सोमवार, मई 30, 2011

किसानों के साथ धोखा और जुल्म का दूसरा नाम है यमुना एक्सप्रेसवे


किसानों की जमीन लूटने में लगी है जे.पी. एसोशिएट


कल दिन में आगरा में था. एकता परिषद के मित्रों ने जन सुनवाई के लिए बुलाया था. मुद्दा था- यमुना एक्सप्रेसवे और उसके किनारे टाउनशिप बनाने के लिए नोयडा से लेकर आगरा तक किसानों की लाखों हेक्टेयर जमीन को मनमाने तरीके से अधिग्रहण करने और उसे जे.पी. एसोशिएट और दूसरी रीयल इस्टेट कंपनियों को देने का. मेरे साथ दिल्ली से कल सुबह गांधीवादी विचारक राजीव वोरा और कृषि से जुड़े सवालों पर वैकल्पिक दृष्टि के साथ लिखने और लड़नेवाले देवेंदर शर्मा. जन सुनवाई की अध्यक्षता एकता परिषद के पी.वी. राजगोपाल कर रहे थे.


दिल्ली से आगरा के रास्ते में ही पता चला कि जन सुनवाई राजा की मंडी के पास जिस जगह पर होनी थी, वहां जिला प्रशासन ने उसकी अनुमति देने से मना कर दिया है. यही नहीं, यह भी खबर मिली कि जिला प्रशासन गावों में किसानों को जन सुनवाई में हिस्सा लेने पर देख लेने की धमकी दे रहा है. किसानों को आतंकित करने और धमकाने के अलावा उन्हें फुसलाया जा रहा है. आयोजकों ने बताया और बाद में पीड़ित किसानों की बात सुनते हुए इसकी पुष्टि भी हुई कि पूरे इलाके में जबरदस्त आतंक का माहौल है.


किसी तरह जल्दी में यूथ हास्टल के सभागार में जन सुनवाई का इंतजाम किया गया. सुनवाई में कोई डेढ़ सौ के आसपास किसान पहुंचे थे. लेकिन वे सभी एक वे एक तरह से अलग-अलग गावों के प्रतिनिधि थे. कोई १२ बजे से शुरू हुई जन सुनवाई ५ बजे तक चली. इसके बाद शुरू हुई किसानों की एक के बाद आपबीती. सबके पास अपना और अपने गांव के दूसरे साथियों का वह दुखड़ा था जिसमें एक्सप्रेसवे और टाउनशिप के नाम पर जबरिया जमीन अधिग्रहण और उसके लिए अपनाए तौर-तरीकों का मार्मिक ब्यौरा था.  


किसानों के बयानों से कई बातें सामने आईं जिनके बारे में मीडिया में नहीं के बराबर या बहुत कम चर्चा हुई है. सबका कहना था कि इस परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण के मामले में जे.पी. एसोशिएट्स के अधिकारियों ने किसानों से करार पर दस्तखत कराने के लिए हर तौर-तरीके इस्तेमाल किए. उनसे लुभावने वायदे किए गए. कहा गया कि हर परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी दी जायेगी. मुआवजे के साथ अगले ३३ सालों तक प्रति एकड़ के हिसाब से हर महीने २५ हजार रूपये दिए जाएंगे. कहने की जरूरत नहीं है कि जिन किसानों ने इन झांसों में आकार जमीन दे दी, उन्हें कुछ खास नहीं मिला. वे सभी अब पछता रहे हैं.  


लेकिन जो किसान इसके बाद भी करार के लिए तैयार नहीं हुए, उन्हें डराया-धमकाया गया. कहा गया कि जिला और पुलिस प्रशासन कंपनी की जेब में हैं. किसानों को इस सच्चाई का अनुभव भी हुआ. कई किसानों को आगरा में कंपनी के दफ्तर- अनामिका में बुलाकर धमकाया गया. उस दौरान वहां स्थानीय एस.डी.एम और सी.ओ भी मौजूद रहते थे. कुछ किसानों की जमीन को अगल-बगल से घेर दिया गया ताकि उसके पास करार के अलावा कोई चारा न रहे. कुछ को घोषित मुआवजे से कुछ अतिरिक्त रकम देकर तोडा गया.


इसके बाद भी जो नहीं माना, उसे डराने के लिए बिजली विभाग की ओर से बिजली चोरी और बड़े-बड़े बिजली के बिल भेजे गए. छोटे दुकानदारों के घर नाप-तौल विभाग से लेकर वैट-सेल टैक्स अफसरों को डराने के लिए भेजा गया. यही नहीं, कुछ किसानों के खिलाफ पुलिस ने फर्जी मुकदमे लादने शुरू कर दिए. कहने का मतलब यह कि अगर आपने चुपचाप करार पर दस्तखत करके जमीन नहीं दे दी तो आपको तोड़ने के लिए कंपनी के गुंडों से लेकर पुलिस और दूसरे सरकारी विभागों की ओर से साम-दाम-दंड-भेद सभी आजमाए गए. नतीजा, अधिकांश किसानों के पास करार पर दस्तखत करने और जमीन देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.


इसके बावजूद काफी किसान अभी भी डटे हुए हैं. वे जमीन देने के लिए तैयार नहीं हैं. वे लड़ रहे हैं. पुलिस और कंपनी के गुंडों की मार झेल रहे हैं. उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही है. उनका गुस्सा बढ़ता जा रहा है. उनका सब्र टूट रहा है.


जारी...कल बात करेंगे, इस परियोजना के नाम पर मचे जमीन की लूट की...

कोई टिप्पणी नहीं: