सोमवार, अगस्त 22, 2011

शंका करना आज का युगधर्म है लेकिन शंकावाद से बचिए...

आर.एस.एस-भाजपा का डर कौन दिखा रहा है और क्यों?


आज फेसबुक पर कुछ छोटी-छोटी टिप्पणियां डाली है...किसी भरे-पूरे लेख के बजाय आज यही आपसे साझा कर रहा हूँ:


‘वे डरते हैं

किस चीज से डरते हैं वे

तमाम धन दौलत

गोला,बारूद,पुलिस,फौज के बावजूद ?


वे डरते हैं

कि एक दिन

निहत्थे और गरीब लोग

उनसे डरना बंद कर देंगे’

-गोरख पाण्डेय

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शंका करना युगधर्म है लेकिन शंकावाद से बचिए...

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कांग्रेस और बी.जे.पी में कोई फर्क नहीं है..न भ्रष्टाचार में..न नीतियों में..न जनांदोलनों के दमन में..दोनों नव उदारवादी अर्थनीति और कारपोरेट लूट के समर्थक हैं...दोनों जन लोकपाल के विरोधी हैं..यही नहीं, छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम के संस्थापकों और संचालकों में कांग्रेस और भाजपा दोनों हैं..और अब सलवा जुडूम को अवैध ठहराने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिव्यू पेटिशन मनमोहन सिंह सरकार डाल रही है..

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कुछ साथियों को डर है कि इस आंदोलन का फायदा आर.एस.एस-भाजपा न उठा ले जाएं..इस डर से वे कांग्रेस को बर्दाश्त करने के लिए तैयार हैं..उनसे सिर्फ एक सवाल: क्या कांग्रेस खुद अपने कारनामों से उन्हें यह मौका नहीं दे रही है? याद रखिये, आर.एस.एस/भाजपा का कांग्रेस से अच्छा कोई दोस्त नहीं है..लोगों में गुस्सा है और राजनीति में कभी शून्य नहीं होता..अगर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अन्ना हजारे के नेतृत्व में नहीं होता तो इसका नेतृत्व कौन कर रहा होता?

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“इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,

नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।

एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,

इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।

एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,

आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।

एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,

यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।“

-दुष्यंत कुमार

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भारत सचमुच, “मिलियन म्यूटनीज” से गुजर रहा है. देश में जनांदोलनों की बाढ़ सी है. छत्तीसगढ़ से झारखण्ड तक आदिवासी, उत्तर प्रदेश से आंध्र प्रदेश तक में किसान जल-जंगल-जमीन-खनिजों की कारपोरेट लूट के खिलाफ, दलित जमीन-मजदूरी-सामाजिक सम्मान के लिए, पूर्वोत्तर भारत और कश्मीर में बुनियादी मानवाधिकारों, गुडगावां से कोयम्बतूर तक मजदूर अपने हकों और छात्र-नौजवान रोजगार और शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं..अब मध्यवर्ग भी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के जरिये इन छोटी-छोटी ‘लाखों क्रांतियों’ का हिस्सा बन चुका है.

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“ इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात

अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियां “

-दुष्यंत कुमार

नहीं, नहीं...खिडकियां खुलने लगी हैं...संभावनाएं बनने लगी हैं..

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1 टिप्पणी:

स्वर्ण सुमन ने कहा…

सर कल स्टार न्यूज पर 'महाबहस' में आपको अपनी राय प्रस्तुत करते देखा. आप एक अच्छे लेखक तो हैं ही लेकिन इस चर्चा में आपने यह भी साबित कर दिया कि आप एक अच्छे वक्ता भी हैं.