मंगलवार, जनवरी 10, 2012

भ्रष्ट और अपराधी तत्वों की आखिरी शरणस्थली बन गई है भाजपा

दागियों पर पर्दा डालने के लिए राष्ट्रवाद और देशभक्ति को आड़ की तरह इस्तेमाल करती है भाजपा  

दूसरी और आखिरी किस्त

असल में, भाजपा की राजनीति में बाबू सिंह कुशवाहा प्रकरण कोई पहली घटना नहीं है और न ही यह कोई अपवाद है. पार्टी की राजनीति को नजदीक से देखने वाले जानते हैं कि ९० के दशक में कांग्रेसी नेता और तत्कालीन संचार मंत्री सुखराम के भ्रष्टाचार के आरोपों में पकडे जाने के मुद्दे पर कार्रवाई की मांग को लेकर संसद ठप्प कर देनेवाली भाजपा को हिमाचल प्रदेश में सत्ता के लिए सुखराम के साथ हाथ मिलाने में कोई शर्म नहीं आई.

इसी तरह, यू.पी.ए सरकार के मंत्री शिबू सोरेन को दागी बताकर मंत्रिमंडल से निकलने की मांग को लेकर भाजपा ने संसद के अंदर और बाहर खूब हंगामा किया लेकिन झारखण्ड में जोड़तोड़ करके उन्हीं शिबू सोरेन के साथ सत्ता की मलाई चाट रही है.


यही नहीं, भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पहले कल्याण सिंह के नेतृत्व में दलबदलुओं, अपराधियों, भ्रष्टाचारियों और दागियों के साथ सबसे बड़ा मंत्रिमंडल बनाके और फिर मायावती के नेतृत्व में बसपा के साथ सत्ता की साझेदारी करके राजनीतिक अवसरवाद का नया रिकार्ड बनाया. भाजपा के छोटे से राजनीतिक इतिहास में ऐसे अवसरवादी राजनीतिक समझौतों की एक पूरी श्रृंखला है.

कर्नाटक में पार्टी ने खनन माफिया के बतौर कुख्यात रेड्डी बंधुओं की बगावत के बाद उनके आगे घुटने टेक दिए और बाद में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में फंसे येद्दियुरप्पा ने भी भाजपा नेतृत्व की पूरी फजीहत कराने के बाद ही इस्तीफा दिया.

सच पूछिए तो आज भ्रष्टाचारियों, अपराधियों और धनबलियों को राजनीतिक संरक्षण और प्रोत्साहन देने में भाजपा किसी भी मध्यमार्गी पार्टी से पीछे नहीं नहीं है. किसी भी अन्य पार्टी की तरह भाजपा में भी सत्ता के दलालों, भ्रष्ट और लुटेरे ठेकेदारों/कंपनियों, माफियाओं और अवसरवादी तत्वों की तूती बोल रही है.

पार्टी की राज्य इकाइयों से लेकर राष्ट्रीय नेतृत्व में भी ऐसे तत्वों की पैठ बहुत गहरी हो चुकी है. यह बहुत बड़ा भ्रम है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बहुत साफ़-सुथरा है और इसलिए निचले स्तर पर ऐसे भ्रष्ट/अपराधी/अवसरवादी तत्वों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. सच यह है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने ऐसे तत्वों के आगे घुटने टेक दिए हैं.

भाजपा के नेता भले स्वीकार न करें लेकिन तथ्य यह है कि इन भ्रष्ट और अपराधी तत्वों के आगे शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह से लाचार हो चुका है. उसकी लाचारी का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि आडवाणी से लेकर सुषमा स्वराज तक और उमा भारती से लेकर आर.एस.एस की कथित नाराजगी के बावजूद पार्टी बाबू सिंह कुशवाहा और अन्य दागियों को निकालने के लिए तैयार नहीं है?

आखिर भाजपा किसे धोखा दे रही है? क्या यह संभव है कि पार्टी के शीर्ष नेता और यहाँ तक कि आर.एस.एस भी जिस फैसले से नाराज हो, उसे पलटना इतना मुश्किल हो? यह तभी संभव है जब या तो पार्टी के शीर्ष नेताओं की कथित नाराजगी सिर्फ सार्वजनिक दिखावे के लिए हो या फिर उन्होंने ऐसे तत्वों के आगे घुटने टेक दिए हों?

