सोमवार, फ़रवरी 14, 2011

हमारे समय में प्रेम

प्रेम सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम तक सीमित नहीं है  

आज वैलेंटाइन डे है. प्रेम और उसके इजहार का दिन. लेकिन क्या प्रेम सिर्फ प्रेमी और प्रेमिका तक सीमित है? या प्रेम इससे कुछ बड़ी चीज़ है!


आज जब बाजार ने प्रेम को भी खरीद-बिक्री की चीज़ बना दिया है और प्रेम का मतलब महँगी से महँगी गिफ्ट देना बताया जा रहा है, उस समय क्या मान लिया जाए कि प्रेम पर सिर्फ अमीरों का अधिकार है? एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, वैलेंटाइन डे पर होनेवाला कुल कारोबार 12000 हजार करोड़ रूपये तक पहुंच गया है, तब हम प्रेम को कैसे देखें?

दूसरी ओर, प्रेम पर पहरे बढ़ते जा रहे हैं. परंपरा और संस्कृति के भगवा ठेकेदार प्रेम को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं. नौजवान लड़के-लडकियों का मिलना-जुलना उन्हें संस्कृति पर हमले की तरह दिखाई देता है. खासकर, प्रेम में स्त्री की आज़ादी उन्हें हरगिज मंजूर नहीं है. खाप पंचायतें प्रेमी-प्रेमिकाओं को सरेआम क़त्ल कर रही हैं.

लेकिन इस दोहरे हमले के बीच भी प्रेम जीवित है. सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम में ही नहीं बल्कि अपने सभी रूपों में.

लेकिन क्या हम सचमुच, प्रेम का अर्थ समझते हैं? आखिर प्रेम है क्या? मुझे एरिक फ्राम की किताब ‘प्रेम का वास्तविक अर्थ’ याद आ रही है. उसका एक छोटा सा हिस्सा आप सभी के लिए पेश है:

“प्रेम किसी एक व्यक्ति के साथ संबंधों का नाम नहीं है. यह एक 'दृष्टिकोण' है, एक 'चारित्रिक रुझान' है- जो व्यक्ति और दुनिया के संबंधों को अभिव्यक्त करता है, न कि प्रेम के सिर्फ एक 'लक्ष्य' के साथ उसके संबंधों को. अगर एक व्यक्ति सिर्फ दूसरे व्यक्ति से प्रेम करता है और अन्य सभी व्यक्तियों में उसकी जरा भी रूचि नहीं है – तो उसका प्रेम, प्रेम न होकर मात्र एक समजैविक जुडाव भर है, उसके अहम का विस्तार भर है.


फिर भी ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि प्रेम एक 'लक्ष्य' होता है, एक व्यक्ति, न कि एक 'क्षमता'. बल्कि वे तो यह समझने की भूल भी कर बैठते हैं कि अगर वे सिर्फ अपने प्रेमी या प्रेमिका से ही प्रेम करते हैं तो यह उनके प्रेम की गहराई का प्रतीक है. इसका मतलब है कि वे प्रेम को एक 'गतिविधि' के रूप में देखते हैं न कि 'आत्मा की एक शक्ति' के रूप में. उन्हें लगता है कि एक प्रेमी या प्रेमिका को पा लेने का अर्थ है 'प्रेम' को पा लेना.


यह बिल्कुल ऐसी ही बात है जैसे कोई व्यक्ति चित्रकारी करना चाहता हो और समझे कि उसे सिर्फ एक प्रेरक विषय की जरूरत है, उसके बाद वह खुद-ब-खुद बहुत बढ़िया चित्रकारी कर लेगा. अगर मैं किसी एक व्यक्ति से सचमुच प्रेम करता हूँ, किसी से आई लव यू कहने का सच्चा अर्थ है कि मैं उसके माध्यम से पूरी दुनिया और जिंदगी से प्रेम करता हूँ.”

इस मौके पर अवतार सिंह पाश की एक मशहूर कविता पेश है जो प्रेम के असली मायने बताती है:

मैं अब विदा लेता हूँ
अवतार सिंह पाश

अब विदा लेता हूं
मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूं
मैंने एक कविता लिखनी चाही थी
सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं

उस कविता में
महकते हुए धनिए का जिक्र होना था
ईख की सरसराहट का जिक्र होना था
उस कविता में वृक्षों से टपकती ओस
और बाल्टी में दुहे दूध पर गाती झाग का जिक्र होना था
और जो भी कुछ
मैंने तुम्हारे जिस्म में देखा
उस सब कुछ का जिक्र होना था

उस कविता में मेरे हाथों की सख्ती को मुस्कुराना था
मेरी जांघों की मछलियों ने तैरना था
और मेरी छाती के बालों की नरम शॉल में से
स्निग्धता की लपटें उठनी थीं
उस कविता में
तेरे लिए
मेरे लिए
और जिन्दगी के सभी रिश्तों के लिए बहुत कुछ होना था मेरी दोस्त

