बुधवार, फ़रवरी 22, 2012

आखिर मुकेश अम्बानी का इरादा क्या है?

मीडिया का बढ़ता कारपोरेटीकरण और संकेन्द्रण : लोकतंत्र और टी.वी उद्योग के लिए रिलायंस-टी.वी 18 डील के मायने


भारतीय मीडिया और खासकर टी.वी उद्योग के लिए वर्ष २०१२ की शुरुआत बहुत धमाकेदार रही. देश में शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों में बाजार पूंजीकरण के लिहाज से सबसे बड़ी कंपनी, मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज ने टी.वी-18/नेटवर्क-18 (मनोरंजन चैनल कलर्स और न्यूज चैनल सी.एन.एन-आई.बी.एन, सी.एन.बी.सी आदि) में कोई 17 अरब रूपये के निवेश का एलान करके सबको चौंका दिया.
इस डील के तहत रिलायंस के मालिकाने वाले इंडिपेंडेंट मीडिया ट्रस्ट ने टी.वी-18/नेटवर्क-18 में 1700 करोड़ रूपये का निवेश किया है जिसके बदले में   टी.वी-18/नेटवर्क-18 ने इनाडु टी.वी समूह के सभी क्षेत्रीय समाचार चैनलों को पूरी तरह और मनोरंजन चैनलों में बड़ी हिस्सेदारी खरीद ली है.

इस डील के साथ एक ही झटके में मुकेश अंबानी और उनकी कंपनी रिलायंस मीडिया और मनोरंजन उद्योग की एक बड़ी खिलाड़ी बन गई है. खबरें यह भी हैं कि रिलायंस टी.वी वितरण के क्षेत्र में भी घुसने का रास्ता तलाश रही है और उसकी कई वितरण कंपनियों से उनके अधिग्रहण के लिए सौदा पटाने की कोशिश कर रही है. इसके अलावा वह कुछ खेल चैनलों को भी अधिग्रहीत करने के प्रयास में भी है. उल्लेखनीय है कि
रिलायंस आई.पी.एल क्रिकेट में सबसे महँगी टीमों में से एक मुंबई इंडियन की भी मालिक है. इसके अलावा रिलायंस को पूरे भारत में चौथी पीढ़ी (4 जी) ब्राडबैंड सेवाएं उपलब्ध करने का भी लाइसेंस मिल गया है.
असल में, मीडिया और मनोरंजन उद्योग खासकर समाचार मीडिया और टी.वी उद्योग में मुकेश अंबानी की रिलायंस की दिलचस्पी किसी से छुपी नहीं है. 80 के दशक के आखिरी वर्षों में अंबानी ने ‘बिजनेस एंड पोलिटिकल ऑब्जर्वर’ अखबार शुरू किया था. हालांकि वह अखबार कई कारणों से नहीं चल पाया लेकिन इससे मीडिया में रिलायंस की दिलचस्पी कम नहीं हुई.
अलबत्ता, उन्होंने उसके बाद सीधे और सामने से किसी मीडिया कंपनी और उसके अखबार या चैनल में पूंजी निवेश करने के बजाय पीछे से उसे नियंत्रित करने की रणनीति अपनाई. माना जाता है कि परोक्ष रूप से देश के कई अखबारों और न्यूज चैनलों में उनका पैसा लगा हुआ है.

