सोमवार, मार्च 02, 2009

26/11 के जख्म को हरा रखने के फायदे

आनंद प्रधान
मुंबई पर 26/11 के आतंकवादी हमले के ढाई महीनों बाद एक बार फिर प्रमुख समाचार चैनलों पर हमले के दौरान आतंकवादियों और उनके कथित आकाओं के बीच हुई बातचीत के आडियो टेप से लेकर होटलों में सी सी टी वी में रिकार्ड वीडियो फुटेज दिखाने और सुनाने की होड़ सी शुरू हो गयी है। सबसे तेज चैनल ने सबसे पहले प्राइम टाइम में घंटों आतंकवादियों और उनके बाहर बैठे साथियों की टेलीफोन पर हुई बातचीत का टेप सुनाया। आदत के अनुसार उसने जहां तक संभव हो सकता था, इस एक्सक्लूसिव प्रस्तुति को सनसनीखेज और सांस रोकनेवाले खुलासे की तरह पेश किया। इसके बाद पिछले कुछ महीनों से गिरते टीआरपी से परेशान "देश के सर्वश्रेष्ठ चैनल" ने ताल ठोंकते हुए "आडियो नहीं, मुंबई पर हमला करनेवाले आतंकवादियों की जिंदा तस्वीरें टी वी पर पहली बार" दिखाते हुए "पाकिस्तान के मांओं-बापों, चाचा-चाचियों और भाई-बहनों" को उन्हें पहचानने की चुनौती दे डाली। जाहिर है कि इसके बाद श्खबर हर कीमत परश् का दावा करनेवाला चैनल भी कैसे चुप रह सकता था? उसने भी ट्राइडेंट होटल में घुसे जिंदा आतंकवादियों के वीडियो वैसे ही अंदाज में "एक्सक्लूसिव" दिखाए। इसके साथ ही, समाचार चैनलों पर मुंबई पर आतंकवादी हमलों "एक्सक्लूसिव" दिखाने-सुनाने और बताने का एक सिलसिला सा शुरू हो गया है।
सवाल उठता है कि मुंबई पर आतंकवादी हमले के दस सप्ताह बाद ये आॅडियो टेप और वीडियो क्लिप क्यों दिखाए-सुनाए और बताए जा रहे हैं? इन प्रमुख समाचार चैनलों को लगभग एक ही समय ये श् एक्सक्लूसिवश्आडियो/वीडियो टेप कौन मुहैया करा रहा है और उसका मकसद क्या है? इस सवाल का उत्तर जानने के लिए बहुत कयास लगाने की जरूरत नहीं है। ये चैनल चाहे जो दावे करें लेकिन सच यह है कि ये श्एक्सक्लूसिवश्टेप उन्हें पुलिस और खुफिया एजेंसियों के जरिए मुहैया करवाए जा रहे हैं। ऐसा सिर्फ पाकिस्तान के श्झूठश् का पर्दाफाश करने के लिए नहीं किया जा रहा है। इसकी बड़ी वजह कुछ और है।
दसअसल, चुनाव नजदीक हैं और यूपीए सरकार मुंबई हमले के जख्म को हरा रखकर उसकी राजनीतिक फसल काटने की कोशिश कर रही है। समाचार चैनल इसमें जाने-अनजाने इस्तेमाल हो रहे हैं। चैनलों और अखबारों में उबकाई की हद तक जिस तरह से रात-दिन पाकिस्तान की धुलाई के साथ-साथ अल कायदा, ओसामा और तालिबान को हौव्वा खड़ा किया जा रहा है, उससे न सिर्फ देश और आम आदमी के जरूरी मुद्दे और सवाल हाशिए पर चले गए हैं बल्कि यह आशंका बढ़ती जा रही है कि यूपीए खासकर कांग्रेस चुनावों में लोगों के डर को कैश कराने की तैयारी कर रही है। वह पाकिस्तान के खिलाफ एक सख्त और आक्रामक मुद्रा अपनाकर चैनलों द्वारा तैयार पाकिस्तान विरोधी भावनाओं को भुनाने की हरसंभव कोशिश कर रही है।
अफसोस की बात यह है कि चैनल और सरकार (राजनीतिक दल) दोनों आम लोगों की असुरक्षा और डर को अपने-अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। यह एक तरह का भयादोहन है। राजनीतिक दलों को इस खून का स्वाद बहुत पहले ही लग गया था, चैनलों को इसका स्वाद अब मिला है। शायद यही कारण है कि वे सरकार और राजनीतिक दलों की तुलना में पाकिस्तान/तालिबान/आतंकवाद/ जिहाद का नकली हौव्वा खड़ा करने और फिल्मी अंदाज में उसकी दैनिक पिटाई में कहीं ज्यादा उत्साह से जुटे हुए हैं।

1 टिप्पणी:

नीलोत्पल ने कहा…

I couldn't understand why would Congress do something as suicidal as this. Afterall these attacks took place during their regime. One would still understand if these motives were attributed to BJP. I believe its the competitive journalism at its worst.