भाजपा और उसके शीर्ष नेताओं के लिए ये दोनों ही बातें सही हैं. असल में, वे गुड भी खाना चाहते हैं और गुलगुले से परहेज का नाटक भी करते हैं. सच यह है कि एक राष्ट्रीय पार्टी के बतौर भाजपा की राजनीतिक-वैचारिक दरिद्रता जैसे-जैसे उजागर होती जा रही है, उसके लिए सत्ता, साधन के बजाय साध्य बनती जा रही है.

जाहिर है कि जब सत्ता ही साध्य बन जाए तो उसे हासिल करने के लिए पार्टी को कोई भी जोड़तोड़ करने, किसी भी तिकड़म का सहारा लेने और भ्रष्ट/अपराधी तत्वों के साथ गलबहियां करने में कोई संकोच नहीं रह गया है. इसलिए उत्तर प्रदेश में जो रहा है, वह भाजपा के इसी राजनीतिक-वैचारिक स्खलन से पैदा हुए अवसरवाद की राजनीति का नया मुकाम है.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह राजनीतिक-वैचारिक दरिद्रता और स्खलन एक ऐसी सर्वव्यापी और सर्वग्रासी परिघटना बन चुकी है जिससे सत्ता के खेल में शामिल कोई भी पार्टी अछूती नहीं बची है. हैरानी की बात नहीं कि दागी तत्व बहुत सहजता के साथ एक से दूसरी पार्टी और तीसरी से चौथी पार्टी में प्रवेश, सम्मान और निर्णायक मक़ाम हासिल करने में कामयाब होते हैं.

एक पार्टी के लिए दागी, दूसरे के लिए राजनीतिक सफलता की कुंजी है. यहाँ तक कि सिद्धांतत: मान लिया गया है कि यही व्यवहारिक राजनीति है और व्यावहारिक राजनीति, विचार, सिद्धांत और मूल्यों से नहीं चलती है. मतलब यह कि इसमें अगर आप सफल हैं तो सब कुछ जायज है.

जाहिर है कि भाजपा भी इस नई व्यावहारिक राजनीतिक संस्कृति की अपवाद नहीं है. लेकिन भाजपा के साथ खास बात यह है कि वह राजनीतिक नैतिकता, शुचिता और सदाचार की जितनी ही अधिक डींगे हांकती है, उतनी ही बेशर्मी से उनकी धज्जियाँ भी उड़ाती है. इसमें उसे कोई संकोच या असुविधा महसूस नहीं होती है. इस मामले में उसके साहस का शायद ही कोई और पार्टी मुकाबला कर पाए.

असल में, भाजपा जिस उग्र हिंदुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की वैचारिकी पर आधारित राजनीति करती है, उसमें उसके पास दागियों को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुखौटे के पीछे छुपाने की अवसरवादी सुविधा है. यह सुविधा किसी भी और पार्टी के पास नहीं है.

सैमुएल जानसन ने कहा था कि ‘राष्ट्रवाद और देशभक्ति लफंगों की आखिरी शरणस्थली होती है.’ भाजपा के मामले में यह बात सौ फीसदी सच है. भ्रष्ट/अपराधी और दागी तत्वों को भाजपा इसीलिए बहुत आकर्षित करती है. ऐसे तत्व भाजपा में आ कर न सिर्फ राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के झंडे के नीचे अपने सभी पापों को ढंकने-छुपाने में कामयाब हो जाते हैं बल्कि बड़े आराम से अपने काले कारबार को भी जारी रख पाते हैं.

जाने-अनजाने मुख्तार अब्बास नकवी ने भाजपा की गंगा से तुलना करते हुए हिंदुत्व के प्रतीक का ही इस्तेमाल किया. भाजपा की राजनीति की यही असलियत है. लेकिन हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की संकीर्ण और घृणा आधारित राजनीति से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है.

('जनसत्ता' के ९ जनवरी के अंक में प्रकाशित लेख की दूसरी और आखिरी किस्त)

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