शनिवार, जनवरी 02, 2010

एक कम्बल के लिए हत्या - अपराधी कौन?

इस समय जब पूरा देश नए साल और हमारा मीडिया नए दशक के स्वागत में बावला हुआ जा रहा है, मुझसे इस स्वागतगान के बेतुके और कुछ हद तक अश्लील कोरस में शामिल नहीं हुआ जा पा रहा है। मैं आपका नया साल ख़राब नहीं करना चाहता लेकिन क्या करूँ, मानसिक रूप से कल से ही बहुत परेशान हूँ।

सवाल यह है कि क्या कोई इस कड़ाके की ठण्ड में सिर्फ एक कम्बल के लिए किसी की जान ले सकता है? बात बहुत छोटी सी लगती है या कम से कम ऊपर से ऐसी दिखती है। हालांकि बात इतनी छोटी भी नहीं है। पर दिल्ली के अधिकांश अख़बारों ने उसे इसी तरह देखा। उनके लिए यह एक कालम की अपराध डायरी जैसी छोटी सी खबर थी, जो अन्दर के पन्नों पर रूटीन खबर की तरह डाल दी गई थी।

पता नहीं आपने दिल्ली के लगभग सभी अख़बारों में अन्दर के पन्नों पर छपी उस खबर को पढ़ा या नहीं लेकिन मैंने जब से पढ़ी है, नए साल का जश्न अश्लील सा लगने लगा है। खबर कुछ इस तरह से है- 27 और २८ दिसंबर की रात जब दिल्ली ठण्ड से कांप रही थी और पारा ५ डिग्री तक लुढ़क गया था, देशबंधु गुप्ता रोड इलाके में सोनू नामके एक १५ वर्षीय लडके की हत्या कर दी गई थी। वह दिल्ली में सड़क पर बीडी-सिगरेट आदि का एक छोटा खोका लगाकर गुजर-बसर करता था। वह सड़क पर ही सोता भी था। ठण्ड से बचने के लिए उसने एक नया कम्बल ख़रीदा था। लेकिन हत्या के बाद कम्बल गायब था।

पुलिस जाँच में यह बात सामने आई है कि उस इलाके में एक और बेघर श्रवण के पास कल से नया कम्बल दिख रहा है। पुलिस ने उसे पकड़कर पूछताछ की तो पता चला कि उस रात कड़ाके की ठण्ड से बचने के लिए उसे कोई ठौर नहीं मिल रहा था। उसके पास कम्बल भी नहीं था। ठण्ड बर्दाश्त से बाहर थी। श्रवण ने रात में सोनू का कम्बल उठाने की कोशिश की. लेकिन सोनू जग गया। इसके बाद श्रवण ने उस कम्बल के लिए पत्थर मारकर सोनू की हत्या कर दी। श्रवण को सोनू की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया है और वह जेल में है।

कहानी सिर्फ इतनी सी है। लेकिन मेरे लिए यह तय करना मुश्किल हो गया है कि मैं किसे अपराधी मानूं? क्या नया कम्बल खरीदना सोनू का गुनाह था? या हाड़ कंपानेवाली ठण्ड से बचने के लिए कम्बल हथियाने की कोशिश में हत्या तक कर देनेवाले श्रवण को अपराधी मानूं?

उम्मीद है कि उसे जेल में एक ठीक-ठाक कम्बल जरूर मिल गया होगा। यह भी कि अब उसे दोनों जून खाना भी मिल जाता होगा। हमारी-आपकी तरह न सही लेकिन श्रवण को कड़ाके की ठण्ड से कुछ राहत जरूर मिल गई होगी।

क्या आप बता सकते हैं कि अपराधी कौन है? मुझे तो लगता है कि अपराधी हम सब हैं जिन्होंने खुद की ठण्ड से आगे देखना और सोचना बंद कर दिया है ।

6 टिप्‍पणियां:

विनीत कुमार ने कहा…

अखबार में छपी इस खबर के दिन ही न्यूज चैनलों पर दो करोड़ के ठुमके,राजू श्रीवास्तव का मौगापन और पेरिस,न्यूयार्क और हांगकांग का नया साल प्रसारित किया जा रहा था।..

Praveen ने कहा…

sir, UP mein ek mazedar kahwat chalti hai rail me beticket travel karne walon k liye, aana free-jaana free, pakde gaye to khana free. irada mamle ko halka karne ka nahin hai par beghar sonu ko sir par chhat, do waqt ki roti aur kapde to naseeb honge. 10-15 saal pehle raaton ko kuch farishte jaise log nikalte the aur sardi se thithurte garibon ko kambal odhate they. the great indian middle class jab se mazboot hua usne beghar logon k liye sochna chhod diya. shayad mazloomon ko duniya mein jeene ka haq nahin hai.....

Rakesh Kumar Singh ने कहा…

आपकी दृष्टि गयी कंबल प्रसंग पर, आपका शुक्रिया. बहुत लिखाड़ हैं लेकिन ऐसे मसलों पर उनकी दृष्टि नहीं जा पाती है. आज ही एक प्रतिष्ठित अखबार में छपा है कि एमसीडी ने बेघरों के लिए चलने वाले एक शेल्‍टरहोम को ध्‍वस्‍त कर दिया है नतीजतन सैकड़ों लोगों के पास सड़क पर ठिठुरते हुए मौत से साक्षात्‍कार करने के अलावा कोई और चारा नहीं है. मुझे लगता है कि ऐसे मसलों को और प्रभावी तरह से उठाए जाने की ज़रूरत है. इसके हर पहलू पर विचार करने की ज़रूरत है.
एक बार फिर आपका शुक्रिया.

indira ने कहा…

tumne naye saal par acha resolution liya hai istarah sabse direct contact me rah sakte hain.sachmooch baat to sochne ki hai.
indira

Udan Tashtari ने कहा…

अपराधी तो श्रवण ही है. गरीबी भले अभिशाप हो किन्तु किसी की हत्या करने का अधिकार तो नहीं देती.

Abhishek Parashar ने कहा…

it is shame for us .why should it not be because we are living in the largest democracy ,here everywhere for life u will have to follow social law of darvinism ?
it may be not true for tose who believes in democracy but live in aristocracy.
remember the base of democracy in india is depends up on those peoples who r on the edge of our democracy and still pushing towards.......... thanku for bring this issue infront of us .