मंगलवार, मई 13, 2014

क्या यह कांग्रेस विरोधी लहर का संकेत है?

यह कारपोरेट-मीडिया गठजोड़ की बढ़ती ताक़त का भी संकेत है
 
एक्ज़िट पोल और ओपिनियन पोल के नतीजों के बारे जितना कम कहा जाए, उतना अच्छा है. पिछले दो आम चुनावों में उनके अनुमान लगातार ग़लत साबित हुए हैं. इसे ध्यान में रखते हुए २०१४ के आम चुनावों के बारे में विभिन्न चैनलों के एक्ज़िट पोल के अनुमानों में जिस तरह से बीजेपी और एनडीए को बहुमत दे दिया गया है, उसपर हैरानी नहीं होनी चाहिए. 

लेकिन चर्चा और बहस के लिए एक क्षण के वास्ते इसके रुझानों को सही मान लिया जाए तो इसके क्या मायने है? इसके  कुछ मोटे मतलब तो बिल्कुल साफ़ हैं:

१. यह यूपीए ख़ासकर कांग्रेस विरोधी लहर का संकेत है. कांग्रेस का जिस तरह से पूरे देश से सफ़ाया हो रहा है और वह ऐतिहासिक पराजय की ओर बढ़ रही है, उससे साफ़ है कि लोगों ने बढ़ते भ्रष्टाचार, कारपोरेट लूट, महँगाई और बेरोज़गारी के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराते हुए उसे राजनीतिक रूप से बिल्कुल हाशिए पर ढकेल दिया है. 

२. निश्चित तौर पर यह कारपोरेट-मीडिया गठजोड़ की बढ़ती ताक़त का भी संकेत है. कारपोरेट्स ने जिस तरह से भाजपा/एनडीए और उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर दाँव लगाया, पानी की तरह पैसा बहाया है और उसके नेतृत्व में कारपोरेट मीडिया ने जिस तरह से मोदी की एक 'विकासपुरूष, निर्णायक फ़ैसला करनेवाला और सख़्त प्रशासक' की छवि गढ़ी है, उससे लगता है कि कारपोरेट्स और कारपोरेट्स मीडिया के गठजोड़ ने भारतीय लोकतंत्र में जनमत को तोड़ने-मरोड़ने (मैनुपुलेट) करने में निर्णायक बढ़त हासिल कर ली है.

३. यह मोदी को आगे करके ९० के दशक के रामजन्मभूमि अभियान के बाद पहली बार हिंदुत्व की राजनीति को एक बड़ी उछाल देने और उत्तर और पश्चिम भारत के सीमित दायरे से बाहर निकालकर उसे पूर्वी और दक्षिण भारत में घुसने, अपने बल पर ख़ुद को खड़ा करने और अपने फुटप्रिंट को बढ़ाने की आरएसएस के प्रोजेक्ट की पहली बड़ी और गंभीर कोशिश के रूप में भी देखा जाना चाहिए. उसने जिस तरह से विकास के छद्म के पीछे हिंदू ध्रुवीकरण का इस्तेमाल किया है, वह आरएसएस की बड़ी कामयाबी है. 

४. यह रोज़ी-रोटी और बेहतर शिक्षा-स्वास्थ्य के बुनियादी मुद्दों से काटकर सिर्फ जातियों के जोड़तोड़ से सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई लड़ने या कांग्रेस/सपा/बसपा/राजद के भरोसे सांप्रदायिकता से लड़ने की राजनीति की सीमाओं को भी उजागर कर रहा है.

फ़िलहाल इतना ही. बाक़ी विस्तार से जल्दी ही. 

4 टिप्‍पणियां:

dr.mahendrag ने कहा…

अपना अपना सोच अपनी अपनी समझ कांग्रेस ने भी पैसा कोई कम खर्च नहीं किया है धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा प्रमाणपत्र बन गया है जो कुछ दलों ने दूसरों को बदनाम करने व एक संप्रदाय में दुसरे दलों का डर बैठा कर वोटी लेने का एक हथकंडा मात्र है कॉर्पोरेट घराने कांग्रेस के साथ भी हैं बाकि मुलायम माया लालू की जेबी पार्टियां केवल अपने मुकदमो से बचने के लिए इसके साथ है सत्ता विरोधी लहर तो है ही इस से कोई इंकार नहीं कर सकता विकास महंगाई घोटालों के मुद्दे उठाये गए लेकिन कांग्रेस ने मोदी को बदनाम करने हेतु गुजरात दंगों को मुद्दा बनाया और वे विषय पीछे रह गए भा ज पा ने भी जवाब तो देना ही था

tapasvi bhardwaj ने कहा…

Aap ke vistar se lekh likne ka intazaar h...ek salah...pls 16 may se pehle likiyega kyonki naateje aane ke baad aap ke pas AAP ke alava likne ke liye kuch ni hoga....take no offence...AAP storm is coming & poor political class doesnt know whays gonna hit them

Ankur Jain ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति।।

Indra ने कहा…

यही तो शर्मनाक है.. अब इससे लड़ने के लिए बहुत प्रैक्टिकल होना पड़ेगा