रविवार, मई 22, 2011

यू.पी.ए-दो : पांच साल की कमाई, दो साल में गंवाई


यू.पी.ए-२ के दो साल : घोटालों और महंगाई का तोहफा



कांग्रेस के नेतृत्ववाली यू.पी.ए-२ सरकार के दो साल भ्रष्टाचार के नए रिकार्डों और आसमान छूती महंगाई के बीच पूरे हो गए. यू.पी.ए खेमे में भले ही जश्न का माहौल हो लेकिन इस जश्न पर छाए मातम के माहौल को अनदेखा करना मुश्किल है. आखिर किस बात का जश्न मनाएं? किसे नहीं पता कि पांच सालों की कमाई वह पिछले दो सालों में गंवा चुकी है.  



इस सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे ए. राजा और यू.पी.ए की प्रमुख सहयोगी पार्टी के नेता करूणानिधि की बेटी कनिमोरी भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गए २-जी महाघोटाले में जेल में हैं. कांग्रेस संसदीय दल के सचिव रहे सुरेश कलमाडी कामनवेल्थ घोटाले में जेल में हैं और महाराष्ट्र में आदर्श हाउसिंग घोटाले की जांच जारी है. सी.वी.सी पद पर दागी पी.जे थामस की नियुक्ति को खुद सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है. 

लेकिन इस सबके बावजूद माना जा रहा है कि यह सिर्फ ट्रेलर भर है. आनेवाले दिनों में ऐसे और भी घोटालों के खुलासे हो सकते हैं. सरकार और कांग्रेस पार्टी भ्रष्टाचार से लड़ने और घोटालेबाज नेताओं के खिलाफ कार्रवाई के कितने भी दावे करें. लेकिन कोई भी उसपर विश्वास करने को तैयार नहीं है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि मनमोहन सिंह सरकार का इकबाल कितना कमजोर पड़ चुका है.



कहने की जरूरत नहीं है कि घोटालों की दिन पर दिन लंबी और गहरी होती छाया के बीच सरकार की चमक फीकी पड़ चुकी है. असल में, घोटाले इस सरकार की पहचान बन चुके हैं. इस हद तक कि लगभग हर सौदे और समझौते से घोटाले की गंध आ रही है. इन घोटालों की खास बात यह है कि यह सरकार कीमती सार्वजनिक संपत्ति और प्राकृतिक संसाधनों को कौडियों के भाव देशी-विदेशी कंपनियों को सौंपने में लगी है.



अगर इस सरकार में आपकी सही जगह तक पहुंच है या आप उसके चहेतों की सूची में हैं तो आपके लिए स्पेक्ट्रम से लेकर कोल लाइसेंस तक सभी कौडियों के मोल उपलब्ध है. इस क्रोनि पूंजीवाद के दौर में बड़ी कारपोरेट पूंजी के बल्ले-बल्ले हैं. इस पूंजी के हितों को पूरा करने के लिए गरीबों के रोजी-रोजगारपर हमले से लेकर उनके जल-जमीन-जंगल को जबरन छीनने की कोशिशें बढ़ती जा रही हैं.


जैसे इतना ही काफी नहीं हो. यू.पी.ए-दो को आसमान छूती महंगाई के लिए भी याद किया जायेगा. दोहराने की जरूरत नहीं है कि इस सरकार ने न सिर्फ महंगाई के आगे घुटने टेक दिए हैं बल्कि उसे महंगाई की आग में तेल डालने में भी संकोच नहीं हो रहा है. इस महंगाई ने आम आदमी का जीना मुहाल कर दिया है. विश्व खाद्य संगठन और विश्व बैंक का कहना है कि खाद्य वस्तुओं की तेज महंगाई ने करोड़ों लोगों को फिर से गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिया है और वे भूखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं.  



लेकिन वायदे के बावजूद सरकार अभी तक खाद्य सुरक्षा का कानून नहीं ले आ पाई है. एन.ए.सी के सीमित सुझावों को भी मनमोहन सिंह सरकार ने अव्यवहारिक बताकर ठुकरा दिया है. यही नहीं, एक ओर करोड़ों गरीब भूखे पेट सोने को मजबूर हैं और दूसरी ओर, सरकार गोदामों में करोड़ों टन अनाज दबाकर बैठी है.



वहां अनाज को चूहे खा रहे हैं या वह सड़ रहा है या फिर उसे औने-पौने दामों में निर्यात करने (यानी एक और घोटाले) की तैयारी है. सच पूछिए तो इस समय सरकार खुद सबसे बड़ी जमाखोर बन गई है. लेकिन उसे लोगों की भूख से ज्यादा अपने वित्तीय घाटे की फ़िक्र है. इसकी वजह यह है कि उसपर वित्तीय घाटे को कम करने के लिए देशी-विदेशी बड़ी पूंजी के साथ-साथ विश्वबैंक-मुद्रा कोष का दबाव है.


विडम्बना देखिए कि एक ओर करोड़ों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं और दूसरी ओर, यू.पी.ए सरकार डिनर डिप्लोमेसी में जुटी है. दो साल पूरा करने के जश्न के मौके पर आयोजित डिनर में कौन-कौन आ रहा है, सरकार के नुमाइंदे इसका हिसाब लगाने में लगे हैं.


ऐसे में, आज की रात देश में कितने बच्चे, माएं और बूढ़े भूखे सोए, इसकी परवाह किसे है? अलबत्ता सरकार अभी गरीबों का सर्वेक्षण कराने में व्यस्त है क्योंकि उसे पता नहीं है कि देश में गरीब कितने हैं!

पटना:२२ मई'११

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