बुधवार, अक्तूबर 05, 2011

मोदी पर मोहित चैनल


चैनल जाने-अनजाने इवेंट मैनेजमेंट उद्योग के हिस्सा बनते जा रहे हैं



न्यूज चैनलों की कई कमजोरियों में से एक बड़ी कमजोरी यह है कि उन्हें पूर्वनियोजित घटनाएँ यानी इवेंट बहुत आकर्षित करते हैं. खासकर अगर उस इवेंट से कोई बड़ी शख्सियत जुड़ी हो, उसमें ड्रामा और रंग हो, कुछ विवाद और टकराव हो और उसमें चैनलों के लिए ‘खेलने और तानने’ की गुंजाइश हो तो चैनल उसे हाथों-हाथ लेते हैं.

चैनलों की इस कमजोरी की कई वजहें हैं. पहली बात तो यह है कि दृश्य-श्रव्य मध्यम होने के नाते विजुअल उनकी सबसे बड़ी कमजोरी हैं. वे हमेशा विजुअल की खोज में रहते हैं. इवेंट्स में उन्हें बहुत आसानी से विजुअल मिल जाते हैं. उन्हें इसके लिए अपने दिमाग पर बहुत जोर नहीं लगाना पड़ता है क्योंकि इवेंट्स में उन्हें सब कुछ बना-बनाया मिल जाता है.

दूसरे, इवेंट्स को कवर करने के लिए उन्हें कोई खास खर्च नहीं करना पड़ता है. यही नहीं, ऐसे इवेंट्स कई बार प्रायोजित भी होते हैं जिन्हें कवर करने के बदले चैनलों को मोटी रकम मिलती है. तीसरे, इवेंट्स के लाइव कवरेज और उसपर स्टूडियो चर्चाओं में चैनलों को अपनी ओर से भी ड्रामा, विवाद और सस्पेंस रचने का मौका मिल जाता है. इससे उन्हें अधिक से अधिक दर्शक खींचने में भी मदद मिलती है.

चैनलों की इस कमजोरी से राजनेता से लेकर कारपोरेट जगत तक और अभिनेता-खिलाड़ी से लेकर धर्म गुरुओं तक सभी वाकिफ हैं. वे इसका खूब इस्तेमाल भी करते हैं. वे मीडिया खासकर न्यूज चैनलों में प्रचार पाने और सुर्ख़ियों में बने रहने के लिए जमकर मीडिया इवेंट आयोजित करते हैं. आखिर उनका काफी हद तक धंधा सुर्ख़ियों में बने रहने से टिका है.

आश्चर्य नहीं कि न्यूज मीडिया खासकर चैनलों की इस कमजोरी को भुनाने और अपने क्लाइंट्स को अधिक से अधिक प्रचार देने और सुर्ख़ियों में बनाए रखने के लिए इवेंट मैनजमेंट का एक विशाल उद्योग खड़ा हो गया है. इसके अलावा पी.आर एजेंसियां इस धंधे में पहले से हैं.

इवेंट्स या पी.आर मैनेजरों का एक बड़ा काम यह है कि वे अपने क्लाइंट्स (राजनेताओं, कारपोरेट प्रमुखों, अभिनेताओं, खिलाडियों आदि) के लिए ऐसे इवेंट्स आयोजित करें जो न सिर्फ मीडिया को ललचाए बल्कि उनके क्लाइंट और उसके सन्देश को सकारात्मक कवरेज दिलवाने में मदद करे.

कई ‘मीडिया सुजान’ नेताओं की तरह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी मीडिया खासकर चैनलों की इस कमजोरी को अच्छी तरह जानते हैं. वे यह भी जानते हैं कि सुर्खियाँ कैसे बनाई जाती हैं और सुर्ख़ियों में कैसे रहा जाता है? इसलिए जब उन्हें लगा कि मौजूदा राजनीतिक उथलपुथल के बीच २०१४ के आम चुनावों के मद्देनजर अब राष्ट्रीय राजनीति और खासकर भाजपा के अंदर प्रधानमंत्री पद के लिए दावा ठोंकने का समय आ गया है तो उन्होंने एक मीडिया इवेंट आयोजित करने में देर नहीं लगाई. मोदी और उनकी टीम को इस राजनीतिक मीडिया इवेंट का स्वरुप तय करने में ज्यादा दिमाग नहीं खर्च करना पड़ा. अन्ना हजारे और उनके अनशन इवेंट की शानदार सफलता उनके सामने थी.

