उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए रास्ता साफ़ कर रही है समाजवादी पार्टी की सरकार
उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने लगता है कि हाल के लोकसभा चुनावों में करारी हार से कोई सबक़ नहीं सीखा है. ऐसा लगता है कि सबक़ तो दूर उसने प्रदेश के लोगों को सबक़ सिखाने का फ़ैसला कर लिया है.
प्रदेश से जिस तरह की चिंताजनक और दहला देनेवाली ख़बरें आ रही हैं, उससे लगता है कि अखिलेश यादव की न सिर्फ सरकार पर से पकड़ ख़त्म हो रही है बल्कि उसमें शासन करने की इच्छाशक्ति भी नहीं रह गई है. आश्चर्य नहीं कि वह लगातार ढलान पर फिसलती जा रही है.
प्रदेश से जिस तरह की चिंताजनक और दहला देनेवाली ख़बरें आ रही हैं, उससे लगता है कि अखिलेश यादव की न सिर्फ सरकार पर से पकड़ ख़त्म हो रही है बल्कि उसमें शासन करने की इच्छाशक्ति भी नहीं रह गई है. आश्चर्य नहीं कि वह लगातार ढलान पर फिसलती जा रही है.
मुहावरे में जिसे कहते हैं कि पानी सिर पर से गुज़रने लगा है, वही उत्तर प्रदेश में हो रहा है. बदायूँ में दो दलित लड़कियों को जिस तरह से बलात्कार के बाद नृशंस तरीक़े से पेड़ पर लटका दिया गया, वह न सिर्फ शर्मनाक और दहलानेवाला है बल्कि ख़ुद मुख्यमंत्री ने जिस असंवेदनशील तरीक़े से एक महिला पत्रकार को जवाब दिया, वह बताता है कि ये घटनाएँ क्यों हो रही हैं?
याद कीजिए, चुनाव प्रचार के दौरान ख़ुद मुलायम सिंह ने बलात्कार क़ानून में बदलाव की यह कहते हुए वकालत की थी कि बच्चों से ग़लतियाँ हो जातीं हैं.
याद कीजिए, चुनाव प्रचार के दौरान ख़ुद मुलायम सिंह ने बलात्कार क़ानून में बदलाव की यह कहते हुए वकालत की थी कि बच्चों से ग़लतियाँ हो जातीं हैं.
साफ़ है कि सपा की राजनीति और सोच में वह समस्या है जिससे जातिवादी दबंगों-अपराधियों का हौसला बढ़ता है, पुलिस लाचार हो जाती है और जाति और क्षेत्र देखकर व्यवहार करती है और सरकार आँख बंदकर सोई रहती है.
बदायूँ में दलित लड़कियों के साथ जिस तरह का नृशंस और मध्ययुगीन व्यवहार हुआ है, वह अपवाद नहीं है
और न ही कुछ दबंगों का अपराध या ग़लती है बल्कि दलितों के साथ होनेवाले सामंती ज़ुल्मों के अंतहीन दुखांत का हिस्सा है.
नई बात सिर्फ यह है कि कल तक दलितों पर सामंती ज़ुल्म और बलात्कार की अगुवाई सवर्ण दबंग/गुंडे कर रहे थे, आज सत्ता मिलने के बाद इस क़तार में मध्यवर्ती जातियों के दबंग और लफ़ंगे भी शामिल हो गए हैं.
बदायूँ में दलित लड़कियों के साथ जिस तरह का नृशंस और मध्ययुगीन व्यवहार हुआ है, वह अपवाद नहीं है
और न ही कुछ दबंगों का अपराध या ग़लती है बल्कि दलितों के साथ होनेवाले सामंती ज़ुल्मों के अंतहीन दुखांत का हिस्सा है.
नई बात सिर्फ यह है कि कल तक दलितों पर सामंती ज़ुल्म और बलात्कार की अगुवाई सवर्ण दबंग/गुंडे कर रहे थे, आज सत्ता मिलने के बाद इस क़तार में मध्यवर्ती जातियों के दबंग और लफ़ंगे भी शामिल हो गए हैं.
मुलायम सिंह के कभी-कभी ग़लती करनेवाले बच्चे यही हैं. अफ़सोस यह है कि यह सरकार ख़ुद को लोहिया, जयप्रकाश और नरेंद्रदेव के समाजवादी राजनीति की वारिस बताती है. अफ़सोस अखिलेश यादव के लिए होता है जिनसे लोगों को बहुत उम्मीदें थीं लेकिन वे उम्मीदें दो साल के अंदर ही धूसरित होती दिख रही हैं. लेकिन इसके लिए कोई और नहीं बल्कि वे ख़ुद, उनका परिवार और पार्टीगण ज़िम्मेदार हैं.
कहने की ज़रूरत नहीं है कि अखिलेश यादव सरकार की नाकामियां और ग़लतियाँ राज्य में भाजपा की पुनर्वापसी के लिए ज़मीन और रास्ता तैयार कर रही हैं.
