गुरुवार, अप्रैल 23, 2009

उत्तरप्रदेश में दूसरे चरण का चुनाव : सपा बसपा के बीच तीखे मुकाबले में भाजपा का डब्बा गोल और कांग्रेस को है दुगुने की आस

आनंद प्रधान

उत्तरप्रदेश में दूसरे चरण के चुनाव में दांव पर लगी 17 सीटों भाजपा का डब्बा लगभग गोल है। पहले चरण में अपनी स्थिति बेहतर करती दिख रही भाजपा के लिए यह बहुत बड़ा झटका है। सभी 17 सीटों पर लड़ने के बावजूद वह सिर्फ नौ सीटों पर त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय लड़ाई में दिख रही है। इनमें से भी सिर्फ दो या तीन सीटों पर वह मुख्य लड़ाई में है। लेकिन इनमें से किसी भी सीट पर वह जीतती हुई नहीं दिखाई दे रही है। 2004 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा को इन 17 सीटों में से एक सीट मिली थी। पर वहां से जीते ब्रिज भूषण शरण सिंह समाजवादी पार्टी में चले गए।

भाजपा की तुलना में इस चरण में कांग्रेस कहीं बेहतर प्रदर्शन करती हुई दिख रही है। पन्द्रह सीटों पर लड़ रही कांग्रेस के उम्मीदवार नौ सीटों पर सीधे या त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय मुकाबले में मजबूती से लड़ रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को 17 सीटों में सिर्फ एक सीट-अमेठी में कामयाबी मिली थी। कांग्रेस इसबार अमेठी की परम्परागत सीट को बरकरार रखते हुए डुमरियागजं (जगदंबिका पाल), सुल्तानपुर (डॉ।संजय सिंह), प्रतापगढ़ (राजकुमारी रत्ना सिंह) गोंडा (बेनी प्रसाद वर्मा), फूलपुर (धर्मराज सिंह पटेल) और भदोही (सूर्यमणि तिवारी ) में बेहतर स्थिति में दिखाई दे रही है। कांग्रेस इनमें से दो सीटें जीत सकती है।

लेकिन पूर्वांचल, बुंदेलखंड और अवध क्षेत्र की इन मिली-जुली सीटों पर जहां अत्यधिक गरीबी, बीमारी, बेकारी और पिछड़ापन है, वहां राजनीति और चुनाव बिना किसी बडे सामाजिक-आर्थिक मुद्दे के हो रही है। यहां लडाई मुद्दों की नही, कुछ बडे़ नेताओं के राजनीतिक वर्चस्व को बनाये रखने के लिए जातिगत समीकरणों के आधार लडी जा रही है। लेकिन इस चुनाव में जातिगत समीकरणों की सीमाएं भी खुलकर सामने आ गई हैं। यही कारण है कि सभी दलों को अपने-अपने जातिगत खांचे से बाहर देखना पड़ रहा है।

बहरहाल, इस इलाके में असली मुकाबला सपा और बसपा के बीच हो रहा है। पिछले चुनावों में सपा को 10 और बसपा को छह सीटें मिली थीं। सपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपनी मौजूदा सीटों को बचाने की है। दूसरी ओर, बसपा को इस चरण से काफी उम्मीदें हैं। मुख्यमंत्री मायावती ने अपनी सीटें बढ़ाने के लिए सोशल इंजीनियरिंग से लेकर बाहुबलियों को टिकट देने तक सभी दांव आजमा लिए हैं। बसपा ने 17 सीटों में से 9 पर ब्राह्मण, 3 पर मुसलमान और दो सीटों पर ठाकुर उम्मीदवार उतारकर ब्राह्मणों, मुसलमानों और ठाकुरों को अपनी सर्वजन राजनीति में खींचने की पूरी कोशिश की है।

सपा ने इसके जबाब में ठाकुर, यादव, अन्य पिछड़ी जातियांे और मुसलमानों का राजनैतिक रसायन बनाने की कोशिश की है। सपा ने अमेठी से अपना प्रत्याशी नहीं खड़ा किया है। बाकी 16 सीटों में चार पर ठाकुर, तीन पर यादव, तीन पर अन्य पिछड़ी जातियों, दो पर ब्राह्मण और एक-एक सीट पर मुसलमान, सवर्ण (भूमिहार) और वैश्य समुदाय के प्रत्याशी उतारकर अपने मूल सामाजिक आधार को बनाए रखते हुए उसे फैलाने पर जोर दिया है। सपा को इसका फायदा मिल रहा है। वह सभी 16 सीटों पर न सिर्फ मुख्य लड़ाई में है बल्कि 8 से 9 सीटें जीतने की स्थिति में है।

असल में, इस इलाके में सपा को बसपा की रणनीतिक गलतियों का फायदा मिल रहा है। सबसे ताजा मामला है जौनपुर में इंडियन जस्टिस पार्टी के प्रत्याशी बहादुर सोनकर की रहस्यमय मौत का जिसके बारे में सोनकर की पत्नी के साथ-साथ इंजपा के नेता उदित राज का आरोप है कि सोनकर की हत्या करके उन्हें पेड़ पर लटकाया गया और इसके पीछे बसपा प्रत्याशी धनंजय सिंह और कुछ पुलिस अधिकारियों का हाथ है। जौनपुर के बसपा प्रत्याशी धनंजय सिंह का आपराधिक इतिहास रहा है। यह भी किसी से छुपा नहीं है कि वे अपने बाहुबल के भरोसे चुनाव जीतना चाहते हैं। लेकिन सोनकर की मौत ने उनके साथ-साथ बसपा का भी खेल बिगाड़ दिया है।

