‘बलात्कार की संस्कृति’ के पोषक स्त्रियों की
आज़ादी और बराबरी की मांग से बौखला गए हैं
बलात्कारियों के छुपे हमदर्द अब बाहर निकलने लगे हैं. वैसे तो उनके हमदर्द हर जगह मिल जाएंगे लेकिन भारतीय संस्कृति और नैतिकता के स्वयंभू ठेकेदार भगवा ध्वजाधारियों से बड़ा और संगठित हमदर्द उनका और कोई नहीं है. यह तथ्य एक बार फिर साबित हो रहा है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस) के सर संघचालक मोहन राव भागवत के उस बयान को इसी सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए जिसमें उन्होंने दावा किया है कि बलात्कार भारत में नहीं, ‘इंडिया’ में होते हैं. उन्होंने यह भी कहा बताते हैं कि बलात्कार गांवों और जंगलों में नहीं होते हैं.
विजयवर्गीय के मुताबिक, महिलाओं के लिए ‘लक्ष्मण रेखा’ भारतीय संस्कृति है. भागवत के बचाव में उतरे भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने लीपापोती करते हुए तर्क दिया कि संघ प्रमुख भारतीय संस्कारों, परंपरा और मूल्यों का उल्लेख कर रहे थे जिसमें महिलाओं के सम्मान को सबसे उपर स्थान दिया जाता है.
यही नहीं, ‘बलात्कार की संस्कृति’ का इस कदर बोलबाला है कि बलात्कार के मामलों को दबाने या छुपाने की कोशिश की जाती है क्योंकि उसके सामने आने से महिला और उससे अधिक उसके परिवार की ‘इज्जत’ जाने का खतरा है.
यही नहीं, पिछले कुछ दशकों में सामंती-ब्राह्मणवादी सत्ता संरचना को दलित-पिछड़े समुदायों की ओर से चुनौती देने पर सबक सिखाने और बदले की कार्रवाई में दलितों-पिछडों के नरसंहार, आगजनी से लेकर स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार जैसी बर्बर घटनाओं की लंबी श्रृंखला है.
याद रहे, भगवा ब्रिगेड के ए.बी.वी.पी-बजरंग दल-विहिप-श्रीराम सेने जैसे संगठनों ने पिछले कई वर्षों से ‘भारतीय संस्कृति’ की रक्षा के नामपर स्त्रियों के जींस पहनने, पब जाने, वैलेंटाइन डे मनाने से लेकर विधर्मियों-विजातियों से प्रेम करने के खिलाफ हिंसक मुहिम छेड रखी है.
लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है. भगवा ब्रिगेड के ये बयान उस सामंती-ब्राह्मणवादी ‘भारत’ की बेचैनी और बैकलैश की अभिव्यक्ति भी हैं जो दिल्ली से लेकर देश के तमाम शहरों में महिलाओं के साथ बड़ी संख्या में छात्र-युवाओं और आम लोगों के सड़कों पर उतरकर आज़ादी और बराबरी की मांग की प्रतिक्रिया में पैदा हुई हैं.
वे घर की चाहरदीवारी के भीतर के अंधेरों-घुटन और यौन हिंसा से बाहर आज़ादी की हवा में सांस लेना चाहती हैं और ले रही हैं. वे इस आज़ादी को गंवाने के लिए तैयार नहीं हैं. उन्होंने सड़कों पर उतरकर बलात्कारियों और उनके खुले-छुपे समर्थकों को खुली चुनौती दी है.
बलात्कारियों के छुपे हमदर्द अब बाहर निकलने लगे हैं. वैसे तो उनके हमदर्द हर जगह मिल जाएंगे लेकिन भारतीय संस्कृति और नैतिकता के स्वयंभू ठेकेदार भगवा ध्वजाधारियों से बड़ा और संगठित हमदर्द उनका और कोई नहीं है. यह तथ्य एक बार फिर साबित हो रहा है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस) के सर संघचालक मोहन राव भागवत के उस बयान को इसी सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए जिसमें उन्होंने दावा किया है कि बलात्कार भारत में नहीं, ‘इंडिया’ में होते हैं. उन्होंने यह भी कहा बताते हैं कि बलात्कार गांवों और जंगलों में नहीं होते हैं.
