आनंद प्रधान
पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक गोरखपुर की पहचान मौजूदा सांसद योगी आदित्यनाथ और उनकी हिन्दू युवा वाहिनी के क्रियाकलापों के कारण ‘हिन्दुत्व की प्रयोगशाला’ के रूप में होने लगी है। योगी और उनकी वाहिनी गोरखपुर और उसके आसपास के जिलों को गुजरात की तर्ज पर हिन्दुत्व का गढ़ बनाने में जुटे हैं। उनके उग्र, आक्रामक और हिंसक तौर तरीकों के कारण गोरखपुर और उसके आसपास के जिलों में मुस्लिम समुदाय न सिर्फ एक स्थायी भय और आतंक के बीच जीने को मजबूर है बल्कि उसका सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अलगाव और अकेलापन भी बढ़ रहा है।
इस शहर और आसपास के इलाकों में योगी आदित्यनाथ ने खुद को ‘हिंदूओं के रक्षक’ के बतौर स्थापित करने की कोशिश मे मामूली विवादों को भी तिल का ताड़ बनाने और काल्पनिक विवाद खड़ा करके मुसलमानों पर संगठित हमले करने, उनका सामाजिक-आर्थिक बायकाॅट करने और सार्वजनिक अपमान करने की राजनीति को आगे बढ़ाया है। पिछले डेढ़ दशकों में इस उग्र और हिंसक योगी मार्का हिन्दुत्व की राजनीति के कारण शहर में कई बार दंगे भड़क गए या सांप्रदायिक तनाव। झड़पें हुईं और ग्रामीण इलाकों में गरीब मुस्लिम परिवारों के घर जलाने और हत्या की घटनाएं हुई हैं।
योगी आदित्यनाथ के आक्रामक हिन्दुत्व और इस इलाके को ‘गुजरात’ बनाने की इस अहर्निश मुहिम के कारण शहर खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में एक अघोषित सा तनाव और भय फैला रहता है। राज्य और प्रशासनिक मशीनरी ने योगी के इस अभियान के आगे न सिर्फ घुटने टेक दिए हैं बल्कि एक तरह की मौन और कई बार खुली सहमति दे रखी है। अवामी कांउसिल फॉर डेमोक्रेसी एंड पीस के महासचिव असद हयात के अनुसार यहां स्थानीय प्रशासन बिल्कुल विफल और योगीमय है। उनके जैसे और कई लोगों को लगता है कि योगी को प्रशासन ही भिंडरावाले बना रहा है।
स्थानीय प्रशासन के एकतरफा और पक्षपाती रवैये का हाल यह है कि जनवरी’ 2007 के दंगों की एकपक्षीय एफआईआर के बरक्स दूसरी एफआईआर लिखवाने के लिए असद हयात जैसों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की शरण में जाना पड़ा तब जाकर कोर्ट के निर्देश पर एफआईआर लिखी गयी। इस सबसे इस इलाके के मुस्लिम समुदाय में हताशा बढ़ती जा रही है। लेकिन योगी आदित्यनाथ के तौर तरीकों पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। असल में, गोरखपुर की सामाजिक-आर्थिक संरचना ऐसी है जिसमें योगी आदित्यनाथ की हिन्दुत्व की राजनीति बिना साम्प्रदायिक विभाजन और धु्रवीकरण के नहीं चल सकती है।
यही कारण है कि योगी इस चुनाव में भी साम्प्रदायिक धु्रवीकरण करने में जुटे हुए हैं। वे अपने उत्तेजक भाषणों के लिए जाने जाते हैं। इस कारण चुनाव आयोग के निर्देश पर चुनावी सभाओं में उनके भाषणों की रिकार्डिंग हो रही है। इससे उनकी जुबान थोड़ी नरम हुई है लेकिन थीम नहीं बदली है। जैसे, अपनी सभाओं में वे कह रहे हैं कि अगर वे जीते और भाजपा की सरकार बनी तो उलेमा कांउसिल की ट्रेन अगली बार दिल्ली और लखनऊ नहीं जा पाएगी। अगर वह जाने की कोशिश करेगी तो उसे दिल्ली नहीं, कराची भेजा जाएगा।
योगी आदित्यनाथ की गरम जुबान की भरपाई उनके मंचों पर मौजूद भाजपा खासकर हिंदू युवा वाहिनी के नेता अपने भड़काऊ और अश्लील भाषणों और नारों से कर दे रहे हैं। इन भाषणों और नारों का मुकाबला भाजपा के नए हिंदू ध्वजाधारी नेता वरूण गांधी भी नहीं कर सकते हैं। लेकिन चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन इन सबसे आंखें मूंदे हुए है। दूसरी ओर, योगी आदित्यनाथ इस बार पूर्वांचल के इस इलाके में भाजपा के स्टार प्रचारक हैं। भाजपा ने उन्हें हेलीकाप्टर दे रखा है जिससे वे आसपास के जिलों में सांप्रदायिक धु्रवीकरण तेज करने और भाजपा के राजनीतिक ग्राफ को उठाने के लिए तूफानी दौरे और प्रचार कर रहे हैं।