लेकिन रिलायंस के ताजा फैसले से जाहिर है कि मुकेश अंबानी की तैयारी अब नेपथ्य से मीडिया की राजनीतिक-रणनीतिक ताकत और प्रभाव का इस्तेमाल करने के बजाय खुद उसके एक बड़े खिलाड़ी की तरह खेल में उतरने की है.
हालांकि यह डील खुद में बहुत जटिल प्रक्रिया के जरिये पूरी होगी और उसकी बारीकियां अभी भी स्पष्ट नहीं हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके जरिये मुकेश अंबानी की नेटवर्क18 में कोई 44 फीसदी और टी.वी18 में 28.5 फीसदी हिस्सेदारी होगी और वे इन कंपनियों में अकेले सबसे बड़े हिस्सेदार होंगे. तात्पर्य यह कि वे इन कंपनियों के वास्तविक मालिक होंगे.         
लेकिन खुद रिलायंस समूह का दावा है कि नेटवर्क18/टी.वी.18 समूह और उसके जरिये इनाडु टी.वी समूह पर मालिकाने के पीछे उसका एकमात्र मकसद अपने 4 जी ब्राडबैंड सेवा के लिए कंटेंट जुटाना है. इस डील के बाद रिलायंस का इन दोनों मीडिया समूहों के टी.वी चैनलों के कंटेंट और उनके अन्य मीडिया उत्पादों पर अधिकार होगा जिसे वह अपने ब्राडबैंड सेवा के ग्राहकों को लुभाने के लिए इस्तेमाल करेगी.
यही नहीं, रिलायंस समूह ने यह भी सफाई दी है कि इस डील के बाद भी नेटवर्क18/टी.वी18 के प्रबंधन, संचालन और संपादकीय नीति में कोई बदलाव नहीं होगा और वह उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा. इसके लिए रिलायंस एक ‘स्वतंत्र’ ट्रस्ट- इंडिपेंडेंट मीडिया ट्रस्ट गठित कर रहा है जिसमें कंपनी के मालिकों और प्रबंधकों के बजाय ‘जाने-माने लोग’ ट्रस्टी होंगे. रिलायंस इसी ट्रस्ट के जरिये नेटवर्क18/टी.वी18 में निवेश कर रहा है.

लेकिन रिलायंस के अतीत और मीडिया व्यवसाय में व्यवसाय से इतर कारणों से उसकी गहरी दिलचस्पी को देखते हुए उसके इस दावे पर भरोसा करना मुश्किल है. यह सही है कि मुकेश अंबानी और रिलायंस को अब मीडिया और मनोरंजन उद्योग में व्यवसाय की दृष्टि से भी बेहतर संभावनाएं दिखने लगी हैं और रिलायंस के विस्तार के नए क्षेत्रों में मीडिया व्यवसाय भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है. पिछले एक-डेढ़ दशक में भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग का जिस गति और पैमाने पर विस्तार हुआ है, उसके कारण कई बड़े उद्योग और कारोबारी समूहों की उसमें दिलचस्पी बढ़ी है.

असल में, पिछले वर्ष की फिक्की-के.पी.एम.जी मीडिया और मनोरंजन उद्योग रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में मीडिया उद्योग 2009 में 587 अरब रूपये का था जो 11 फीसदी की वृद्धि दर के साथ बढ़कर वर्ष 2010 में 652 अरब रूपये का हो गया. इस रिपोर्ट का अनुमान है कि पिछले साल कोई 13 फीसदी की बढोत्तरी के साथ इसका आकार बढ़कर 738 अरब रूपये हो जाएगा.
यही नहीं, इस रिपोर्ट का यह भी आकलन है कि भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग आनेवाले वर्षों में औसतन 14 फीसदी सालाना की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2015 में लगभग 1275 अरब रूपये का विशाल उद्योग हो जाएगा.