भागवत ने अपने भाषण में किसी भ्रम की गुंजाइश को खत्म करने के लिए यह
स्पष्ट किया कि शहरों में लोग पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण कर रहे हैं जिसके कारण
महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं.
जाहिर है कि भागवत दिल्ली गैंग रेप की ओर
इशारा कर रहे थे क्योंकि उनकी निगाह में पश्चिमी संस्कृति में डूबी राजधानी दिल्ली
और उसमें रात के नौ बजे अपने दोस्त के साथ सिनेमा देखकर लौट रही वह बहादुर लड़की पश्चिमी
संस्कृति से प्रेरित ‘इंडिया’ के प्रतिनिधि हैं.
अगर अब भी कोई शक की गुंजाइश रह गई तो उसे भगवा ब्रिगेड के एक और
संस्कृति-रक्षक और मध्यप्रदेश के उद्योगमंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने यह कहकर पूरा
कर दिया कि महिलाओं को ‘लक्ष्मण रेखा’ नहीं लांघना चाहिए क्योंकि सीता की तरह
लक्ष्मण रेखा लांघने पर सीताहरण भी होता है. विजयवर्गीय के मुताबिक, महिलाओं के लिए ‘लक्ष्मण रेखा’ भारतीय संस्कृति है. भागवत के बचाव में उतरे भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने लीपापोती करते हुए तर्क दिया कि संघ प्रमुख भारतीय संस्कारों, परंपरा और मूल्यों का उल्लेख कर रहे थे जिसमें महिलाओं के सम्मान को सबसे उपर स्थान दिया जाता है.
सवाल यह है कि क्या यह दिल्ली गैंग रेप जैसी बर्बर और शर्मनाक घटना को
परोक्ष रूप से स्वाभाविक ठहराने और बलात्कार के लिए उस बहादुर लड़की को ही दोषी
बताने की कोशिश नहीं है? असल में, यह भारतीय संस्कृति की आड़ में ‘बलात्कार की
संस्कृति’ का बचाव है. ‘बलात्कार की संस्कृति’ उसे कहते हैं जिसमें बलात्कार का
संस्कृति, परंपरा, संस्कार से भटकाव लेकर कपड़े, चालचलन आदि बहानों से बचाव किया
जाता है और बलात्कार के लिए पीड़िता को ही दोषी ठहराने की कोशिश की जाती है.
कहने की जरूरत नहीं है कि सामंती पुरुष-सत्तात्मक भारतीय समाज में ‘बलात्कार
की संस्कृति’ आम है और उसकी आड़ में बलात्कार को इस या उस बहाने उचित ठहराने वालों
की कमी नहीं है. आमतौर पर बलात्कार की किसी भी घटना के बाद सबसे पहले महिला के
चाल-चलन, कपड़ों, आधुनिकता पर सवाल उठाये जाते हैं और उसे ही दोषी ठहराने की कोशिश
की जाती है. गोया उसने ही बलात्कार का न्यौता दिया हो. यही नहीं, ‘बलात्कार की संस्कृति’ का इस कदर बोलबाला है कि बलात्कार के मामलों को दबाने या छुपाने की कोशिश की जाती है क्योंकि उसके सामने आने से महिला और उससे अधिक उसके परिवार की ‘इज्जत’ जाने का खतरा है.
इसी से जुड़ा ‘बलात्कार की संस्कृति’ का दूसरा पहलू यह है कि बलात्कार
को पुरुषसत्ता एक हथियार की तरह इस्तेमाल करती है. पुरुष वर्चस्व को बनाए रखने के
लिए बलात्कार के बर्बर हथियार का सहारा लिया जाता है और उसके जरिये न सिर्फ स्त्री
यौनिकता को नियंत्रित किया जाता है बल्कि सामंती दबदबे को बनाए रखने की कोशिश की
जाती है. स्त्री यौनिकता पर नियंत्रण के जरिये ही स्त्री और सामंती-ब्राह्मणवादी
समाज में अवर्णों यानी दलितों-पिछडों-आदिवासियों-अल्पसंख्यकों की अधीनता सुनिश्चित
होती है.
