महंगाई की सुरसा के आगे कलयुगी हनुमान का समर्पण
ऐसा लगता है कि महंगाई की सुरसा ने नए रिकॉर्ड बनाने का फैसला कर लिया है. आज थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर 6.68 प्रतिशत की बेचैन करनेवाली ऊंचाई पर पहुंच गई. हालांकि मुद्रास्फीति की ये दर महंगाई की वास्तविक तस्वीर नहीं बताती और हमेशा बदलती रहती है इसलिए सच्चाई से दूर रहती है.
सच ये है कि ग्रामीण मजदूरों और गरीबों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति दर फरवरी में ही 6.5 प्रतिशत से ऊपर पहुंच चुकी थी. इसलिए जो लोग अब चौंककर 6.68 प्रतिशत की दर को हैरत से देख रहे हैं, कहना पड़ेगा कि उनका वास्तविकता से नाता टूट चुका है.
वास्तव में खाद्यान्नों और जरूरी वस्तुओं की महंगाई तो पहले ही कमर तोड़ रही है. सच ही है, "जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई". महंगाई को केवल आंकड़ा समझने वाले लोग कभी भी ये नहीं समझ पाएंगे कि महंगाई की चुभन क्या होती है?
कड़वी सच्चाई यह है कि महंगाई गरीबों पर टैक्स है. कल्पना कीजिए उन गरीबों के बारे में जिनके बारे में नीतीश सेनगुप्ता समिति ने कहा है कि तीन चौथाई आबादी 20 रुपए रोज से भी कम आय पर गुजारा करती है. उसके लिए महंगाई का मतलब एक जून भूखे पेट सोना है. महंगाई को आंकड़ें में देखने वाले उस पीड़ा को कभी नहीं समझ पाएंगे.
यूपीए सरकार का व्यवहार ऐसे ही आंकड़ेंबाजों की तरह है. वो तब तक आराम से सोती रही जब तक कि महंगाई की दर 5.92 तक नहीं पहुंच गई. इसके बाद आनन-फानन में वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कई ऐलान कर दिए. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. महंगाई का जिन्न बोतल से बाहर आ चुका था.
इसके बाद जैसे-जैसे वित्तमंत्री हनुमान की तरह महंगाई को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, महंगाई की सुरसा अपना बदन उससे ज्यादा तेजी से बढ़ाती जा रही है. अभी पिछले सप्ताह मुद्रास्फीति की दर 5.92 प्रतिशत पहुंच गई थी और चुनावी चिंता में डूबे चिदंबरम ने फटाफट महंगाई रोकने के लिए आयात शुल्क में कमी से लेकर कई वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया था. लेकिन महंगाई यूपीए सरकार के आर्थिक प्रबंधकों से काबू से बाहर निकल गई लगती है.
महंगाई इसलिए बढ़ी है क्योंकि यूपीए सरकार ने सब्सिडी खत्म करने के नाम पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली को खत्म करके खाद्यान प्रबंधन को बड़ी कंपनियों के हवाले कर दिया है. इसकी बड़ी वजह खुद सरकार की नीतियां हैं. दूसरे, सरकार ने मुनाफाखोरों, जमाखोंरों और कालाबाजारियों के आगे घुटने टेक दिए हैं.
अन्यथा वो मौजूदा स्थितियों का फायदा उठाने और मुनाफे के लिए महंगाई बढ़ाने और गरीबों का खून चूसने में जुटे मुनाफाखोर बड़ी कंपनियों पर लगाम कसने की कोशिश जरूर करती.
इसकी बजाय वो लाचार नजर आ रही है. जाहिर है कि कलयुग के हनुमान ने महंगाई की सुरसा के आगे समर्पण कर दिया है.