रविवार, मई 01, 2011

मजदूर आन्दोलन को अवांछित घोषित करने की साजिश

एयर इंडिया के पायलटों के साथ आज जो हो रहा है, वह कल सबके साथ होगा

आज मई दिवस है. आज दुनिया भर में पूंजी की तानाशाही के खिलाफ संघर्षरत मजदूरों के लड़ाकू संघर्षों की याद में प्रदर्शन और रैलियां हो रही हैं. मई दिवस दुनिया भर के मजदूरों के संघर्षों और उनकी एकजुटता का जुझारू इजहार है.


यह दिन उन मजदूर साथियों की याद दिलाता है जिन्होंने श्रम के सम्मान और अधिकारों को लेकर लड़ाइयां लड़ीं और कुर्बानियां दीं. उनके लड़ाकू संघर्षों के कारण ही हमें आठ घंटे काम की समय सीमा से लेकर साप्ताहिक छुट्टी और काम की बेहतर सेवा शर्तें हासिल हैं.  

अपने देश में भी लगभग हर शहर और कस्बे में मई दिवस कहीं पूरे जोशो-खरोश से और कहीं रूटीन की तरह मनाया जा रहा है. अधिकांश जगहों पर इसे एक औपचारिकता की तरह निभाया जा रहा है. सबसे अफसोस की बात यह है कि यह मई दिवस एक ऐसे मौके पर आया है जब देश में मजदूर आंदोलन में एक थकान और ठहराव दिखाई पड़ रहा है. उसकी छाया मई दिवस कार्यक्रमों पर भी देखी जा सकती है.
आज मई दिवस पर यह सोचने की बात है कि आज जब मजदूरों के अधिकारों पर हमले बढ़ रहे हैं, लंबी लड़ाइयों के बाद हासिल अधिकार एक-एक करके छीने जा रहे हैं और काम की स्थितियाँ बद से बदतर होती जा रही हैं, मजदूर आंदोलन ढलान पर है. उसकी आवाज़ मंद पड़ती जा रही है. संघर्ष कमजोर पड़ता जा रहा है.


दूर क्यों जाएं, खुद देश की राजधानी में मई दिवस से ठीक दो दिन पहले एक जूते की फैक्टरी में आग से दस मजदूर जिन्दा जल गए लेकिन कहीं कोई पत्ता तक नहीं खडका. जैसे मजदूरों के जीवन की कोई कीमत ही नहीं है. यह घटना अपवाद नहीं है. राजधानी और उसके आसपास नोयडा, गुडगाँव, फरीदाबाद, साहिबाबाद तक हजारों छोटी-बड़ी फैक्टरियों में मजदूरों को जिन अमानवीय और दमघोंटू परिस्थितियों में काम करना पड़ रहा है, वह किसी से छुपा नहीं है.


इन फैक्टरियों में कोई श्रम कानून नहीं चलता, मजदूरों को भेंड-बकरी की तरह इस्तेमाल किया जाता है और उनके जीवन की कोई कीमत नहीं है. उन्हें उचित वेतन, काम के निश्चित घंटे, कार्यस्थल पर संरक्षा, साप्ताहिक छुट्टी से लेकर स्वास्थ्य सुविधाएँ और यूनियन बनाने के अधिकार तक के बुनियादी संवैधानिक अधिकार तक हासिल नहीं हैं.


मजदूरों के साथ बर्ताव के मामले में बहुराष्ट्रीय से लेकर देशी कंपनियों के बीच कोई अंतर नहीं है. श्रम विभाग के अधिकारियों, जिला प्रशासन के अफसरों, नेताओं-विधायकों-सांसदों, स्थानीय अपराधियों और सरकारी ट्रेड यूनियनों की मदद से कंपनियां मजदूरों का खून चूसने में लगी हुई हैं.

लेकिन इस सबकी कहीं कोई चर्चा नहीं होती. यही नहीं, उत्तर उदारीकरण और निजीकरण के इस दौर में ट्रेड यूनियनों को अपराधी और आर्थिक आतंकवादी तक घोषित कर दिया गया है. यूनियन बनाने और अपने मांगों-अधिकारों के लिए संघर्ष करने, धरना-प्रदर्शन और हड़ताल करने के संवैधानिक और मानव अधिकारों को अपराध और देशद्रोह साबित किया जा रहा है.


एक तरह से मजदूर आंदोलन को अवांछित घोषित कर दिया गया है. सबसे हैरानी और चिंता की बात यह है कि छोटी से लेकर बड़ी अदालतें तक हडतालों को अवैध घोषित करने लगी हैं. हडताली कर्मचारियों को अवमानना की नोटिस भेजने लगी हैं. सबसे ताजा मामला एयर इंडिया के हडताली पायलटों का है. सरकार इस हड़ताल को कुचलने में जुटी है. यूनियन की मान्यता रद्द कर दी गई है. हडताली पायलटों को बर्खास्त किया जा रहा है. एयर इंडिया में तालाबंदी की चेतावनी दी जा रही है.


पायलटों की कुछ मांगों से असहमति हो सकती है. लेकिन उनके कई सवाल बहुत जरूरी और सरकार और एयर इंडिया प्रबंधन के भ्रष्टाचार और मनमानी की पोल खोलने वाले हैं. इसके बावजूद सरकार जिस तरह से बातचीत के बजाय एकतरफा दमनात्मक कदम उठा रही है, उसे किस लोकतंत्र में स्वीकार किया जा सकता है?


याद रखिये, आज जो एयर इंडिया के पायलटों के साथ हो रहा है, वह कल बाकी मजदूरों और कर्मचारियों के आन्दोलनों के साथ भी होगा बल्कि हो रहा है. अभी ज्यादा दिन नहीं गुजरे जब दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों के आंदोलन को ऐसे ही निपटाया गया. मतलब बिल्कुल साफ़ है. आप अपनी जुबान बंद रखिये. जो मिल गया, उसमें खुश रहिये और दुआ दीजिए.


मई दिवस पर लोकतंत्र की इस तानाशाही पर गहराई से विचार जरूरी हो गया है क्योंकि हर जोर-जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा अधिकार है को खत्म करने की साजिश मजबूत होती जा रही है.                

2 टिप्‍पणियां:

नई राह ने कहा…

आज के दौर में मीडिया की ख़बरों में हड़ताल,जन आन्दोलन,निम्न तबकों की मांगें गायब है.समाज में इन लोगों को लगातार नजरंदाज करना ही मीडिया की बुलेट थियोरी का काम है.... इसके बावजूद यह तथाकथित लोकतंत्र अपनी धून में थिरक रहा है...

khabar ने कहा…

जेएनयू में एक बार वामपंथी नेता गुरूदास दास गुप्ता को सुन रहा था..उनकी बात उस दिन घर कर गई और आज जब हर जगह निजी सेक्टर का शोषण देखता हूँ तो उनकी वही बात हर बार याद आ जाती है कि...why left is essential to this country...लेफ्ट सत्ता में बैलेंस बनाने के लिए उतना ही जरूरी है और उसका कमजोर होना लोकतंत्र के लिए अच्छी निशानी नहीं होगी..