एक सेक्युलर सरकार सांप्रदायिक ताक़तों के लिए कैसे जगह बनाती है, इसका एक और उदाहरण उत्तर प्रदेश में देखा जा सकता है.
अगर ऐसा नहीं होता तो क्या कोई सरकार सिर्फ चुनाव में हार से बौखलाकर प्रदेश की जनता को सबक़ सिखाने और घंटों बिजली कटौती का फ़ैसला करती?
एक सेक्युलर सरकार सांप्रदायिक ताक़तों के लिए कैसे जगह बनाती है, इसका एक और उदाहरण उत्तर प्रदेश में देखा जा सकता है.
अगर ऐसा नहीं होता तो क्या कोई सरकार सिर्फ चुनाव में हार से बौखलाकर प्रदेश की जनता को सबक़ सिखाने और घंटों बिजली कटौती का फ़ैसला करती?
लेकिन कोई क्या करे जब सरकार अपने पैर पर इसलिए कुल्हाड़ी मारने पर उतारू हो कि इससे उन लोगों को भी दर्द होगा जिन्होंने उन्हें वोट नहीं दिया.
अफसोस दूसरे के दुख में मज़ा लेने की यह राजनीति अखिलेश यादव और सपा को बहुत दूर तक नहीं ले जा पाएगी. वह सिर्फ सैफ़ई और मैनपुरी तक सीमित रह जाएगी, जैसाकि इन चुनावों में हुआ.
अखिलेश सरकार के रंग-ढंग जल्दी नहीं बदले तो उसके लिए कार्यकाल पूरा करना भी मुश्किल हो जाएगा। उनका समय तेजी से खत्म हो रहा है लेकिन सपा नेतृत्व इस मुगालते में है कि अभी उसके तीन साल बचे हुए हैं।
उन्हें अंदाज़ा नहीं है कि जिस राजनीतिक ढलान पर वे तेजी से फिसल रहे हैं, वहां से उन्हें रसातल में पहुँचने में
देर नहीं लगेगी। वैसे अभी भी मौका है लेकिन सरकार के तौर-तरीकों से लगता नहीं है कि वह इसका इस्तेमाल कर पाएगी।
उसने लगता है कि उत्तर प्रदेश तश्तरी में रखकर भाजपा को देने का फैसला कर लिया है. प्रदेश में भारी जीत से उत्साहित भाजपा अखिलेश सरकार की छोटी-बड़ी गलतियों को मुद्दा बनाकर सड़क पर उतर रही है. वह सरकार को चैन से नहीं रहने देगी। केंद्र की सरकार भी सपा सरकार को घेरने और उसे परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी।
दूसरी ओर, नौकरशाही भी हवा का रुख भांपकर हाथ खड़े करने लगेगी और उससे काम करना मुश्किल होता जाएगा। वह सरकार को मुश्किल में डालने के लिए ख़बरें भी लीक करेगी। ऐसी हालत में अखिलेश सरकार एक 'लैम-डक' सरकार बन जाने की आशंका दिन पर दिन बढ़ती जा रही है.
अफसोस दूसरे के दुख में मज़ा लेने की यह राजनीति अखिलेश यादव और सपा को बहुत दूर तक नहीं ले जा पाएगी. वह सिर्फ सैफ़ई और मैनपुरी तक सीमित रह जाएगी, जैसाकि इन चुनावों में हुआ.
अखिलेश सरकार के रंग-ढंग जल्दी नहीं बदले तो उसके लिए कार्यकाल पूरा करना भी मुश्किल हो जाएगा। उनका समय तेजी से खत्म हो रहा है लेकिन सपा नेतृत्व इस मुगालते में है कि अभी उसके तीन साल बचे हुए हैं।
उन्हें अंदाज़ा नहीं है कि जिस राजनीतिक ढलान पर वे तेजी से फिसल रहे हैं, वहां से उन्हें रसातल में पहुँचने में
देर नहीं लगेगी। वैसे अभी भी मौका है लेकिन सरकार के तौर-तरीकों से लगता नहीं है कि वह इसका इस्तेमाल कर पाएगी।
उसने लगता है कि उत्तर प्रदेश तश्तरी में रखकर भाजपा को देने का फैसला कर लिया है. प्रदेश में भारी जीत से उत्साहित भाजपा अखिलेश सरकार की छोटी-बड़ी गलतियों को मुद्दा बनाकर सड़क पर उतर रही है. वह सरकार को चैन से नहीं रहने देगी। केंद्र की सरकार भी सपा सरकार को घेरने और उसे परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी।
दूसरी ओर, नौकरशाही भी हवा का रुख भांपकर हाथ खड़े करने लगेगी और उससे काम करना मुश्किल होता जाएगा। वह सरकार को मुश्किल में डालने के लिए ख़बरें भी लीक करेगी। ऐसी हालत में अखिलेश सरकार एक 'लैम-डक' सरकार बन जाने की आशंका दिन पर दिन बढ़ती जा रही है.