साफ़ है कि मीडिया और मनोरंजन उद्योग का तेजी से विस्तार हो रहा है. इसके साथ ही, इसमें दांव ऊँचे और बड़े होते जा रहे हैं. स्वाभाविक तौर पर इसके विस्तार के साथ इसमें बड़ी देशी-विदेशी पूंजी की दिलचस्पी भी बढ़ रही है.
इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आमतौर पर छोटी-मंझोली पूंजी के इस असंगठित उद्योग में पिछले डेढ़-दो दशकों में कई मीडिया कंपनियों ने शेयर बाजार से पूंजी उठाई है और उनमें देशी-विदेशी निवेशकों ने पैसा लगाया है. आज ऐसी दर्जनों मीडिया कंपनियां हैं जो शेयर बाजार में लिस्टेड हैं और जिनमें देशी-विदेशी पूंजी लगी हुई है. इनमें से कुछ कम्पनियाँ परंपरागत मीडिया कम्पनियाँ हैं जो पिछले कई दशकों से समाचारपत्र और फिल्म कारोबार में सक्रिय थीं.
लेकिन इनमें कई कम्पनियाँ खासकर टी.वी कम्पनियाँ ऐसी हैं जो नब्बे के दशक में टी.वी उद्योग के विस्तार के साथ पैदा हुईं और तेजी से फली-फूली हैं. उनके विस्तार में बड़ी पूंजी ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. बड़ी पूंजी के प्रवेश के साथ ये कम्पनियाँ जिनमें कई आठ-दस साल पहले तक छोटी प्रोडक्शन कंपनी या एक खास इलाके तक सीमित समाचारपत्र कंपनी थीं, कुछ ही सालों में बड़ी कंपनियों में बदल गईं.
इनमें से कई का बाजार पूंजीकरण यानि बाजार भाव हजारों करोड़ रूपये का है. उदाहरण के लिए, दक्षिण भारत की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी, कलानिधि मारन की सन नेटवर्क का बाजार पूंजीकरण 11700 करोड़ रूपये है जबकि दूसरी बड़ी कंपनी जी इंटरटेन्मेंट का बाजार पूंजीकरण 11367 करोड़ रूपये है. (19 जनवरी’12 की शेयर कीमतों पर)
इसी तरह टी.वी-18 का बाजार पूंजीकरण लगभग 1122 करोड़ रूपये है जबकि यह कंपनी डेढ़-दो दशकों पहले तक एक छोटी सी प्रोडक्शन हाउस थी. इसके अलावा टी.वी टुडे (आज तक और हेडलाइंस टुडे आदि) का बाजार पूंजीकरण 350 करोड़ रूपये, एन.डी.टी.वी (एन.डी.टी.वी-24x7, एन.डी.टी.वी-इंडिया आदि) का 279 करोड़ रूपये और जी. न्यूज का 273 करोड़ रूपये है.
कई समाचारपत्र कम्पनियाँ भी शेयर बाजार में लिस्टेड हैं जिनमें जागरण प्रकाशन (बाजार पूंजीकरण 3094 करोड़ रूपये), डेक्कन क्रानिकल (874 करोड़ रूपये), दैनिक भास्कर-डी.बी कार्प (3390 करोड़ रूपये) और एच.टी मीडिया (3084 करोड़ रूपये) शामिल हैं.
हालांकि बेनेट कोलमैन (टाइम्स आफ इंडिया समूह), स्टार नेटवर्क, हिंदू समूह, आनंद बाजार पत्रिका समूह सहित देश की कई बड़ी मीडिया कम्पनियाँ अभी भी शेयर बाजार में लिस्टेड नहीं हैं लेकिन मौजूदा ट्रेंड को देखते हुए कहा जा सकता है कि आनेवाले वर्षों में देर-सबेर इनमें से अधिकांश शेयर बाजार में आएँगी और लिस्टेड कंपनी होंगी.
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि मीडिया और मनोरंजन उद्योग में जिस तरह से गलाकाट प्रतियोगिता बढ़ रही है और दांव ऊँचे से ऊँचे होते जा रहे हैं, उसमें अधिकांश कंपनियों के लिए बड़ी पूंजी की शरण में जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है.

('कथादेश' के फरवरी'१२ के अंक में प्रकाशित स्तम्भ की पहली किस्त..बाकी बातें अगले दो किस्तों में..)

1 टिप्पणी:

योगेश कुमार 'शीतल' ने कहा…

हमेशा की तरह अच्छी प्रस्तुति.