मंगलवार, अप्रैल 08, 2008

मंत्रिमंडल में गिल, नींव गई हिल...

मनोहर सिंह गिल को केंद्रीय मंत्री बनाने के यूपीए सरकार के फैसले पर आश्चर्य से अधिक चिंता और अफसोस हो रहा है. ये ऐसा फैसला है जिससे ना सिर्फ गलत नजीर पड़ी है बल्कि संवैधानिक पदों के राजनीतिकरण की एक अस्वस्थ परंपरा की नींव पड़ गई है.
 
दरअसल, चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट, सीएजी, राज्यपाल, राष्ट्रपति, टीआरएआई जैसे रेगुलेटर के पदों पर बैठे लोगों से ना सिर्फ निष्पक्ष रहने की अपेक्षा की जाती है बल्कि निष्पक्षता दिखाने की भी उम्मीद की जाती है.
 
लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त रहे गिल का कांग्रेस कोटे से पहले राज्यसभा पहुंचना और अब मंत्री बनना इस कसौटी पर कहीं से भी खरा नहीं उतरता है. ये साफ तौर पर हितों के टकराव यानी "कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट" का मामला है.
 
ये सवाल जरूर उठेगा कि गिल को क्या ये इनाम चुनाव आयोग में कांग्रेस के हितों का ख्याल रखने के बदले में मिला है ?
 
हालांकि गिल ऐसे पहले उदाहरण नहीं हैं. उनसे पहले भी कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में जगन्नाथ मिश्रा को राहत देने वाले जज बहरूल इस्लाम को असम से पार्टी टिकट पर सांसद बनाया है. इन दिनों उत्तराखंड में इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज विजय बहुगुणा बड़े नेता हैं.
 
ऐसे ही परेशान करने वाले कई उदाहरण हैं. कांग्रेस ऐसे फैसलों के जरिए ही भाजपा को संविधान के साथ खेलने और मनमानी करने की छूट मिल जाती है.

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