आश्चर्य नहीं कि मोहन भागवत के सामंती-मध्ययुगीन ‘भारत’ में गांवों
में सबसे अधिक बलात्कार होते हैं जिनमें सामंती-ब्राह्मणवादी दबदबे और वर्चस्व को
बनाए रखने और उसे साबित करने के लिए दलित-पिछड़े समुदाय की महिलाओं को निशाना बनाया
जाता है. यही नहीं, पिछले कुछ दशकों में सामंती-ब्राह्मणवादी सत्ता संरचना को दलित-पिछड़े समुदायों की ओर से चुनौती देने पर सबक सिखाने और बदले की कार्रवाई में दलितों-पिछडों के नरसंहार, आगजनी से लेकर स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार जैसी बर्बर घटनाओं की लंबी श्रृंखला है.
लेकिन सामंती-ब्राह्मणवादी ‘भारतीय संस्कृति’ के रक्षक भगवा ब्रिगेड
ने न सिर्फ इसका कभी विरोध नहीं किया बल्कि कई मौकों पर वे सामंती गुंडा गिरोहों की
अगुवाई करते दिखाई दिए हैं. उनके लिए यह कभी भारतीय संस्कृति, परंपरा या संस्कार
या फिर स्त्री का अपमान नहीं लगा. यही नहीं, भगवा ध्वजधारियों ने खुद भी बलात्कार
को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया है.
इसका प्रमाण भगवा ब्रिगेड के आदर्श राज्य
गुजरात में २००२ के राज्य प्रायोजित नरसंहार में देखने को मिला था जब मुस्लिम
समुदाय को सबक सिखाने के लिए कई जगहों पर महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार की
घटनाएँ हुई थीं. यह भी किसी से छुपा नहीं है कि उन बलात्कारियों की अगुवाई विहिप-बजरंग
दल के गुंडों ने की थी.
साफ़ है कि भगवा ब्रिगेड को न सिर्फ बलात्कार से कोई आपत्ति या परहेज
नहीं है बल्कि सबक सिखाने के लिए अपने ‘आदर्श भारत’ में वह इसका इस्तेमाल करने से
भी नहीं हिचकिचाता है. लेकिन मामला सिर्फ ‘विधर्मियों’ यानी हिंदू राष्ट्र के दुश्मनों
को सबक सिखाने तक सीमित नहीं है. भगवा ब्रिगेड उन सभी स्त्रियों के खिलाफ भी है जो
घर की चाहरदीवारी से बाहर शिक्षा और कामकाज के लिए निकल रही हैं या सामंती बंधनों को
तोड़कर आज़ादी और बराबरी की मांग कर रही हैं. याद रहे, भगवा ब्रिगेड के ए.बी.वी.पी-बजरंग दल-विहिप-श्रीराम सेने जैसे संगठनों ने पिछले कई वर्षों से ‘भारतीय संस्कृति’ की रक्षा के नामपर स्त्रियों के जींस पहनने, पब जाने, वैलेंटाइन डे मनाने से लेकर विधर्मियों-विजातियों से प्रेम करने के खिलाफ हिंसक मुहिम छेड रखी है.
खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत सिलचर के बाद अब इंदौर में कहा है कि
स्त्री-पुरुष के बीच एक सामाजिक सौदा (कांट्रेक्ट) है कि स्त्री घर-बच्चों को
संभालेगी और पुरुष कमाकर उनका भरण-पोषण करेगा. अगर स्त्री इस कांट्रेक्ट को तोडती
है, पुरुष उसे छोड़ सकता है. इसी तरह अगर पुरुष इस कांट्रेक्ट को पूरा नहीं कर पाता
है तो स्त्री उसे छोड़ सकती है और नए कांट्रेक्ट के लिए जा सकती है. भागवत की हाँ
में हाँ मिलाते हुए विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल ने भी पश्चिमी संस्कृति को
कोसा है जिसके कारण भारतीय संस्कृति की पवित्रता दूषित हो रही है.
