सोमवार, जनवरी 23, 2012

एन.आर.एच.एम घोटाले की जड़ में है भ्रष्ट-माफिया तंत्र


उत्तर प्रदेश इटली के कुख्यात माफिया तंत्र की राह पर चल पड़ा है



उत्तर प्रदेश में चुनावों के शोर के बीच राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एन.आर.एच.एम) के बारे में आई सी.ए.जी की ताजा रिपोर्ट ने भी इसकी पुष्टि कर दी है कि राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के लिए शुरू की गई यह महत्वाकांक्षी योजना नेताओं-अफसरों-ठेकेदारों-अपराधियों की चौकड़ी की लूट और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है.

इस रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है कि इस योजना के लिए २००५ से २०११ के बीच छह वर्षों में ८६५७ करोड़ रूपये आवंटित किये गए लेकिन उसमें से कोई ४९३८ करोड़ रूपये यानी ५७ फीसदी राशि का कोई हिसाब-किताब नहीं मिल रहा है.

यही नहीं, सी.ए.जी की रिपोर्ट में ब्यौरेवार बताया गया है कि किस तरह इस योजना में तमाम नियमों और निर्देशों को धता बताते हुए लूटपाट की गई. घोटालेबाज इतने बेख़ौफ़ थे कि वे इस योजना के तहत किराये पर ली गई गाड़ियों में स्कूटर, मोपेड, मोटरसाइकिल और ट्रैक्टर के अलावा शाहजहांपुर के जिलाधिकारी की सरकारी कार का नंबर डालने में भी नहीं घबराए.

जाहिर है कि घोटालेबाजों को यह हिम्मत इसलिए हुई क्योंकि उन्हें पता था कि इसमें नीचे से लेकर ऊपर तक सभी की हिस्सेदारी है और उनका बाल भी बांका नहीं होगा. उन्हें यह भी पता था कि जो इस लूट में अडंगा लगाने या सवाल उठाने की कोशिश करेगा, उसे रास्ते से हटाने के लिए यह भ्रष्ट तंत्र किसी हद तक जा सकता है.

यह हुआ भी. एन.आर.एच.एम में लूटपाट में रोड़ा बन रहे दो चीफ मेडिकल आफिसरों की राजधानी लखनऊ में हत्या कर दी गई और उनमें से एक की हत्या के आरोप में जेल में बंद डिप्पटी सी.एम.ओ की जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई. घरवालों का आरोप है कि उनकी भी हत्या की गई.

साफ़ है कि उत्तर प्रदेश में लुटेरों ने केवल सार्वजनिक धन की लूट ही नहीं की बल्कि उनके हाथ खून से भी सने हुए हैं. इससे पता चलता है कि यह भ्रष्ट तंत्र किस तरह से एक भ्रष्ट-माफिया तंत्र में बदलता जा रहा है.

असल में, एन.आर.एच.एम घोटाला इस बात का एक और प्रमाण है कि उत्तर प्रदेश में नेता-अफसर-ठेकेदार और माफिया गठजोड़ किस तरह सार्वजनिक धन खासकर विकास के पैसे की लूट पर फल-फूल रहा है. राज्य में सरकार चाहे जिस पार्टी या गठबंधन की हो, इस भ्रष्ट-माफिया तंत्र की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है.

नतीजा यह कि राज्य में हर विकास योजना और गरीबी उन्मूलन योजना खुले भ्रष्टाचार, अनियमितता और लूटपाट के कारण भ्रष्ट-माफिया तंत्र की भेंट चढ़ जा रही है और सबसे बड़ी बात यह कि हर बड़ी योजना और उसके साथ आ रही विशाल राशि के साथ इस भ्रष्ट-माफिया तंत्र की ताकत मजबूत और जड़ें गहरी होती जा रही हैं.

सच पूछिए तो उत्तर प्रदेश में राज्य शासन को इस भ्रष्ट-माफिया तंत्र ने बंधक बना लिया है. राज्य के सभी मुख्य राजनीतिक दल इसके कब्जे में हैं. नौकरशाही- सिविल और पुलिस दोनों ने उसके आगे न सिर्फ घुटने टेक दिए हैं बल्कि इस तंत्र की हिस्सेदार बन गई है. राजनेता, ठेकेदार और अपराधियों में फर्क करना दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा है.

