की तीसरी आँख के चक्कर में अपनी आँखें बंद कर ली हैं.
उन्हें बाबा की दिन-दहाड़े की ठगी नहीं दिख रही है. उन्हें यह नहीं दिख रहा है कि बाबा अपने भक्तों को किस तरह खुलेआम बेवकूफ बना रहे हैं. अंधविश्वासों को मजबूत कर रहे हैं. लोगों की समस्याओं और भावनाओं से खेल रहे हैं. यह ठीक है कि निर्मल बाबा का यह कार्यक्रम प्रायोजित या एक तरह का विज्ञापन कार्यक्रम है. लेकिन क्या प्रायोजित कार्यक्रमों की कोई आचार संहिता नहीं होती है?
क्या इसपर कार्यक्रम या विज्ञापन कोड लागू नहीं होता है जो साफ तौर पर अंधविश्वास, जादू और टोटकों के प्रचार या महिमामंडन को प्रतिबंधित करता है? क्या यह ड्रग एंड मैजिकल रिमेडीज (आब्जेक्शनल एडवर्टीजमेंट) कानून के उल्लंघन का मामला नहीं है? आखिर बाबा मैजिकल रिमेडीज नहीं तो और क्या बेचते हैं?

आखिर चैनलों की आँख सरकार के डंडे के बिना क्यों नहीं खुलती है? सबसे अफसोस की बात यह है कि यह कार्यक्रम देश के कुछ प्रतिष्ठित न्यूज चैनलों पर चल रहा है जो स्व-नियमन के सबसे अधिक दावे करते हैं. अच्छी बात यह है कि एक बार फिर सोशल और न्यू मीडिया में इस मुद्दे पर चैनलों की खूब थू-थू हो रही है. देखें, चैनलों के ‘ज्ञान चक्षु’ कब खुलते हैं?

टिप्पणी : "तहलका" के लिए यह आलेख ११-१२ अप्रैल को लिखा गया जो उनके ३० अप्रैल के अंक में छपा है..उस समय न्यूज एक्सप्रेस और न्यू मीडिया की वेबसाईट और सोशल मीडिया को छोड़कर सारे चैनल निर्मल बाबा पर चुप्पी साधे हुए थे..लेकिन इस बीच, स्टार और आजतक समेत कई और चैनलों ने बाबा की पोल खोलनी शुरू कर दी है..लेकिन इस आलेख में उठाये गए कई सवाल मौजूं बने हुए है...आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा.    

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