मंगलवार, नवंबर 23, 2010

चैनलों का ओबामा मैनिया !

पता नहीं, गिनीज बुक आफ रिकार्ड्स को खबर है या नहीं लेकिन समाचार चैनलों ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत दौरे का लगातार ७२ घंटे कवरेज करके एक नया रिकार्ड बना दिया है. मुझे नहीं लगता कि इससे पहले किसी राष्ट्राध्यक्ष को इतना अधिक और व्यापक कवरेज मिला होगा. मुझे ध्यान नहीं आता. चैनलों को इस रिकार्ड के लिए बधाई देते हुए भी पूछने की इच्छा हो रही है कि क्या मनमोहन सिंह की अमेरिका यात्रा को भी वहां के मीडिया में इतनी ही जगह मिलेगी? दूसरे, सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिए बेचैन चैनल क्या भारत यात्रा पर आनेवाले अन्य राष्ट्राध्यक्षों की भी नोटिस लेते हैं?

ओबामा से ठीक दो दिन पहले भारत आये मलावी के राष्ट्रपति बिंगु वा मुथारिका की यात्रा को कितने चैनलों ने कवर किया? याद रहे मलावी भारत की ही तरह जी-२० का सदस्य है. लेकिन अमेरिका और ओबामा मैनिया से ग्रस्त चैनलों को इन सवालों पर सोचने की फुर्सत कहां थी? ऐसा लगा जैसे तीन दिनों के लिए देश ठहर सा गया है. ओबामा के अलावा और कोई खबर नहीं है. चैनल पूरी तरह से ओबामामय हो गए थे जहां निरंतर ओबामावली का पाठ और विदेश नीति-सुरक्षा-रणनीति के पंडितों द्वारा उसकी टीका चल रही थी.

जाहिर है कि ७२ घंटे की अहर्निश कवरेज कोई मजाक नहीं है खासकर तब जब चैनलों की राष्ट्रपति ओबामा तक सीधी पहुंच नहीं थी. असल में, योजना के मुताबिक उन्हें पृष्ठभूमि में रहकर ही इस यात्रा का माहौल बनाना था. चैनलों को इस खेल में महारत है. नतीजा- एक ओर अमेरिकी राष्ट्रपति के खास विमान- एयरफोर्स वन और कैडिलक कार से लेकर उनकी सुरक्षा में लगी अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों और एजेंटों और ओबामा जिस होटल में ठहरे उसके प्रेसिडेंट सुइट और प्रधानमंत्री के घर हुई डिनर पार्टी के मेन्यू से लेकर मिशेल ओबामा के नाच और खरीददारी तक हर बेमतलब जानकारी ‘आधी हकीकत, आधा फ़साने’ के तर्ज पर दी गई.

दूसरी ओर, अधिकांश चैनलों के स्टूडियो यानी घाट पर ओबामा के कहे-अनकहे एक-एक शब्द की व्याख्या के लिए विदेश नीति, रक्षा और रणनीति के जाने-पहचाने पंडितों के अलावा राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं (स्पिनर्स) की भीड़ जमा कर ली गई. हमेशा की तरह वही कुछ जाने-पहचाने चेहरे और उनकी वही घिसी-पिटी बातें थीं लेकिन ७२ घंटे तक इसे ‘खींचने-तानने’ का दबाव ऐसा था कि आखिर आते-आते दोहराव के कारण वे बातें न सिर्फ बकवास लगने लगीं बल्कि एंकरों और पंडितों, दोनों की थकान और बोरियत भी साफ-साफ दिखने लगी थी.

आश्चर्य नहीं कि इस थकान के कारण स्मार्ट एंकर और विशेषज्ञ पंडित भी संसद में ओबामा के भाषण और भारत-अमेरिका साझा बयान की कई महत्वपूर्ण बातों को या तो अनदेखा कर गए या समझ ही नहीं पाए. वैसे इतने व्यापक और रिकार्ड कवरेज और बतकुच्चन के बावजूद चैनलों ने ओबामा यात्रा के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को नजरंदाज किया. इसकी वजह यह थी कि उन्होंने इस दौरे के कवरेज और विश्लेषण का एजेंडा पहले से ही तय कर लिया था. एक बहुत ही संकीर्ण दायरे और सीमित मुद्दों के इर्द-गिर्द ओबामा की पूरी यात्रा को देखा और दिखाया गया.

बारीकी से देखिये तो ऐसा लगता है जैसे यह सब पूर्व नियोजित और एक रणनीति के तहत था ताकि ओबामा की यात्रा की सफलता और भारत के अमेरिकी खेमे को ज्वाइन करने के पक्ष में अनुकूल राजनीतिक माहौल बनाया जा सके. चाहे वह दौरे की शुरुआत में होटल ताज में दिए गए ओबामा के भाषण में ‘पी’ यानी पाकिस्तान शब्द का जिक्र न होने को लेकर चैनलों पर शोर-शराबा हो या यात्रा शुरू होने से पहले स्थाई सदस्यता के मुद्दे पर किसी स्पष्ट वायदे से ओबामा का इंकार- इसके जरिये तनाव, उद्विग्नता और अपेक्षाओं का ऐसा माहौल बनाया गया कि जब ओबामा ने संसद में अपने भाषण में ‘पी’ शब्द और सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता का उल्लेख किया तो हर बात यानी असली मुद्दों को भूलकर चहुँओर चैनलों पर ओबामा की जय-जयकार शुरू हो गई.

असल में, चैनलों के इस सामूहिक शोर में ऐसा माहौल बनाया गया, गोया ओबामा के समर्थन करते ही सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता मिल जायेगी. जबकि सच्चाई यह है कि ओबामा ने एक ऐसा चेक दिया है जो कब भुनेगा, यह किसी को पता नहीं. सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता का रास्ता न सिर्फ बहुत लंबा है बल्कि बहुत टेढ़ा-मेढा और अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति की जटिलताओं से भरा हुआ है.

इसी तरह, चैनलों खासकर अर्णब गोस्वामी और ‘टाइम्स नाउ’ का पाकिस्तान ऑब्सेशन सारी हदें पार कर गया है. ऐसा लगता है कि आजकल चैनलों की लाइन और न्यूज एजेंडा ‘टाइम्स नाउ’ ही तय करता है. ओबामा के ताज के भाषण के बाद अर्णब के शुरू करते ही सभी चैनलों ने पाकिस्तान को लताड़ने को इतना बड़ा मुद्दा बना दिया जैसे कोई बच्चा अपने पिता से बिगड़ैल भाई की शिकायत कर रहा हो. नतीजा- जैसे ही पिता ने पाकिस्तान को लताड़ा, रूठे चैनल ऐसे नाचने लगे जैसे ओबामा ने उनकी मुंहमांगी पूरी कर दी हो?

लब्बोलुआब यह कि चैनलों ने ७२ घंटे के कवरेज के रिकार्ड के बावजूद ओबामा की यात्रा के राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक निहितार्थों का खुलासा करने में नाकाम का भी रिकार्ड बनाया. या कह सकते हैं कि यह उनका उद्देश्य भी नहीं था. इस कवरेज को देखकर आज मार्क्स होते तो कहते कि ‘समाचार चैनल मध्यवर्ग और बुद्धिजीवियों की अफीम हैं.’

(तहलका के ३० नवम्बर'१० अंक में प्रकाशित)
http://www.tehelkahindi.com/stambh/diggajdeergha/forum/775.html

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