आश्चर्य नहीं कि बगैर देर किये मोदी ने गुजरात में सद्भावना के लिए तीन दिनों का अनशन करने का एलान कर दिया. मोदी के तीन दिनों के अनशन के लिए गुजरात विश्वविद्यालय के विशाल एयरकंडीशन हाल में मंच सजाया गया, उसे सद्भावना मिशन का नाम दिया गया, लोग खासकर टोपियां पहने मुसलमान इक्कट्ठा किये गए, भाजपा और एन.डी.ए के बड़े नेताओं को बुलाया गया और करोड़ों रूपये खर्च करके देश भर के अखबारों में विज्ञापन दिया गया. न्यूज चैनलों के लाइव कवरेज के लिए विशेष इंतजाम किये गए, रिपोर्टरों और खासकर दिल्ली से बुलाए स्टार रिपोर्टरों/एंकरों की पूरी आवभगत की गई.

उसके बाद क्या हुआ, वह इतिहास है. कल तक अन्ना हजारे की सेवा में लगा ‘डिब्बा’ मोदी सेवा में भी पीछे नहीं रहा. तीन दिनों तक मोदी चैनलों के परदे पर छाए रहे और हर दिन उनकी छवि और बड़ी होती गई. मोदी के अलावा दूसरे भाजपा और एन.डी.ए नेताओं के भाषण लाइव दिखाए गए जिसमें मोदी के गुणगान और उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में आने और बड़ी भूमिका निभाने की अपीलें की गईं. चैनलों ने थोक के भाव में मोदी के ‘एक्सक्लूसिव’ इंटरव्यू दिखाए. प्राइम टाइम चर्चाओं में मोदी बनाम राहुल गाँधी से लेकर मोदी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता पर घंटों चर्चा हुई. मोदी को बिना किसी गहरी जांच-पड़ताल के विकास पुरुष और सुशासन के प्रतीक के रूप में पेश किया गया.

हालांकि इन रिपोर्टों, साक्षात्कारों और चर्चाओं में गुजरात के २००२ के दंगों और उसमें मोदी की भूमिका की भी खूब चर्चा हुई और सवाल भी पूछे गए लेकिन कुल-मिलाकर उसे एक ‘विचलन’ (एबेरेशन) की तरह पेश करने की कोशिश की गई. २००२ को १९८४ के सिख नरसंहार और अन्य दंगों के बराबर ठहराने के प्रयास हुए.

यही नहीं, २००२ को भूलने और आगे देखने की सलाहें दी गई. इसके लिए गुजरात के कथित विकास का मिथ गढा जा रहा है. बहुत सफाई और बारीकी से कहा जा रहा है कि मोदी ने गुजरात में विकास की गंगा बहा दी है. राज्य बहुत तेजी से तरक्की कर रहा है. राज्य में सुशासन है.

साफ है कि यह मोदी ब्रांड की नई मार्केटिंग रणनीति है जिसमें मोदी पर लगे दागों को ‘विकास की चमक’ में छुपाने की कोशिश की जा रही है. यही नहीं, चैनलों में मोदी भक्तों की कभी कमी नहीं रही है लेकिन अब वे खुलकर सामने आने लगे हैं.

‘आपको आगे रखनेवाले’ चैनल के एक ऐसे ही स्टार एंकर/रिपोर्टर तो मोदी से इतने प्रभावित दिखे कि एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में अपनी पक्षधरता छुपाये बिना नहीं रह सके. सवाल पूछते हुए कहा कि ‘मैं निजी तौर पर मानता हूँ कि देश की जनता आपको प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहती है.’ क्या बात है? इस महान रिपोर्टर को यह इलहाम कहाँ से हुआ? क्या आजकल उनका जनता जनार्दन से कोई दैवीय संवाद हो रहा है?

सचमुच, चैनलों की महिमा अपरम्पार है! मानना पड़ेगा कि मोदी मोह में उन्होंने सच की ओर से आँखें बंद कर ली हैं.

 
('तहलका' के १५ अक्तूबर के अंक में प्रकाशित स्तम्भ: आप अपनी प्रतिक्रियाएं उसकी वेबसाईट पर भी जाकर दे सकते हैं: http://www.tehelkahindi.com/stambh/diggajdeergha/forum/982.html )

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