ये उम्मीद के दिए हैं, इन्हें सलाम कीजिये
मेरे विद्यार्थी
अक्सर मुझे चौंकाते रहते हैं. आज दीपावली के दिन उन्होंने फिर मुझे चौंका दिया. वैसे
तो इस बार की दीपावली कुछ अवसाद और कुछ बेचैनी के बीच गुजर रही थी. लेकिन मेरे
विद्यार्थियों ने उसमें कुछ खुशी और उत्साह की वजहें जोड़ दीं. कहें कि उन्होंने
मेरी दीपावली बना दी है.
हुआ यह कि पिछले
सप्ताह गुरुवार को सुबह आई.आई.एम.सी में हिंदी पत्रकारिता की कक्षा में जाकर बैठा
और कुछ चर्चा शुरू करने की भूमिका बना ही रहा था कि कक्षा प्रतिनिधि आदर्श शुक्ल
धीरे से बगल में खड़े हो गए. फिर कुछ हिचकिचाते हुए आदर्श कान में फुसफुसाने लगे कि
सर, तरुणकान्त का सुझाव है कि क्यों न हम इस दीवाली अपनी खुशियों में से कुछ गरीब
बच्चों में भी बाँटें? आपस में कुछ पैसे इक्कट्ठा करें और उससे कुछ मिठाइयां और चाकलेट
आदि खरीदकर फुटपाथ पर रहनेवाले बच्चों के बीच बाँटें.
फिर पूरी क्लास में
इस प्रस्ताव पर चर्चा हुई और तुरंत सबकी सहमति बन गई. यह तय हुआ कि हर
छात्र/छात्रा अपनी मर्जी से जो दे सकते हैं और संकाय सदस्यों से भी जो मिले, उसे
जुटा कर थोड़ी खुशियाँ- मिठाइयों/चाकलेट/पटाखों उन बच्चों तक भी पहुंचाई जाए, जो
बिलकुल हाशिए पर हैं. उससे ज्यादा अच्छी बात यह हुई कि क्लास में उसके बाद यह
चर्चा भी हुई कि छात्र/छात्राएं उन गरीबों/हाशिए पर पड़े लोगों/बच्चों की मदद और
उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए स्थाई मदद कैसे करें?
यह भी बात हुई कि
दान देने और खुशियाँ बांटने के साथ-साथ पत्रकारिता के विद्यार्थी होने के नाते वे
उनकी परेशानियां, समस्याएं और मुद्दे उठाने में मदद करें. यह भी तय हुआ कि उनके
बीच नियमित तौर पर जाया जाए, उनकी तकलीफों और समस्याओं को समझने की कोशिश की जाए
और संभव हो तो राशन कार्ड बनवाने में आर.टी.आई आदि के जरिये मदद की जाए.
आई.आई.एम.सी के आसपास की कुछ झुग्गी बस्तियों के बारे में लैब जर्नल निकाला जाए,
अखबारों में लिखा जाए, कम्युनिटी रेडियो पर चर्चा की जाए और ब्लाग/फेसबुक आदि पर
उठाया जाए.
यह बात पिछले हप्ते
हुई और फिर शुक्रवार को संस्थान में दीपावली की छुट्टियाँ हो गईं. हालाँकि आदर्श ने
शुक्रवार को बताया कि वे लोग पैसे इक्कट्ठा कर रहे हैं और संस्थान के बाकी कोर्सेज
के विद्यार्थियों का भी सहयोग मिल रहा है. लेकिन फिर तीन दिन कुछ पता नहीं चला कि आगे
क्या हुआ?
आज दोपहर फेसबुक पर
कुछ तस्वीरें दिखीं और यह देखकर अच्छा लगा कि हिंदी पत्रकारिता के छात्र/छात्राओं-
आदर्श, आरती, कामिनी, आशा, सुमित और आनंद ने अपना वायदा निभाया. आज वे सब फुटपाथ
के उन बच्चों के बीच गए. उनके साथ दीपावली मनाई. लेकिन सबसे चौंकानेवाली बात यह
हुई कि वे अपने साथ गर्म कपड़े ले गए थे. उन्होंने इन बच्चों में जाड़ों के लिए गर्म
कपड़े भी बांटे. यह ख्याल उन्हें बाद में आया होगा. लेकिन अच्छा लगा कि उन्हें इन
गरीब बच्चों की असली तकलीफ का ध्यान आया.
शाबास मेरे दोस्तों.
सरोकार की पत्रकारिता यहीं से शुरू होती है. सरोकार की पत्रकारिता सिर्फ किताबों
और क्लास रूम की बहसों से नहीं बल्कि उन गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों के बीच जाने
और उनकी तकलीफों को समझने और उससे जुड़ने से आती और आगे बढ़ती है. जानता हूँ कि यह
सिर्फ शुरुआत है. लेकिन इस शुरुआत में उम्मीदों के दिए टिमटिमा उठे हैं.
आइये, इन विद्यार्थियों
को सलाम करें और कामना करें कि उनके अंदर यह सरोकार जीवित रहें, वे इसे आगे बढ़ाएं
और पत्रकारिता को नई धार दें.
3 टिप्पणियां:
खुशी की बात है सर| उम्मीद करता हूँ कि आगे भी इसी तरह खुशियाँ बाटते रहें| मैं भी इसका सहभागी बनूँ, इससे ज़्यादा खुशी की बात और क्या होगी|
दीपावली की शुभकामनाएं!
मुझे खुशी हैं की हम उनके चेहरे पर खुशी ला सके।
दीपावली में मैं घर पर था।भवानी शंकर मिश्र मेरे मित्र वर्धा से फ़ोन किया। मुझे बताया की आज आनंद सर ने आप की क्लास के बारे में लिखा है।आपलोगों ने अच्छी दीपावली मनायी।हिंदी पत्रकारिता के लोगो को उन्होंने साधुवाद दिया।
मुझे भी गर्व है इस सरोकार पर ।
दीपावली में मैं घर पर था।भवानी शंकर मिश्र मेरे मित्र वर्धा से फ़ोन किया। मुझे बताया की आज आनंद सर ने आप की क्लास के बारे में लिखा है।आपलोगों ने अच्छी दीपावली मनायी।हिंदी पत्रकारिता के लोगो को उन्होंने साधुवाद दिया।
मुझे भी गर्व है इस सरोकार पर ।
दीपावली में मैं घर पर था।भवानी शंकर मिश्र मेरे मित्र वर्धा से फ़ोन किया। मुझे बताया की आज आनंद सर ने आप की क्लास के बारे में लिखा है।आपलोगों ने अच्छी दीपावली मनायी।हिंदी पत्रकारिता के लोगो को उन्होंने साधुवाद दिया।
मुझे भी गर्व है इस सरोकार पर ।
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