इन ताजा बयानों से साफ़ है कि भगवा ब्रिगेड दिल्ली गैंग रेप की बर्बर
घटना के बाद दिल्ली और देश भर में भड़के आंदोलन में महिलाओं की आज़ादी और बराबरी की
मांग से कितना घबराया और बौखलाया हुआ है. जाहिर है कि उसे इस मांग में न सिर्फ
आदर्श भारतीय संस्कृति के लिए गंभीर खतरा दिखाई दे रहा है बल्कि उसके हिंदू राष्ट्र
के प्रोजेक्ट की बुनियाद भी लडखडाने लगी है. लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है. भगवा ब्रिगेड के ये बयान उस सामंती-ब्राह्मणवादी ‘भारत’ की बेचैनी और बैकलैश की अभिव्यक्ति भी हैं जो दिल्ली से लेकर देश के तमाम शहरों में महिलाओं के साथ बड़ी संख्या में छात्र-युवाओं और आम लोगों के सड़कों पर उतरकर आज़ादी और बराबरी की मांग की प्रतिक्रिया में पैदा हुई हैं.
कहने की जरूरत नहीं है कि मोहन भागवतों, विजयवर्गियों, सिंघलों से लेकर
अभिजीत मुखर्जियों तक के बयानों में वही सामंती-ब्राह्मणवादी भारत पलटवार कर रहा है
जिसने स्त्रियों के खिलाफ बलात्कार को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया है.
लेकिन
संघ प्रमुख के बयानों के बाद भगवा ब्रिगेड इस सामंती-ब्राह्मणवादी भारत के मुख्य
प्रवक्ता के रूप में उभरा है. इस मायने में उसमें और तालिबान से लेकर खाप पंचायतों
और देवबंदी मुल्लाओं में कोई बुनियादी फर्क नहीं है.
उन सबकी राय में अद्दभुत समानता है कि स्त्री की जगह सिर्फ घर के अंदर
और घरेलू कामों तक सीमित है. यही उनकी आदर्श भारतीय संस्कृति की लक्ष्मण रेखा है जिसके
अंदर स्त्रियों को सबसे ज्यादा शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है और जिसे
आज गांवों-कस्बों और शहरों में करोड़ों स्त्रियां लांघ रही हैं, तोड़ रही हैं और
चुनौती दे रही हैं. वे घर की चाहरदीवारी के भीतर के अंधेरों-घुटन और यौन हिंसा से बाहर आज़ादी की हवा में सांस लेना चाहती हैं और ले रही हैं. वे इस आज़ादी को गंवाने के लिए तैयार नहीं हैं. उन्होंने सड़कों पर उतरकर बलात्कारियों और उनके खुले-छुपे समर्थकों को खुली चुनौती दी है.
लेकिन भागवत और उनकी भगवा ब्रिगेड और खाप जैसे उनके संगी-साथी आसानी
से हार माननेवाले नहीं हैं. वे दिल्ली से लेकर देश भर में बलात्कार और महिलाओं के
खिलाफ हिंसा के खिलाफ उतरे लाखों युवाओं खासकर महिलाओं को वापस घर की चाहरदीवारी
में बंद करने की हरसंभव कोशिश करेंगे.
आश्चर्य नहीं होगा अगर वैलेंटाइन डे आते-आते
भगवा ब्रिगेड के बजरंगी-श्रीराम सेने पश्चिमी संस्कृति का प्रतिकार करने के नामपर
युवा लड़के-लड़कियों पर हमले करते और उन्हें अपमानित करते नजर आएं.
लेकिन क्या वे इतिहास के पहिये को आगे बढ़ने से रोक पाएंगे? दिल्ली से
लेकर देश भर में बलात्कार की संस्कृति के खिलाफ उठी आवाजों का सन्देश साफ है-
भागवत जैसों के लिए घर में बैठने का समय आ गया है.
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