खुद को ‘बापू’ और ‘संत’ कहनेवाले आशाराम अपने एक भक्त की बेटी के साथ
यौन दुर्व्यवहार के आरोप में जेल पहुँच गए हैं. ये वही आशाराम हैं जिन्होंने पिछले
साल दिल्ली में १६ दिसंबर की बर्बर बलात्कार की घटना के बाद महिलाओं को भारतीय
संस्कृति के पालन का ‘उपदेश’ देते हुए कहा था कि, ‘अगर वह लड़की बलात्कारियों को
भैय्या कहके बुलाती तो उसके साथ बलात्कार नहीं होता.’ हालाँकि आशाराम और उनके
आश्रम पर पहले भी ऐसे आरोप लगे हैं लेकिन वे हर बार बच निकले.
इस बार भी गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने सभी पैंतरे आजमाए. उनके खुले-छिपे
समर्थकों ने भी ‘बापू’ को बचाने के लिए पत्रकारों को पीटने से लेकर उपद्रव करने तक
और इसे हिंदू धर्म पर हमला बताने तक, क्या कुछ नहीं किया लेकिन आशाराम बच नहीं पाए. निस्संदेह इसका श्रेय काफी हद तक चैनलों और अखबारों को जाता है. पुलिस-प्रशासन और राज्य सरकार पर दबाव बनाने के लिए कुछ असहमतियों के बावजूद न्यूज मीडिया खासकर चैनलों की आक्रामक कवरेज की प्रशंसा करनी पड़ेगी.
इस कवरेज का कारण भले ही इस मामले के साथ जुड़ी सनसनी, विवाद और उससे मिलनेवाली टीआरपी रही हो लेकिन यह भी सच है कि अगर चैनलों ने इसे मुद्दा नहीं बनाया होता और आशाराम के पिछले कारनामों की पोल नहीं खोली होती (‘आजतक’ का स्टिंग आपरेशन) तो ‘बापू’ एक बार फिर पुलिस को ठेंगा दिखाते हुए मजे में घूम रहे होते.
लेकिन आशाराम अकेले नहीं हैं. धर्म का कारोबार, लोगों की आस्था से
खिलवाड़ करनेवाले और धर्म की आड़ में गैर-कानूनी कामों में लगे उन जैसे बहुतेरे संत,
बापू, स्वामी, महाराज, श्री-श्री और मौलवी-खादिम हैं जो धड़ल्ले से लोगों को बेवकूफ
बनाने और कानून की आँखों में धूल झोंकने में लगे हुए हैं.
अफ़सोस की बात यह है कि
इनमें से कई न्यूज मीडिया और चैनलों के बनाए और चढाये हुए हैं. इनमें से कई अपने
संदिग्ध कारनामों के बावजूद न्यूज चैनलों पर चमक रहे हैं और सुबह-सवेरे उनके उपदेश
अहर्निश जारी हैं. जैसे विवादों और आलोचनाओं के बावजूद निर्मल बाबा की ‘कृपा’ कई
चैनलों पर बरस रही है.
यही नहीं, चैनलों पर खूब लोकप्रिय एक योगगुरु स्वामी तो योग से इतर
सभी विषयों, यहाँ तक कि देश की अर्थनीति-विदेशनीति पर भी बोलते दिख जाएंगे. चैनल
उनके ‘एक्सक्लूसिव’ इंटरव्यू दिखाने के लिए लाइन लगाए रहते हैं. हैरानी की बात नहीं है कि आशाराम के खिलाफ अभियान चलानेवाले चैनलों में से कई उनके ‘एक्सक्लूसिव’ इंटरव्यू दिखाने में भी एक-दूसरे से होड़ कर रहे थे. क्या पता वे पत्रकारीय संतुलन का पालन करने की कोशिश कर रहे हों! शायद इसी संतुलन धर्म के तहत वे आज भी पूरी आस्था से अंधविश्वास बढ़ानेवाले कार्यक्रम और रिपोर्टें दिखाते रहते हैं.
चैनलों पर ज्योतिष और दैनिक भाग्य बताने वाले कार्यक्रम भी दिखाए जा
रहे हैं और अखबारों में ज्योतिष-भाग्यफल के अलावा विज्ञापनों में काला जादू, भूत
भगाने, वशीकरण से लेकर लंबे होने के नुस्खे खुलेआम बेचे जा रहे हैं.
हालाँकि दवा
और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) कानून’१९५४ के मुताबिक, ऐसे विज्ञापन
गैर-कानूनी हैं लेकिन कुछ चैनलों और खासकर हिंदी और भाषाई अखबारों में क्लासिफाइड
विज्ञापनों में उनकी भरमार रहती है. फिर क्या चैनल आशाराम के मामले में नाख़ून
कटाकर शहीद बनने की कोशिश कर रहे हैं?
लगता तो ऐसा ही है. असली बापू ने कहा था कि अपराधी नहीं, अपराध से
घृणा करो. लेकिन लगता है कि आशाराम के खिलाफ मुहिम चलानेवाला न्यूज मीडिया अपराधी
से घृणा और अपराध के महिमामंडन में यकीन करता है. ('तहलका' के 30 सितम्बर के अंक में प्रकाशित स्तम्भ)
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