मंगलवार, अगस्त 24, 2010

आनर किलिंग या डिसआनर/हारर किलिंग या फिर कस्टोडियल किलिंग?

परिवार की मर्जी के खिलाफ अपनी पसंद से प्रेम और शादी करनेवाले युवा जोड़ों खासकर लड़कियों की कथित “आनर किलिंग” की खबरें इन दिनों अख़बारों और चैनलों में सुर्ख़ियों में हैं. हालांकि देश के कई हिस्सों खासकर उत्तर भारत के हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में अंतर्जातीय या समान गोत्र प्रेम विवाहों के खिलाफ परिवार/जाति/गोत्र/ की इज्जत बचाने के नाम पर युवा जोड़ों की नृशंस हत्याओं का सिलसिला नया नहीं है लेकिन जिस तरह से यह सामाजिक रोग कैंसर की तरह देश की राजधानी और दूसरे बड़े शहरों और उनके पढ़े-लिखे मध्यमवर्गीय परिवारों तक को अपनी चपेट में ले रहा है, उसे देखते हुए मीडिया की सक्रियता ना सिर्फ स्वाभाविक है बल्कि जरूरी भी है.

यह इसलिए भी जरूरी है कि कथित “आनर किलिंग” के बहुतेरे मामलों में परिवार, पड़ोसियों और पुलिस की तरह मीडिया भी मामले की लीपापोती और हत्यारों को बचाने में जुट जाता है. जाहिर है कि मीडिया भी सामाजिक पूर्वाग्रहों और झुकावों से परे नहीं है. परिवारों के कहर से बचने के लिए युवा प्रेमियों के घर से पलायन के मामलों को सिर्फ पुलिस और कोर्ट ही नहीं बल्कि समाचार मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी जिस असंवेदनशील तरीके से ‘युवाओं के बिगड़ने’ और ‘अनैतिक, अनुचित और परंपरा विरुद्ध’ काम के बतौर रिपोर्ट करता है, वह किसी से छुपा नहीं है. कहने की जरूरत नहीं है कि इन मामलों में सरकार, पुलिस, कोर्ट और नागरिक समाज के साथ-साथ अगर समाचार मीडिया भी और प्रो-एक्टिव होता तो शायद मोनिका-कुलदीपों जैसे कई मासूम युवा जोड़ों की जान बचाई जा सकती थी.

निश्चय ही, मीडिया से यह अपेक्षा रखना गलत नहीं है कि वह कथित “आनर किलिंग” की घटनाओं को सिर्फ एक और सनसनीखेज ‘घटना’ की तरह देखने और वहीँ तक सीमित करने के बजाय एक गहरी सामाजिक बीमारी और उससे जुड़ी ‘प्रक्रिया’ के रूप में समझने और उठाने की कोशिश करे. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस मामले में सरकार, राजनीतिक दलों, सामाजिक-नागरिक संगठनों, पुलिस और कोर्ट को और अधिक संवेदनशील बनाने और उन्हें गहरी नींद से जगाने के लिए मीडिया की सक्रियता एक अनिवार्य शर्त सी बन गई है. यही नहीं, मीडिया इस मामले में जन जागरूकता फ़ैलाने के जरिये एक बड़े सामाजिक सुधार की नीव भी रख सकता है.

लेकिन इसके लिए जरूरी है कि मीडिया अपने अंदर भी झांके. इस सिलसिले में, समाचार मीडिया को राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास की इस अपील पर जरूर गौर करना चाहिए कि उसे ऐसी जघन्य हत्याओं को “आनर किलिंग” कहने से परहेज करना चाहिए क्योंकि इससे हत्यारों का एक तरह से महिमामंडन होता है. निश्चय ही, उनकी अपील में भावुकता से अधिक एक तर्क है. नारीवादी विचारक और संगठन लंबे अरसे से “आनर किलिंग” शब्द के इस्तेमाल के विरोधी रहे हैं. उनका तर्क है कि इन हत्याओं में ‘आनर’ की क्या बात है? उनकी शिकायत है कि इस शब्द के इस्तेमाल से उन हत्याओं को एक तरह की सामाजिक वैधता मिलती दिखती है जो परिवार की इज्जत बचाने के नाम पर की जाती हैं लेकिन वास्तव में, सामंती-पुरुषसत्तात्मक ढांचे में स्त्री यौनिकता को नियंत्रित करने का एक बर्बर औजार भर हैं.

सवाल यह है कि फिर ऐसी हत्याओं को क्या कहा जाए? यह सिर्फ एक और हत्या भर नहीं हैं. यह महिला विरोधी हिंसा है लेकिन इसे महिला विरोधी या घरेलू हिंसा कहने से भी बात नहीं बनेगी. मीडिया की यह एक जेनुइन समस्या है. कुछ महिला संगठनों की नेताओं के मुताबिक यह ‘हारर किलिंग’ है जबकि कुछ अन्य लोगों का कहना है कि इसे ‘डिस-आनर किलिंग’ कहा जाना चाहिए. कुछ चैनलों ने गाहे-बगाहे इसे ‘हारर किलिंग’ कहना शुरू भी कर दिया है. लेकिन यह कोई बेहतर विकल्प नहीं है. जाहिर है कि अख़बारों और चैनलों के बीच किसी उपयुक्त विकल्प को लेकर एक आम समझ और सहमति बननी बाकी है जिसके अभाव में अभी भी धड़ल्ले से “आनर किलिंग” शब्द का प्रयोग किया जा रहा है. लेकिन इसे जितनी जल्दी छोड़ दिया जाए, उतना अच्छा होगा.

इस सिलसिले में, जानी-मानी इतिहासकार उमा चक्रवर्ती का कहना है कि इसे ‘कस्टोडियल किलिंग’ कहा जाना चाहिए क्योंकि सामंती-धार्मिक पुरुषसत्तात्मक समाज के नियमों के मुताबिक स्त्री हमेशा किसी ना किसी पुरुष की कस्टडी में रहती है. विवाह से पूर्व पिता और भाई, विवाह के बाद पति और पति की मौत के बाद बेटे की कस्टडी में और जैसे ही वह इस कस्टडी को चुनौती देने या तोड़ने की कोशिश करती है, समाज-परिवार की परंपरा की रक्षा के नाम पर पुरुष सदस्यों को उसकी हत्या तक करने में हिचक नहीं होती है. फिर क्या इसे ‘कस्टोडियल किलिंग’ कहा जाना चाहिए? निश्चय ही, इसमें ‘आनर’ के बजाय एक शर्म और अपराध का भाव शामिल है. और कुछ नहीं तो इसे ‘डिसआनर किलिंग’ तो तत्काल कहना शुरू कर देना चाहिए.

यह कुछ लोगों को अटपटा जरूर लग सकता है लेकिन क्या “आनर किलिंग” इससे ज्यादा अटपटा और चुभनेवाला शब्द नहीं है?

(मीडिया स्तम्भ, दैनिक हिंदुस्तान)

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

थोडा समझौता तो दोनो पक्षों को करना चाहिए .. आपको रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

Rohit Singh ने कहा…

कोई उपयुक्त हिंदी शब्द ही ढूंढना पड़ेगा। देखिए क्या आता है दिमाग में।