हालत यह हो गई है कि उत्तर प्रदेश में सत्ता की दावेदार सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में जिला स्तर से लेकर राज्य स्तर पर उनके नेताओं/कार्यकर्ताओं में ठेकेदारों, थाना-ब्लाक-बैंक-कचहरी के दलालों, अपराधियों और लफंगों की भरमार हो गई है जो विकास के धन की लूट पर फल-फूल रही है. इस मायने में उत्तर प्रदेश इटली के कुख्यात माफिया तंत्र में बदलता जा रहा है.

यही नहीं, राजनीति के जिस अपराधीकरण की इतनी चर्चा होती है, उसकी जड़ में विकास के पैसों की यही लूट है. यह लूट इतनी संस्थाबद्ध हो चुकी है कि उसे तोड़े बिना राजनीति का अपराधीकरण खत्म नहीं होगा बल्कि बढ़ता ही जाएगा. अगर विकास के इस पैसे की लूट को रोक दिया जाए तो राजनीति का अपराधीकरण कल खत्म हो जाएगा.

नब्बे के दशक में राजनीति के अपराधीकरण पर बनी वोहरा समिति ने भी इस ओर इशारा करते हुए कहा था कि शासन ने राजनेताओं-अफसरों-ठेकेदारों-अपराधियों के गठजोड़ के आगे समर्पण कर दिया है.

अफसोस की बात यह है कि नब्बे के दशक की तुलना में स्थितियां बद से बदतर ही हुई हैं. जैसे-जैसे विकास योजनाओं के मद में राशि बढ़ी है, दांव ऊँचे हुए हैं, यह गठजोड़ न सिर्फ और व्यापक और मजबूत हुआ है बल्कि वह शासन का पर्याय बन गया है. दूसरी ओर, इस भ्रष्ट माफिया तंत्र के कारण राज्य की सेहत बिगडती चली जा रही है.

उदाहरण के लिए, राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को ही लीजिए जो कोमा में चली गई हैं. सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केन्द्रों का बुरा हाल है. वहां न डाक्टर हैं, न चिकित्सा सुविधाएँ और न साजों-सामान और दवाएं. अगर यह हाल न होता तो चाहे शिशु मृत्यु दर हो या मात् मृत्यु दर या कोई और स्वास्थ्य सूचकांक, उत्तर प्रदेश पूरे देश में सबसे निचले पायदान पर नहो होता.

इसे ही ठीक करने के लिए एन.आर.एच.एम की शुरुआत की गई. इससे अधिक शर्मनाक बात और क्या हो सकती है कि जो राज्य स्वास्थ्य के सभी मानकों पर पूरे देश में आखिरी पायदान पर है, वहां इस योजना के तहत छह वर्षों में आठ हजार करोड़ रूपये से अधिक खर्च करने के बावजूद एक भी नया स्वास्थ्य उपकेन्द्र नहीं बनाया जा सका.

हालत कितनी गंभीर है, इसका अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछले दो दशकों (१९९०-२०११) में राज्य में सिर्फ ३६८ नए स्वाथ्य उपकेन्द्र बनाए गए. यानी हर साल औसतन १७ नए स्वास्थ्य उपकेन्द्र. जो स्वास्थ्य केन्द्र हैं, वे खुद इतने बीमार हैं और वहां इतनी लूटपाट है कि गरीब भी वहां नहीं जाना चाहते हैं.

आश्चर्य नहीं कि सार्वजनिक स्वास्थ्य की इस कब्र पर पूरे राज्य में एक समानांतर निजी अस्पतालों/क्लिनिक्स/नर्सिंग होम्स का जबरदस्त नेटवर्क खड़ा हो गया है. उत्तर प्रदेश के किसी भी शहर या जिला मुख्यालय या बड़े कसबे में चले जाइए, आपको सबसे अधिक फलता-फूलता कारोबार प्राइवेट नर्सिंग होम्स/अस्पतालों का ही है जहां गरीब और आम आदमी जमीन-गहना बेचकर इलाज करने को मजबूर है. मजे की बात यह है कि इन निजी अस्पतालों के साथ भ्रष्ट-माफिया तंत्र के बहुत गहरे रिश्ते हैं.

लेकिन एन.आर.एच.एम घोटाले में आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच यह असली सवाल चर्चाओं से गुम कर दिया गया है कि राज्य में उस भ्रष्ट-माफिया तंत्र की लगातार गहरी होती पकड़ को तोड़े बिना ऐसे घोटालों से मुक्ति संभव नहीं है जिसने सभी राजनीतिक दलों को अपनी चपेट में ले लिया है.

('नया इंडिया' में २३ जनवरी को सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित आलेख)

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