सोनकर की मौत का सीधा असर आसपास की सीटों-इलाहाबाद, भदोही, फूलपुर,कौशांबी और प्रतापगढ़ पर भी पड़ा है। खटिक समाज इस हत्या की प्रतिक्रिया में वोट डालने जा रहा है। इसका सीधा फायदा सपा को हो रहा है। बसपा ने बाहुबलियों को जिस उदारता से टिकट दिया है, उसकी उसे कीमत चुकानी पड़ रही है। पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान सपा के गुंडाराज़ के खिलाफ बसपा को जिन सवर्णों और पिछड़ी जातियों के वोट प्रतिक्रिया में मिल गए थे, मायावती ने उन्हीं बाहुबलियों को बसपा का झंडा और टिकट थमाकर वह गुडविल गंवा दिया है।

यही नहीं, बसपा ने सर्वजन की राजनीति जिसकी जितनी तैयारी, उसे उतनी हिस्सेदारी के नाम पर जिस तरह से ब्राह्मणों पर अत्यधिक भरोसा किया है और टिकटों के बंटवारे में अति पिछड़ी जातियों की दावेदारी की अनदेखी की है, उसे इसका भी खामियाजा उठाना पड़ सकता है। देर से ही सही, मायावती को इस चूक का अहसास हो रहा है। वे इसकी भरपाई की कोशिश कर रही हैं। दूसरे चरण के मतदान से ठीक पहले मायावती ने इलाहाबाद की रैली में 16 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने के वायदे को दोहराकर नुकसान कुछ कम करने की कोशिश की है लेकिन इस बात के आसार कम हैं कि ये जातियां बसपा के साथ उसी तरह खड़ी रहेंगी, जैसे विधानसभा चुनावों के दौरान थीं।

सपा और बसपा के बीच तीखे मुकाबले में इन अति पिछड़ी जातियों का राजनीतिक महत्त्व बहुत बढ़ गया है। इनमें से कई अति पिछड़ी जातियों-राजभर, बिंद, मल्लाह आदि की अपनी छोटी-छोटी पार्टियां बन गयी हैं जो एक और ताकतवर पिछड़ी जाति-कुर्मियों की पार्टी अपना दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही हैं। अपना दल के टिकट पर फूलपुर से उसके नेता सोनेलाल पटेल ओर प्रतापगढ़ से बाहुबली अतीक अहमद के अलावा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और प्रगतिशील मानव समाज पार्टी के प्रत्याशी अधिकांश सीटों पर बसपा और कुछ सीटों पर सपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

इसी तरह, सपा को सबसे अधिक नुकसान मुस्लिम मतों के बिखराव के कारण हो रहा है। सपा अगर मुस्लिम मतों को पिछले चुनाव की तरह अपने साथ बांधे रखने में कामयाब रहती तो वह 17 में से 10 से 12 सीटें आसानी से जीत जाती लेकिन मुलायम सिंह के कल्याण सिंह से हाथ मिला लेने और पूर्वांचल में मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी राजनीतिक राह को लेकर मची उथलपुथल के कारण मुस्लिम मतों में बिखराव हो रहा है। इस इलाके की कई सीटों -संत कबीरनगर, बस्ती, अम्बेडकरनगर, फैजाबाद में डा। अयूब की पीस पार्टी और जौनपुर में उलेमा कांउसिल के प्रत्याशी मुस्लिम मतों का बंटवारा कर रहे हैं। कुछ सीटों पर मुस्लिम वोट कांग्रेस को और कुछ सीटों पर बसपा के साथ भी जाएंगे।

इसके बावजूद दूसरे चरण के चुनाव को लेकर सबसे अधिक आशावान सपा ही है । सपा की उम्मीद बसपा विरोधी वोटों के धु्रवीकरण पर टिकी हुई है। सपा पूरी कोशिश कर रही है कि बसपा को छोड़कर जा रहे सवर्ण वोटों का एक हिस्सा उसके साथ आ जाए। इक्का-दुक्का सीटों पर ऐसा रूझान दिख भी रहा है। यह स्थानीय अंतर्विरोधों के कारण हो रहा है। लेकिन बसपा छोड़कर जा रहे सवर्ण वोटों का सबसे अधिक फायदा कांग्रेस को और कुछ फायदा भाजपा को हो रहा है।

लेकिन दूसरे चरण की सबसे खास बात कांग्रेस का अपने दम पर खड़ा हो जाना है। हालांकि यह कांग्रेस पार्टी से अधिक उसके स्थानीय उम्मीदवारों जैसे डुमरियागंज में जगदंबिका पाल, गोंडा में बेनी प्रसाद वर्मा, सुल्तानपुर में डा. संजय सिंह, प्रतापगढ़ में राजकुमारी रत्ना सिंह, फूलपुर में धर्मराज सिंह पटेल और कौशांबी में रामनिहोर राकेश का पुराना नाम, उनका काम और मेहनत है। इस कारण कांग्रेस के वोट तो निश्चय ही बढेंगे लेकिन अमेठी के अलावा सीटें शायद एक या दो ही मिलें। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा बहुत कमजोर और लस्त-पस्त पड़ा है।

1 टिप्पणी:

dard ka rista ने कहा…

waakai aap ka jo bhi anlyasis hai doosrey charan ko ley kar wah ek dam sahi hai...