शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2014

मीडिया आक्सीजन के बिना ‘आप’

मीडिया की अहर्निश प्रशंसा का नशा आप पार्टी के मंत्रियों, नेताओं और कार्यकर्ताओं के सिर चढ़कर बोलता रहा है

आम आदमी पार्टी (आप) और उसके नेता अरविंद केजरीवाल इन दिनों न्यूज मीडिया से खासे नाराज और खिन्न से दिख रहे हैं. उन्हें लगता है कि न्यूज चैनल और अखबार पूर्वाग्रह और एक एजेंडे के तहत उनकी सरकार की गैर जरूरी आलोचना कर रहे हैं और नकारात्मक खबरें दिखा रहे हैं. केजरीवाल के मुताबिक, पत्रकार तो ईमानदार हैं लेकिन मीडिया के मालिक इस या उस पार्टी से जुड़े हैं और पत्रकारों पर दबाव डालकर ‘आप’ के खिलाफ खबरें करवा रहे हैं.
दूसरी ओर, नस्लवाद, मोरल पुलिसिंग और विजिलैंटिज्म के आरोपों से घिरे दिल्ली सरकार में कानून मंत्री सोमनाथ भारती की मीडिया से नाराजगी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि टी.वी रिपोर्टरों के सवालों पर वे आपा खो बैठे और उल्टे रिपोर्टर पर सवाल दाग दिया कि सवाल पूछने के लिए (नरेन्द्र) मोदी ने कितने पैसे दिए हैं?
हालाँकि भारती ने बाद में माफ़ी मांग ली लेकिन आप पार्टी के दूसरे नेताओं और कार्यकर्ताओं की न्यूज मीडिया से नाराजगी खत्म नहीं हुई है. असल में, वे चैनलों और अखबारों के लगातार तीखे होते सवालों और आलोचनाओं को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. आप पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की बौखलाहट से ऐसा लगता है कि उनमें आलोचना सुनने की आदत नहीं है.

गोया वे भगवान हों जो गलतियाँ नहीं कर सकता और किसी भी तरह की आलोचना से परे है. आलोचना के हर सुर को वे संदेह और साजिश की तरह देख रहे हैं. वे अपनी गलतियों और कमजोरियों को देखने के लिए तैयार नहीं हैं. उल्टे गलतियाँ और कमियां बतानेवालों को निशाना बना रहे हैं.
 

लेकिन इसके लिए न्यूज मीडिया खासकर न्यूज चैनल भी जिम्मेदार हैं. दिल्ली विधानसभा चुनावों में आप की कामयाबी के बाद चैनलों और अखबारों में जिस तरह से दिन-रात राग आप क्रांति बज रहा था और उसमें सिर्फ खूबियां ही खूबियां नजर आ रही थीं, वह किसी भी नेता, पार्टी और उसके समर्थकों का दिमाग खराब कर सकती है.
यही हुआ. चैनलों और अखबारों की अहर्निश प्रशंसा का नशा आप पार्टी के कई मंत्रियों, नेताओं और कार्यकर्ताओं के सिर चढ़कर बोल रहा है. कानून मंत्री सोमनाथ भारती हों या कवि-नेता कुमार विश्वास या फिर आप के अन्य नेता- उनके क्रियाकलापों, हाव-भाव और बयानों में अहंकार और आक्रामकता के अलावा आलोचनाओं के प्रति उपहास का रवैया साफ़ देखा जा सकता है.
लेकिन इससे न्यूज मीडिया का नहीं बल्कि आप पार्टी को नुकसान हो रहा है. केजरीवाल और उनके साथी अपने अंदर झांकने और अपनी गलतियों और कमियों को दूर करने के बजाय इसकी ओर इशारा करनेवाले न्यूज मीडिया को निशाना बनाकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं. चैनलों और अखबारों से लड़कर उन्हें कुछ हासिल होनेवाला नहीं है.

आखिर केजरीवाल से बेहतर कौन जानता है कि न्यूज मीडिया की सकारात्मक कवरेज आप पार्टी की आक्सीजन है? ‘आप’ को याद रखना चाहिए कि उन्होंने खुद सार्वजनिक जीवन में नैतिक आचार-विचार के इतने ऊँचे मानदंड तय किये हैं कि उन मानदंडों पर सबसे पहले उनकी ही परीक्षा होगी. वे इससे बच नहीं सकते हैं बल्कि उनपर कुछ ज्यादा ही कड़ी निगाह रहेगी या रहनी चाहिए. आखिर लोगों को उनसे बहुत उम्मीदें हैं.

लेकिन ‘आप’ के प्रति न्यूज मीडिया के रवैये में अचानक आए बदलाव और तीखी होती आलोचनाओं के पीछे कोई एजेंडा या पूर्वाग्रह नहीं है? यह मानना भी थोड़ा मुश्किल है.
क्या मीडिया के रुख में इस बदलाव के पीछे खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी को अनुमति नहीं देने या निजी बिजली कंपनियों की आडिट करवाने जैसे फैसलों की भी कोई भूमिका है? क्या चैनलों/अखबारों पर मोदी को ज्यादा और सकारात्मक कवरेज देने का दबाव नहीं है? हाल में कुछ संपादक किस दबाव के कारण हटाए गए हैं? कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है.                 
('तहलका' के स्तम्भ 'तमाशा मेरे आगे' में प्रकाशित टिप्पणी)

1 टिप्पणी:

dr.mahendrag ने कहा…

मीडिया का इनके बिना काम भी नहीं चलता.कुछ लोगों की नेतागिरी ही इस के आधार पर चलती है.यही बनता है और यही डुबोता भी है.