लेकिन बहुत ही बेस्वाद है
दुनिया के इस उलझे हुए नक्शे से निपटना
और यदि मैं लिख भी लेता
शगुनों से भरी वह कविता
तो उसे वैसे ही दम तोड़ देना था
तुम्हें और मुझे छाती पर बिलखते छोड़कर
मेरी दोस्त, कविता बहुत ही निसत्व हो गई है
जबकि हथियारों के नाखून बुरी तरह बढ़ आए हैं
और अब हर तरह की कविता से पहले
हथियारों के खिलाफ युद्ध करना ज़रूरी हो गया है

युद्ध में
हर चीज़ को बहुत आसानी से समझ लिया जाता है
अपना या दुश्मन का नाम लिखने की तरह
और इस स्थिति में
मेरी तरफ चुंबन के लिए बढ़े होंटों की गोलाई को
धरती के आकार की उपमा देना
या तेरी कमर के लहरने की
समुद्र के सांस लेने से तुलना करना
बड़ा मज़ाक-सा लगता था
सो मैंने ऐसा कुछ नहीं किया
तुम्हें
मेरे आंगन में मेरा बच्चा खिला सकने की तुम्हारी ख्वाहिश को
और युद्ध के समूचेपन को
एक ही कतार में खड़ा करना मेरे लिए संभव नहीं हुआ
और अब मैं विदा लेता हूं

मेरी दोस्त, हम याद रखेंगे
कि दिन में लोहार की भट्टी की तरह तपने वाले
अपने गांव के टीले
रात को फूलों की तरह महक उठते हैं
और चांदनी में पगे हुई ईख के सूखे पत्तों के ढेरों पर लेट कर
स्वर्ग को गाली देना, बहुत संगीतमय होता है
हां, यह हमें याद रखना होगा क्योंकि
जब दिल की जेबों में कुछ नहीं होता
याद करना बहुत ही अच्छा लगता है

मैं इस विदाई के पल शुक्रिया करना चाहता हूं
उन सभी हसीन चीज़ों का
जो हमारे मिलन पर तंबू की तरह तनती रहीं
और उन आम जगहों का
जो हमारे मिलने से हसीन हो गई
मैं शुक्रिया करता हूं
अपने सिर पर ठहर जाने वाली
तेरी तरह हल्की और गीतों भरी हवा का
जो मेरा दिल लगाए रखती थी तेरे इंतज़ार में
रास्ते पर उगी हुई रेशमी घास का
जो तुम्हारी लरजती चाल के सामने हमेशा बिछ जाता था
टींडों से उतरी कपास का
जिसने कभी भी कोई उज़्र न किया
और हमेशा मुस्कराकर हमारे लिए सेज बन गई
गन्नों पर तैनात पिदि्दयों का
जिन्होंने आने-जाने वालों की भनक रखी
जवान हुए गेंहू की बालियों का
जो हम बैठे हुए न सही, लेटे हुए तो ढंकती रही
मैं शुक्रगुजार हूं, सरसों के नन्हें फूलों का
जिन्होंने कई बार मुझे अवसर दिया
तेरे केशों से पराग केसर झाड़ने का
मैं आदमी हूं, बहुत कुछ छोटा-छोटा जोड़कर बना हूं
और उन सभी चीज़ों के लिए
जिन्होंने मुझे बिखर जाने से बचाए रखा
मेरे पास शुक्राना है
मैं शुक्रिया करना चाहता हूं

प्यार करना बहुत ही सहज है
जैसे कि जुल्म को झेलते हुए खुद को लड़ाई के लिए तैयार करना
या जैसे गुप्तवास में लगी गोली से
किसी गुफा में पड़े रहकर
जख्म के भरने के दिन की कोई कल्पना करे

प्यार करना
और लड़ सकना
जीने पर ईमान ले आना मेरी दोस्त, यही होता है
धूप की तरह धरती पर खिल जाना
और फिर आलिंगन में सिमट जाना
बारूद की तरह भड़क उठना
और चारों दिशाओं में गूंज जाना -
जीने का यही सलीका होता है
प्यार करना और जीना उन्हे कभी नहीं आएगा
जिन्हें जिन्दगी ने बनिया बना दिया

जिस्म का रिश्ता समझ सकना,
खुशी और नफरत में कभी भी लकीर न खींचना,
जिन्दगी के फैले हुए आकार पर फि़दा होना,
सहम को चीरकर मिलना और विदा होना,
बड़ी शूरवीरता का काम होता है मेरी दोस्त,
मैं अब विदा लेता हूं

तुम भूल जाना
मैंने तुम्हें किस तरह पलकों के भीतर पालकर जवान किया
मेरी नज़रों ने क्या कुछ नहीं किया
तेरे नक्शों की धार बांधने में
कि मेरे चुंबनों ने कितना खूबसूरत बना दिया तुम्हारा चेहरा
कि मेरे आलिंगनों ने
तुम्हारा मोम-जैसा शरीर कैसे सांचें में ढाला

तुम यह सभी कुछ भूल जाना मेरी दोस्त
सिवाय इसके,
कि मुझे जीने की बहुत लालसा थी
कि मैं गले तक जिन्दगी में डूबना चाहता था
मेरे हिस्से का जी लेना, मेरी दोस्त
मेरे भी हिस्से का जी लेना !

अनुवाद- चमनलाल