इन सबके बीच योगी का राजनीतिक कद जिस तरह से बढ़ा है, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभाओं होनेवाले भाषणों में लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री और योगी को अगला गृहमंत्री बनाने के लिए वोट मांगा जा रहा है। पूर्वांचल में भाजपा के अंदर योगी का लगभग एकछत्र राज कायम हो गया है। उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में इस इलाके में भाजपा के प्रभावशाली नेताओं को राजनीतिक रूप से या तो हाशिए पर ढकेल दिया है या अपनी शरण में आने के लिए मजबूर कर दिया है। योगी के समर्थकों का प्रिय नारा है- ‘गोरखपुर में रहना है तो योगी-योगी कहना होगा।’
लेकिन योगी के इस उभार और पूर्वांचल को गुजरात बनाने की शुरूआत गोरखपुर से करने के अभियान के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि गोरखपुर, गुजरात नहीं है। गोरखपुर और पूर्वांचल की गरीबी और पिछड़ेपन के सवाल बने हुए हैं। हालांकि गोरखपुर पूर्वांचल का एक प्रमुख व्यापारिक और सेवा क्षेत्र आधारित अर्थव्यवस्था का केंद्र है लेकिन एनएसएसओ के 61वें दौर के सर्वेक्षण के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में 56.5 प्रतिशत और शहर में 54.8 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर कर रही है। ‘इंडिया टुडे’ के लिए इंडिकस एनालिटिक्स के एक ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक गोरखपुर सामाजिक आर्थिक सूचकांक और आधारभूत ढांचे के मामले में देश के सौ सबसे बदतरीन संसदीय क्षेत्रों की सूची में 72वें स्थान पर है। पानी में आर्सेनिक और इंसेफेलाइटिस का कहर एक स्थायी त्रासदी है।
गोरखपुर का यह हाल हिन्दुत्व की राजनीति के लिए एक बड़ा सवाल बन गया है। योगी इसे ‘हिन्दुत्व और विकास’ के नारे से हल करना चाहते हैं। गोरखपुर के जवाब के लिए 16 मई का इंतजार करना होगा।
4 टिप्पणियां:
अच्छा आलेख!
वर्ड वेरीफिकेशन हटाएँ। इस से टिप्पणीकार को परेशानी होती है।
पश्चिम बंगाल और केरल में कौन सी प्रयोगशाला चल रही है जरा वह भी बता दें. पूर्वांचल में मुसलमान भयभीत हैं लेकिन मजे से नोटों की तस्करी कर रहें हैं, भारत से गाडिया चुरा कर नेपाल भेज रहे हैं और नेपाल के मार्फ़त पाकिस्तान से मादक द्रव्य मंगा रहे हैं, हथियारों की खेप मंगा रहे हैं. पेट्रो डालर का उपयोग कर मस्जिद और मदरसों का जाल फैला रहें हैं, मुस्लिम बहुल गावों में हिन्दुओं को खदेड़ रहे हैं. झूठ एक हद तक ही पचता है. मैं स्वयं भी पूर्वांचल के उसी इलाके का रहने वाला हूँ जहाँ के विषय में आप दुष्प्रचार कर रहे हैं और सच्चाई से पूरी तरह वाकिफ हूँ. शर्म कीजिये........ और झूठ का पुलिंदा समेटिये....
भई काहे के योगी और काहे के नाथ....ये धर्म के ठेकेदार सिर्फ अपने शूद्र स्वार्थ पूर्ती हेतु इस देश को गर्त में डुबोने को तैयार बैठे हैं.संतों के नाम पर बट्टा है ये लोग.
योगी के आन्दोलन से पहले 42गांवां की स्थिति की भी चर्चा कर देते तो अच्छा रहता। घूमते-घूमते कहीं पहुंच जाना और अंट-शंट बक देना अलग बात है। 42गांवां अबकी से पहले योगी के ही संसदीय क्षेत्र में श्यामदेउरवा विधानसभा में था। यहां कोई कमजोर हिन्दु शादी के दिन बाजा नहीं बजा सकता था।
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